“ तुनो कानू, बन्दर तुकन्दर मानू… आप कहाँ दाना ताती ओ”।

यह भाषा हमारी प्यार की भाषा हुआ करती है, जब भी हम अपनी प्यारी और सबसे न्यारी कानू को संबोधित करते हैं। यहाँ हमारा कहने का मतलब है… सुनो कानू, बन्दर चुकन्दर मानू.. आप कहाँ जाना चाहती हो।

सारा दिन शौतानी में बिताना और फ़िर थोड़ी सी देर रजाई में हमारे साथ चिपक कर सो जाना.. बस यही मज़ा चल रहा है, अब तो हमारा अपनी कानू बिटिया के साथ। बस! कानू में एक कमी तो है, कि कोई भी आ जाए तो भौंकती ही जाती है। सारे दिन क़ानू की छत पर ही भाग-दौड लगी रहती है। जब भी हम घर से बाहर निकलते हैं, हमें ज़रूर सुनने को मिल ही जाता है…” क्या! भई! भाभी कानू भौंकती बहुत है। सारे दिन हम तो बस आपकी कानू का भौंकना ही सुनते रहते हैं”। घर में ही क्या कानू तो पड़ोस में भी रौनक लगा कर रखती है। कोई आय या कोई जाय दोनों हाथ आगे की दीवार पर रख, और अपनी नाक दीवार पर टिका बस कानू तो आते-जातों की सारे दिन क्लास लगाती रहती है। कभी-कभी हमें भी कानू के हिसाब से ज़्यादा शोर मचाने यानी के भौंकने पर गुस्सा आ जाता है, और हम कानू के प्यारे से मुलायम गाल पर एक छोटा सा थप्पड़ टेक देते हैं। थप्पड़ भी मार देते हैं, साथ ही फ़िर कानू को एक मीठी सी पप्पी भी दे देते हैं.. अब प्यारी भी तो बहुत है, कानू.. एकदम डॉल जैसे दिखती है।

बच्चे तो मोबाइल फोन में ही लगे रहते है,किसी की सुनते ही नहीं हैं, हम कितना भी चिल्ला लें,” भई! पढ़ लो तुम्हारे इम्तहान सिर पर हैं, कोई फर्क ही नहीं पड़ता। अब क्या करें! कोई माने ही नहीं तो, बस लगे रहतें हैं, अपनी प्यारी, भोली और गुड़िया सी कानू के साथ।

आज दोपहर को जब हम अपनी कानू के साथ खेल-कूद में व्यस्त थे, तो अचानक ही हमारे बच्चे अपना मोबाइल फ़ोन लेकर हमारे पास आ गए और कहने लगे,” देखो! ये कुत्ता कितना प्यारा है, अमरीका के एक गाँव मे रहता है, इसकी मालकिन हमेशा ही इसके फोटो वगरैह इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती रहती है.. इसका नाम काफ़्का है, और हर वक्त कार में ही घूमता रहता है”।

बच्चे काफ़्का डॉग से बहुत ज़्यादा प्रभावित थे, वाकई में काफ़्का था भी स्वीट डॉग। अब क्योंकि काफ़्का हमेशा कार में ही घूमता रहता है, इसलिये बच्चों ने भी एक दिन यही ज़िद्द पकड़ ली थी,” हम भी क़ानू को कार में घूमाने ले जाया करेंगे,” चलो! न आज ही चलते हैं, और अभी”।

बच्चों को उस अमरीकन कुत्ते को देखकर नया-नया शौक हो रहा था, तो हमनें भी कह दिया था,” चलो! चलते हैं, हमें थोड़ा सा किरयाने का सामान भी खरीदना है, इस बहाने कानू भी हमारे साथ कार में काफ़्का की तरह घूम आएगी, तुम्हारा मन भी रह जायेगा”।

हमारी बात सुनकर बच्चे खुश हो गए थे, और बेटे ने कार गेट से बाहर निकाल ली थी। हम सब तैयार हो और क़ानू को लेकर कार में बैठ गए थे। हमनें बच्चों से पूछा था,” कानू का चैन और पट्टा तो साथ में ले लिया है न.. बच्चों ने कहा था,” चैन और पट्टे की क्या ज़रूरत है, कार में ही तो बैठी रहेगी”।

और हम सब निकल गए थे.. थोड़ा सामान वगरैह लेने के लिये। बच्चों ने तो वही अँग्रेज़ी गाने चलाकर उस अमरीकन कुत्ते की पूरी-पूरी नकल कर डाली थी। क़ानू भी गाड़ी में बेहद खुश लग रही थी। सच! कोई कितना भी सुन्दर कुत्ता क्यों न पाले पर हमें तो कानू-मानू के आगे कोई जचता ही नहीं है।

बच्चे बोल उठे थे,” मम्मी देखो! कानू इंगलिश म्यूज़िक पर कितनी खुश है। ये तो एकदम काफ़्का की तरह ही एन्जॉय कर रही है”।

