नान नानी की कहानी आ

दादा दादी की कहानी आ

जब हम छोटे थे, तो हमें बहुत अच्छी तरह से याद है.. कि हम टेलीविज़न पर दादा दादी की कहानी नाम का सीरियल देखते थे। अब हमें औरों का तो पता नहीं..  पर भई! हमारा तो पसंदीदा कार्यक्रम हुआ करता था.. और उन दिनों अशोक कुमार जी को दादा का किरदार निभाते देख, दुनिया इकट्ठी हो जाया जरती थी। वाकई दादा- दादी और नाना-नानी हमारे सभी के जीवन में बेहद महत्व रखते हैं। दुनियादारी की भागदौड़ में एक मीठा सा स्नेह और ममता भरा कोना दादा-दादी और नाना-नानी का होता है। कहानियों को एक-तरफ़ रखकर, हमें भी अपने दादा और नानी के रिश्ते से बेहद लगाव है। यकीन मानिए हम अपनी निजी जिंदगी में भी जल्द ही इस रिश्ते में अपने-आप को ढालना चाहते हैं.. पर ऐसा होने में तो अभी समय लगेगा, क्यों हमारे नन्हे-मुन्हे अभी छोटे हैं। बस! इन दिनों हमारे जीवन की रेलगाड़ी कुछ इसी ख़याल को लेकर गुज़र रही थी, कि अचानक हमारी नज़र हमारी सबसे छोटी और सबसे प्यारी बिटिया.. कानू पर पड़ी थी।

और हमारे मन में एक मीठे से ख्याल ने जन्म ले लिया था, “ अरे! भई! हम कानू बिटिया के बच्चों की भी तो नानी बन सकते हैं!”।

अब तो यह ख्याल हमारा पीछा ही छोड़ने को तैयार नहीं था.. कि कानू जैसा ही कोई एक और प्यारा सा आए.. और हमारा आँगन एक बार फ़िर से कानू जैसे नन्हे से खिलौने से रौशन हो जाए। इस ख्याल को लेकर हमनें बच्चों से बात करना ठीक न समझा था.. अपने मन में अपनी बात को रखते हुए, हम सीधे ही डॉक्टर के पास पहुँचे थे, जिन्होंने हमारी बात से सहमत होकर एक दिन के लिये कानू को अपनी क्लिनिक पर छोड़ने की सलाह दे दी थी.. और जिस वक्त हमारे बच्चे स्कूल गये हुए थे.. ठीक उसी दौरान हम कानू को डॉक्टर साहब की क्लिनिक पर छोड़ आए थे। बस! फ़िर क्या था.. कानू आराम से घर भी आ गई थी।

“ माँ! देखो! न ये काना हमारी! हमें पहले से भी मोटी लगने लगी है.. कितना खाना खिलाने लगी हो इसे”!।

उस बात का हम भी क्या जवाब देते.. मुस्कुरा कर रह गए थे।

एक दिन रात को हमारी कानू बहेद परेशान हो गई थी, और हॉल में टेलीविज़न स्टैंड के इधर-उधर घूमनें लगी थी.. हमें भी कानू को अपनी जगह पर न पाकर जाग आ गई थी.. सही बात का पता होते हुए.. हम कानू के पास जा बैठे थे। समय आ चुका था.. और कानू ने घूम-घूम कर छह नन्हें  पप्पी को जन्म दिया था। बच्चे भी थोड़ा सा शोर सुनकर हॉल में आ गए थे। “ अरे! ये प्यारे से नन्हे तू-तू कहाँ से आए! देखो! न माँ! ये कानू हमें तू-तू को छूने नहीं दे रही है! काटने भाग रही है!”।

“ अरे! ये तू-तू कानू को भगवानजी गिफट देकर गए हैं.. अब ये कानू के हुए.. अब तुम कानू की चीज़ को हाथ लगाओगे तो कानू तुम्हें काटेगी ही!”।

हमनें बच्चों को समझा दिया था.. वाकई में सारे के सारे तू-तू बहुत ही प्यारे थे.. ऐसा लग रहा था.. मानो सफ़ेद रुई के छोटे-छोटे गोले लाइन से रखें हों। तू-तू को घर के सभी सदस्य प्यार और गौर से देख रहे थे.. कि अचानक ही उनमें से एक तू-तू सभी के मन को भा गई थी.. और प्यार से मुहँ से निकला था,” देखो! टॉफी जैसी लगती है!’।

अब इतने तू-तू हम अकेले रख कर क्या करते.. पाँच तू-तू हमसे हमारे नज़दीकी रिश्तेदार ले गए थे.. और बस! हमनें टॉफी को जो कि हमारी सबकी पसन्द थी.. अपना लिया था।

अब तो सब प्यारी और स्वीट कोमल सी टॉफी को ही गले लगाए घूमते थे.. हमारा भी टॉफ़ी के आने से नानी बनने का सपना पूरा हुआ था.. अब तो टॉफ़ी के बगैर हम एक पल भी नहीं रह सकते थे। मूल से ब्याज तो प्यारा होता ही है।

कानू की भेंट टॉफी के साथ नानी बनने का सुख पाते हुए.. एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. प्यारी कानू और नन्ही टॉफी के साथ।

कानू और हमारी प्यारी नन्ही टॉफ़ी को अपना प्यार और दुलार लिखकर भेजिये.. और जुड़े रहिये कानू के प्यारे किस्सों के साथ।