जन-गण- मन अधिनायक जय है,

भारत- भाग्य- विधाता ।

पंजाब सिंध गुजरात मराठा

द्राविड़ उत्कल बंग ।

“ यह हमारा राष्ट्रीय गान है, जिसे रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा था। बच्चों पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था.. हमारे देश पर सबकी नज़र थी.. कि इस सोने की चिड़िया को कैसे लूटा जाए”। आज हम बच्चों को अपना इतिहास पढ़ा भी रहे थे, और साथ-साथ समझा भी रहे थे।

“ माँ! भारत को किस-किस ने लूटा था”। बच्चों ने हमसे

सवाल किया था।

“ भारत को मुगलों ने और अंग्रेज़ों ने खूब लूटा था.. हमारा देश लगभग दो-सौ वर्षों तक गुलाम रहा था”। आज हम बच्चों के बीच में बैठकर बच्चों को भारत का इतिहास समझा रहे थे. और क़ानू भी हमारे और बच्चों के साथ ही बैठी हुई थी। आज तो हैरानी की बात यह थी, कि.. कानू अपने पेपर-कटिंग जैसे कान हिला-हिलाकर ध्यान से हमारी बातें सुन रही थी.. ऐसा लग रहा था, मानो बच्चों के संग कानू का भी इतिहास का ही इम्तिहान हो। बच्चे भी क़ानू को देख कर कह रहे थे,” देखो! माँ आज तो क़ानू एक बार भी नहीं भौंकी, ऐसा लग रहा है.. मानो आपकी प्यारी क़ानू कल हमारे साथ ही इतिहास का इम्तिहान देने जाएगी”।

हमें बच्चों की क़ानू को लेकर बात पर हँसी आ गई थी..  और पास बैठी कानू को हमनें प्यार से गले लगाकर एक मीठी सी पप्पी फ़िर से दे डाली थी। वाकई! आज तो कानू हमारे भारत दर्शन से काफ़ी खुश थी.. मानो और भी बहुत कुछ जानना चाह रही हो। अब तो गुलामी से लेकर आज़ादी तक की दास्ताँ छिड़ गई थी।

“ माँ! इस प्रश्न का क्या उत्तर लिखें..  पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी कब और क्यों मनाया जाता है!”। बच्चों ने अपनी कॉपी से प्रश्न किया था.. और हम दोनों प्रश्नों का उत्तर लिखवाने लगे थे। हम बच्चों को छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त के बारे में समझाते भी जा रहे थे, और लिखवाते भी जा रहे थ। छब्बीस जनवरी पर भारत का संविधान बना था, और पन्द्रह अगस्त वाले दिन हम आज़ाद घोषित हुए थे। आज तो हमनें बच्चों को इतना पढ़ा दिया था.. कि  हमारा दिमाग़ ही थक गया था.. रात का खाना-वाना खाकर हमें बहुत ही प्यारी और मीठी नींद आई थी। कहते ये हैं.. जो आप दिन भर करो.. और जो भी आप के दिमाग़ में चल रहा होता है.. वही सपनों में भी आ जाता है।

चारों तरफ़ भीड़ थी..  और लोग अपनी झाँकियों के संग खड़े थे। हम भी जनवरी की कड़क ठंड में अपनी प्यारी नन्हीं सी गुड़िया कानू के साथ अपनी झाँकी के साथ ही खड़े हुए थे.. हमारा सौभाग्य था, कि आज हम अपनी प्यारी कानू-मानू को लिये राजपथ पर इंडिया गेट से लाल-किले तक कानू संग छब्बीस जनवरी की परेड में हिस्सा लेने वाले थे। दिल्ली का जाड़ा बहुत ही भयंकर था.. इसलिये हमनें कानू का ख़ास ख़याल रखा हुआ था, कि कहीं छोटा सा मेरा बच्चा कानू बीमार न पड़ जाए।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रे मोदी का आगमन हो चुका था..अमर जवान ज्योति के पास आकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रे मोदी शहीदों को श्रद्धांजलि दे चुके थे.. अमर जवान ज्योति से अब प्रधानमंत्री जी मंच की तरफ़ बढ़ रहे थे। अभी परेड़ शुरू होने में समय था.. इधर हमारे साथ कानू ने तमाशा शुरू कर दिया था.. अब खुली सी जगह में बैठे हुए थे.. हम लोग, और प्यारी सी कानू के लिये भी जगह नई थी.. कानू भौंके ही जा रही थी, तो हमनें सोचा था.. अभी हमारी झाँकी का नम्बर लगने में समय लगेगा.. तो क्यों न चैन और पट्टा बाँध कर कानू को आगे तक घुमा लाएँ। हम कानू को लेकर अभी टहल ही रहे थे.. कि किसी और प्रदेश की झाँकी वाले व्यक्ति ने हमसे सवाल किया था,” अरे! यह कुत्ता यहाँ क्या कर रहा है, इसको घुसने की परमिशन किसने दी!”।

