जंगल की हवा बहुत गरम हो गई थी!
आये दिन कोई न कोई अफवाह फैल जाती। आदमी से ज्यादा अब इन फैलती अफवाहों से लड़ना कठिन हो गया था। कोई कह रहा था कि हाथियों ने सत्ता हथियाने की ठान ली है, तो कोई कहता कि काग भुषंड तो स्वयं राजा बन बैठा है! वन राज – जंगलाधीश का नाम तो कहीं भी नहीं था! सुंदरी के साथ आ बैठे जंगलाधीश को लगा था कि उसकी तो आन-बान-शान सब जाती रही थी!
लालू गीदड़ और शशांक खरगोश की चाल में आकर वह उल्लू बन गया था – जंगलाधीश महसूस रहा था।
सुंदरी के तो सपने ही अलग थे। जब से जंगलाधीश के साथ मिलकर महारानी बनने का स्वप्न उसने देखा था तब से वह नई नई चाल चलकर जंगलाधीश को अपने वश में किये थी!
लालू और शशांक मिलकर भी काग भुषंड की कोई काट नहीं ढूंढ पा रहे थे। पाजी काला कौवा चरा चर में शोर मचा बैठा था कि वह राजा था और अब आदमी से जंग लड़कर जंगल में अमन चैन ला देगा!
कितनी कितनी वाहियात बातें कह रहा था काग भुषंड! और तो और उसकी वह प्राइवेट चुन्नी चालबाजियों की पुड़िया थी। आये दिन कोई न कोई कौवे का गुण बता कर उसे महान बनाए दे रही थी!
काग भुषंड ने भी अपनी तमाम बिरादरी बुला ली थी! चूंकि इन लोगों के पर थे, ये उड़ सकते थे अतः इन्हीं का हो-हल्ला हवा में उठ खड़ा हुआ था!
“मैं इन सब को अब ठीक कर दूंगा!” जंगलाधीश गर्जा था। “राजा तो मैं ही रहूंगा! मैं राजा ही तो हूँ!” उसने लाल लाल आंखें तरेर कर कहा था। “लालू! तुम्हारी ये सब शर्तें बेकार हैं! राज काज तो ..”
“राज-काज – मारपीट और खून खराबा से नहीं चलता जी!” सुंदरी ने विनम्र स्वर में कहा था। “आप लड़ सकते हैं .. और मर मार भी कर सकते हैं! मानती हूँ। लेकिन राज काज ..”
“ये ही तो मैं कहता हूँ जीजी जी!” लालू तनिक संभल कर बोला था। “इस पाजी कौवे के शोर मचाने से कुछ नहीं होता! इसे पूछता कौन है?”
“और वह हाथी – हुल्लड़ ..?” जंगलाधीश ने भी प्रश्न फेंका था।
“गंवार है जी ..” शशांक उछल कर सामने आ गया था। “आदमी का बोझा ढोते ढोते कमर टूट गई है और अब ..”
“और वो शेष नाग ..?” जंगलाधीश का दूसरा प्रश्न था।
“उसके काटे का तो इलाज है!” सुंदरी बोली थी। “उसके न तो पर हैं और न पैर! अपाहज है बेचारा! वैसे भी तो अंधा है? ये क्या खाकर राज पाट चलाएगा?”
“और तो और वो चूहा – पृथ्वी राज अपने आप को पृथ्वी का स्वामी बता रहा है!” फिर से गर्जा था जंगलाधीश। “ये दो कौड़ी का चूहा! ये राजा बनेगा? राजा बनना न हुआ कोई ..”
पृथ्वी राज का नाम आते ही सब चुप हो गये थे। पृथ्वी राज की बात में सब को दम लगा था। धरती के भीतर बिल बना कर रहते चूहों के पास धरती का पट्टा था! धन माल से परिपूर्ण धरा के एक तरह से तो वो मालिक ही थे! कुबेर का कार्य था उनका और गणेश जी की सवारी भी कहा जाता था उन्हें!
“पृथ्वी राज तो भारी पड़ेगा भइया!” शशांक ने लालू से चुपचाप कहा था। “मैं तो इन्हें जानता हूँ!” उसने आंखें नचा कर कहा था। “ये बहुत बुद्धिमान हैं! बिल के भीतर बिल और इस पार से उस पार! और इनकी आई गई का कोई छोर नहीं!”
“भोली को नहीं जानता?” लालू ने खींसें निपोर कर कहा था। “चूहों को तो बिल्लियां ही बर्बाद कर देंगी!”
“गद्दार है भोली!” शशांक ने साफ साफ कहा था। “वह तो जिसका माल खाती है उसी की सगी नहीं होती!”
शशांक की बात सुनकर सुंदरी के कान खड़े हो गये थे!
जंगलाधीश को तुच्छ मानने वाला चूहा सुंदरी को अब एक महाशक्ति के रूप में दिखाई दिया था! कैसी विचित्र बात थी? कैसा वक्त आने वाला था कोई समझ ही न पा रहा था!
“संधि कर लेंगे पृथ्वी राज से!” लालू का सुझाव था। “सत्ता में साझा करना तो आज का चलन है!” उसने विचार को आगे बढ़ाया था। “जीजा जी! आज का जमाना ही ऐसा है! एक दूसरे के बिना जीना असंभव हो गया है!”
ये नया विचार जंगलाधीश को जमा नहीं था। वह तो एक छत्र राज करने का आदी था। वह नहीं मान पा रहा था कि एक चूहा – पृथ्वी राज उससे टक्कर ले और उसका आधा राज मांग ले?
कोई अजूबा घटने वाला था क्या?
लालू को भी लग रहा था कि उसकी अपनी बात तो बनते बनते बिगड़ गई थी। राज तो गीदड़ों का ही होना चाहिये था – अब चाहे जो करना पड़े। लेकिन अब तो इतने लोग सत्ता बांटने आ गये थे तो बात बिगड़ती ही नजर आ रही थी।
“शशांक भाई! कुछ तो इलाज सोचो!” लालू कह रहा था। “न सांप मरे ना लाठी टूटे – ऐसा ही कुछ?”
“जल्दी से जल्दी सुंदरी और जंगलाधीश की शादी करा दो!” शशांक ने सुझाया था। “सारा का सारा झंझट खत्म, वो राजा ओर सुंदरी रानी!”
“और हम ..?”
“हम ..?”
“हॉं, हम? हम क्यों खट रहे हैं? हमें क्या मिलेगा भाई? मैं और तुम कहॉं जाएंगे, क्या खाएंगे और कहॉं रहेंगे?”
“मैं समझा नहीं?”
“मूर्ख हो! इन दोनों की शादी करा कर अपनी बरबादी करना कौन सी तुक है?”
अब दोनों ने एक दूसरे को सही अर्थों में तोला था!
वह शादी कराने की तो चाल ही थी न! शेर और लोमड़ी दोनों को गच्चा देकर और अन्य जानवरों को भी झांसा देकर जंगल का राज हड़प लेना ही तो लालू का उद्देश्य था!
मेजर कृपाल वर्मा