अब वक्त आ गया है कि हम कर्म प्रधान गीता के उपदेशों को अपने व्यवहार में अपना लें।

अब हम भी अर्जुन की तरह गांडीव उठा लें और अपने आक्रांताओं पर विजय प्राप्त करें। हमारे ही बीच में तो रहते हैं हमारे दुश्मन। अर्जुन के भी तो सभी सगे सहोदर थे लेकिन थे धर्म विरुद्ध। जो भी अनर्थ करता है, सामाजिक बुराइयों में संलिप्त है या अधिकार से आगे खाता उड़ाता है वह हम सबका दुश्मन है और उसके खिलाफ आवाज उठाना हमारा धर्म है।

लेकिन हमें तो डर लगता है। हम उसे जानते हैं कि वो जालिम है। हम जानते हैं कि उससे वैर साधा तो वो हमारा घर जला देगा। वह साधन संपन्न है। उसकी पहुंच है। वह बड़ा आदमी है। उसके सामने हम जैसे अदना आदमी पानी भरते हैं। कैसे उसके चापलूस, चमचे और चर-चपरासी उसे सैल्यूट मारते रहते हैं। और वो तो कार, कोठियों और हवाई जहाजों का मालिक है।

“छोड़ो जी! हम तो अपने रास्ते आते जाते हैं!” हमारा मन कहता है। “कोई हो नृपत हमें क्या हानि!” हम एक सहज रास्ता लेकर चलते रहते हैं।

इसी का परिणाम है कि आज हम सब बुराइयों के चंगुल में आ फंसे हैं।

“सरकार हमारी मदद नहीं करती है।” हमारी शिकायत है। “ये सारा फौज-फर्रा है सरकार के पास। पुलिस है और कोर्ट कचहरियां हैं। लेकिन फिर भी ..?”

लेकिन सरकार भी तो आप ही हैं – मेरी सरकार! हम और आप में से ही हमारे लोग सरकारी कुर्सियों पर बैठे हैं। लेकिन भ्रष्टाचार का सांप हमारे पैरो के नीचे नीचे सरकता ही चला जा रहा है। अब हो तो क्या हो?

“अपनी आवाज को बुलंद करो पार्थ!” केशव का आदेश है। “गांडीव उठाओ!” वो कह रहे हैं। “नपुंसक मत बनो पार्थ!” वो फटकार रहे हैं। “अधर्म का नाश करना ही तुम्हारा धर्म है और कर्म ही सबसे बड़ा है – अकर्म नहीं। ये अकर्म तो तुम्हें ले डूबेगा पार्थ। इससे बचो!” महाभारत के लिए शंखनाद है केशव का।

केशव आज के हर संदर्भ में सच हैं!

उनका तो जन्म ही काल कोठरी के सात तालों के भीतर अपने मामा कंस की जेल में हुआ था। आधी रात थी – अंधियारी और काली और यमुना भी अपने पूरे उत्स पर थी। पहरुओं के बीच से चींटी भी बच कर नहीं निकल सकती थी!

लेकिन कमाल ये हुआ कि वासुदेव अपने नवजातक बेटे को टोकरी में बिठा यमुना पार चले गए और लौट आए! मामा सोते रह गए!

क्यों हुआ ये चमत्कार?

जब आप धर्म के लिए लड़ते हैं तो सारी कायनात की शक्तियां आपके साथ आकर खड़ी हो जाती हैं। तब आप शिशु नहीं एक समर्थ शक्ति बन जाते हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्यंभावी होती है। अतः धर्म युद्ध ही सच है, शाश्वत है और सही है।

आओ उठाते हैं आवाज हम भी और करते हैं केशव का अनुसरण! उनके इस पावन और पवित्र जन्म दिन पर हम उन्हें इससे बड़ी और कोई भेंट दे भी क्या सकते हैं!

जय श्री कृष्ण!

मेजर कृपाल वर्मा

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