वाकई कानू को कार में घुमाने ले जाओ तो अलग ही तरह से खुश हो जाती है। पिंक कलर की जीभ साइड में लटका अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ तो हिलाती ही चलती है।बच्चों ने मार्किट के आगे गाड़ी लगा दी थी, और कहा था,” आपको जो लेना है, खरीद लो, हम यहीँ गाड़ी में बैठकर कानू का ध्यान रखेंगें”।

हम बच्चों की बात मान अपना बैग ले कर कुछ किरायने की खरीदारी करने अन्दर मार्किट में चले गए थे।

वापिस आ कर तो हम हक्के-बक्के ही रह गए थे, परेशान होकर हम ज़ोर से चिल्ल्लाये थे…” कानू कहाँ है! और तुम लोग कहाँ थे!”

बच्चे सामने से हमें देख कर दौड़े-दौड़े आये थे, कहने लगे,” अरे! मम्मी अभी-अभी सामने से किसी ऑटो और स्कूटर की टक्कर हो गई, दोनों ज़ोरों से रोड पर गिर पड़े थे, कहीं चोट तो न लगी है, बस यही देखने के लिए भागे चले गए, पर गाड़ी का गेट तो हमनें लॉक किया था.. फ़िर कैसे! कहाँ! कानू!”।

हमें तो गाड़ी में कानू को न पाकर इतना गुस्सा आ रहा था, कि हमारा ध्यान किसी टक्कर पर गया ही नहीं.. बल्कि हमारा मन तो हो रहा था, कि एक-एक जमा कर हाथ बच्चों के गाल पर थप्पड़ धर दें। अब तो हम अपना बैग वहीं गाड़ी में छोड़ क़ानू! क़ानू! का रोड पर खड़े होकर ज़ोर से शोर मचाने लगे हुए थे.. बच्चे भी हमारे साथ इधर-उधर भाग झाड़ियों में कानू! कानू! चिल्लाते हुए घूम रहे थे.. पर क़ानू का कहीं भी दूर-दूर तक पता नहीं चल रहा था। “ अब क्या करें! तुम लोगों की बेवकूफी की वजह से हमनें हमारी कानू को खो दिया”।” बताओ! अब हम कहाँ से लाएँ प्यारी कानू को”।

कानू के खो जाने पर हम सब उदास और गम-सुम ही घर वापिस आ गए थे। सच! बच्चे तो कानू को खो कर रो ही पड़े थे। हम भी रुआंसे हो रहे थे, कि पतिदेव का आना हुआ था,” अरे! इतनी शांति, आज तो भौंकने की आवाज़ बिल्कुल भी न आ रही है.. कहाँ है,वो तुम्हारी लाड़ली कानू”।

कानू का नाम आते ही हम और बच्चे ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू हो गए थे। हमें यूँ रोता देख पतिदेव घबरा गए थे, और पूछ बैठे,” अरे! भई! क्या हो गया कानू को, अब रोना-धोना बन्द कर हमें भी कोई बताएगा क्या!”।

हमनें रोते हुए दुखी-सुखी कानू के खो जाने के बारे में जब पतिदेव को बताया तो उन्हें भी बच्चों की लापरवाही पर बेहद ग़ुस्सा आया था। पर अब क्या कर सकते थे। आख़िर थी, तो हमारी रानी बेटी कानू कुत्ता ही.. कहाँ और कैसे ढूँढ़ते। पर हमारे दिमाग़ में एक विचार आया और हमनें अपने पतिदेव को पुलिस में कंप्लेंट लिखवाने को कहा था.. हमारी कंप्लेंट वाली बात सुनकर पतिदेव बोले थे,” पागल हो गई हो क्या! कुत्ता है, कानू!”।

पर हम न माने और ज़िद्द ही पकड़ ली थी.. हमनें अपनी कानू रानी के फोटो इटट्ठे कर पुलिस स्टेशन जाने के लिए पतिदेव को राज़ी कर लिया था। फ़िर क्या था, पहुँच गए पास वाले थाने। पुलिस स्टेशन में हमारी कंप्लेंट सुनकर T.I साहब को थोड़ा अजीब लगा, खैर! उन्होंने हमारी कानू के फोटो तो देख कर रख लिये थे, कहने लगे,” मैडम कुत्ता है, फ़िर भी आपके सेंटीमेंट्स की कद्र करते हुए आसपास के इलाकों जहाँ आप अपनी कानू को लेकर उस दिन गए थे, दिखवा दूँगा.. पर कुछ भी कहिये आपने pet बहुत ही प्यारा पाल रखा था”।

जैसे ही T.I साहब ने कानू के लिये “पाल रखा था” बोला हम तो ग़ुस्से में तमतमा उठे और कुर्सी से खड़े होकर बोले थे,” पाल रखा था नहीं, हमारी बेटी है, कानू और मिल भी जाएगी देख लेना.. हमारा मन जो कह रहा है”।