हमनें अनजान व्यक्ति को समझाते हुए कहा था” पहली बात तो कुत्ता है, ही नहीं ये! हमारी कानू है। और हम अपनी झाँकी “ कानू की दुनिया “ में सभी दिवंगत नेताओं के सामने अपनी रानी बेटी कानू के साथ प्रदर्शन करने वाले हैं, हमारी झाँकी मध्यप्रदेश की तरफ़ से होगी.. जिसकी हमें फुल परमिशन है”।

“ अच्छा! भई! वाह!”। कहकर वह व्यक्ति अपनी झाँकी की तरफ़ निकल गया था।

हम जब तक हमारा नंबर लगता अपनी कानू के साथ खेल-कूद और क़ानू को खिलाने-पिलाने में बिजी हो गए थे। राजपथ पर परेड शुरू हो चुकी थी.. सभी दिवंगत नेताओं ने अपनी-अपनी जगह ले ली थी। तीनों सेनाओं की टुकड़ियों का भी मार्च-पास्ट हो चुका था। अब हर प्रदेश की झाँकी अपना-अपना प्रदेर्शन करने जा रही थी। आज कानू हमारे साथ सोच रही थी,” ये तो हमारी छत नहीं है, और दीदी-भइया भी नज़र नहीं आ रहे.. इतनी बड़ी सी जगह पर कहाँ लेकर आ गईं हैं.. माँ हमें”।

वैसे तो कानू अपनी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर और फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाकर खेल में मस्त हो गई थी।

अब हमारी झाँकी का नंबर आने वाला था। हमनें बढ़िया पिंक कलर का पट्टा क़ानू के गले में बाँधकर कानू को झाँकी पर खड़ा कर दिया था..  हमारी झाँकी मध्यप्रदेश की तरफ़ से थी.. जिसका शीर्षक था.. कानू की दुनिया। कानू से सम्बंधित चीज़ों से हमनें हमारी झाँकी को सजाया था।

धीरे-धीरे बढ़ते हुए राजपथ पर झाँकी अब मंच के सामने आ गई थी.. जहाँ पर सभी दिवंगत नेता विराजमान थे। झाँकी पर देश भक्ति का गीत “ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा “ का गीत धीरे-धीरे मधुर स्वर में बज रहा था। झाँकी मंच के बिल्कुल सामने थी.. क़ानू ने अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाकर खेलते हुए बहुत ही सुंदर प्रदर्शन किया था। हमनें भी राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए, सभी दिवंगत नेता गणों का अभिवादन किया था। क़ानू झाँकी पर खेलती-कूदती सभी को बहुत ही प्यारी लग रही थी.. व “ कानू की दुनिया “.. हमारी झाँकी सबको बहुत पसन्द आई थी। कानू किस तरह से खेलती-कूदती है.. यह सब हमनें झाँकी पर दर्शा रखा था। कानू को देख प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक प्यारी सी मुस्कुराहट फेंकी थी, मानो कह रहे हों, “ बहुत प्यारी है, आपकी बिटिया कानू! न कहेंगें कुत्ता!”।

और राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए.. अब हमारी झाँकी आगे बढ़ चुकी थी। सभी झाँकियों में मध्यप्रदेश यानी हमारी झाँकी अपने सबसे बेहतरीन प्रदेर्शन के साथ पहले नंबर पर थी। कानू की दुनिया को सभी ने सराहा था।

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

“ अरे! भई! क्यों। चिल्ला रही हो! कान पर.. सोने दो ना.. इतनी ही देशभक्ति जाग रही है, तो क्यों नहीं ले लेतीं हो आने वाली छब्बीस जनवरी में भाग”।

और हम नींद से जाग गए थे.. रात के दो बजे रहे थे.. हमनें पतिदेव को अपना सपना बताया था..  हमारा सपना सुन पतिदेव ने भी रात के दो बजे हमारे साथ जयकारा लगाया था.. “ भारत माता की जय! “।

सवेरे बच्चों को भी हमनें अपने सपने के बारे बताया था। बच्चे बहुत खुश हुए, और कहने लगे थे,”  अरे! वाह! माँ! हमारी प्यारी कानू सपने में छब्बीस जनवरी पर प्रधानमंत्री जी से मिली.. काश! हम भी आपके सपनों में होते तो हम भी क़ानू संग प्रधानमंत्री जी से मिलते”।

इसी तरह से भारत की आज़ादी का जश्न मनाते और राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए.. एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. प्यारी कानू के साथ।

भारत माता की जय!