T.I साहब हमारा मुहँ ही देखते रह गए, और हम पुलिस स्टेशन से सीधे घर की ओर चले आये थे। अब तो दो चार दिन कानू बग़ैर बीत गए थे,और घर मे उदासी और सूनापन ने जगह बना ली थी। एक दिन हम कानू बग़ैर यूहीं उदास बैठे थे, कि हमारे किसी जानकार का हमारे लिये घर पर फोन आया था.. ये श्रीमान हमारे अच्छे मित्र हैं, और हमारी तरह से ही इन्होंने भी बहुत ही प्यारा सा डॉगी पाल रखा है। थोड़ा सा दूर की कॉलोनी में रहते हैं। हमारे फैमिली मेम्बर जैसे ही है, हम सब जब भी उनके घर उनसे मिलने जाते हैं, क़ानू को भी संग लिये जाते हैं.. कानू भी उन लोगों से बेहद प्यार करती है, जैसे कि हमसे। अब कुत्तों को तो पहचान होती ही है.. अपने और पराये की हम इन्सानो से कहीं ज़्यादा।

फ़ोन पर श्रीमान ने हमसे पूछा था,” और भाभी कैसे,सब बढ़िया!”।

हम उदास तो थे ही,” हाँ! भाईसाहब! पर क़ानू…”।

“ हाँ! तो क्या हुआ क्या है, क़ानू को”। उन्होंने पूछा था।

“ पता ही नहीं कहाँ चली गई, मिल ही नहीं रही.. बहुत कोशिश कर ली”। हम रुआंसे हो गए थे, कानू की बात कर।

भाईसाहब थोड़ी देर तक हमसे कानू को लेकर सहानुभूति दिखाते रहे, और फ़िर एकदम से ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसे थे, और बोले,” अरे! भाभी घबराने की कोई बात ही नहीं है, आपकी कानू हमारे पास ही तो है, यही बताने के लिये हमनें आज आपको फोन किया, दरअसल हम तो पहले ही बताने वाले थे, पर हम आपका कानू के प्रति लगाव थोड़ा चेक कर रहे थे, वाकई भाभी आपका और क़ानू का तो माँ-बेटी जैसा रिश्ता हो गया है.. इधर कानू ने भी खाना-पीना छोड़ रखा है, अब तो उदासी में भौंकना ही भूल गई है। आइए और आकार अपनी प्यारी और सबसे न्यारी कानू को ले जाइए”।

कानू उनके पास कैसे पहुँची थी.. हमारे पूछने पर उन्होनें हमें बताया,” दरअसल हम उस दिन अपनी गाड़ी में पीछे से आ रहे थे, आपकी कार खड़ी देखी तो हमनें झाँक कर देखा.. बस! कानू ही हमें अन्दर बैठी दिखाई दी थी, बच्चे तो आगे हुई टक्कर देखने में वयस्त थे, और कार का गेट लॉक करना भूल ही गए थे, कानू को यूँ अकेला छोड़ना हमें कुछ ठीक सा न लगा था,तो सोचा क्यों न कानू का अपहरण कर सारे परिवार को सबक दिया जाए.. कि आइन्दा से प्यारी कानू को कभी-भी अकेला नहीं छोड़ें.. सो हमनें कानू को पुचकारा और अपने साथ बिठा ले गए, दो दिन तो कानू टॉमी के साथ खेलने में व्यस्त हो गई थी, पर अब कानू को मम्मी पास जाना है”।

कानू हमारे ही मित्र के पास सुरक्षित है, यह सुनकर हम सब खुशी के मारे उछल पड़े थे, मानो खोई हुई खुशी हमें वापिस मिल गई हो। पतिदेव को फोन लगा हमनें खुश खबरी देते हुए बुलाया था, और हम सभी परिवार के सदस्य श्रीमान जी के घर कानू को लेने पहुँच गए थे।

जैसे ही कानू को हमारे आने का अहसास हुआ, कानू ज़ोर से भौंकते हुए हमारे पास आकर जम्प करते हुए हमसे लिपट गई थी.. हमने अपनी कानू को गले से लगा कर ढ़ेर सारा मीठी-मीठी पप्पी गाल पर देकर प्यार किया था। कानू ने भी हमारे गाल को अपनी जीभ से चाट कर अपनेपन का अहसास जताया था।

पतिदेव ने और बच्चों ने खुशी में मित्रगण से कहा था,” तो आपने किया था, हमारी प्यारी कानू का अपहरण.. तो आप ही थे, अंकल हमारी कानू के किडनैपर!”।

हँसी की बात तो अलग रह गई थी, पर उस दिन हम सबनें मिलकर यह कसम खाई थी, कि अब कभी न छोड़ेंगे यूँ कानू को अकेला, और अपने से अलग.. यूहीं कसमें और वादे करते हुए एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे, अपनी कानू के साथ।