तभी कांव कांव की रट लगाता काग भुषंड़ वहां आ धमका था। वह सीधा शेर की पीठ पर आ बैठा था। शेर को रोष हुआ था पर अभी अभी एकजुटता की बात सुनकर जो चुका था – संभल गया था। कौवे ने अपनी चोंच को शेर की कमर पर घिस घिस कर पैना किया था। फिर उसने सभी आगंतुकों को बारी बारी घूरा था!

“तू नीचे नहीं बैठ सकता कलूटे?” लालू गुर्राया था। “ये भी कोई बात हुई? आए और पधारे राजा साहब की कमर पर!”

कौवे ने चारों ओर देखा था। सुंदरी को देख कर वह हंस गया था। सभी को लगा था कि कौवा अब सारी बात बिगाड़ कर रहेगा। सब गुड़ गोबर हो जाएगा अब।

“हम इस ब्याह में बाराती होंगे बेटे!” काग भुषुंड नखरे से बोला था। “और बाराती भला नीचे बैठेंगे?”

“ठीक कहा काग भुष्ंड काका!” शशांक हंस कर बोला था। “आप जैसे बुद्धिमानों का आसन शेर की कमर पर ही होना चाहिये! विराजिए! बहुत जम रहे हैं आप!”

चाहता तो पूंछ के एक प्रहार से जंगलाधीश इस कमीने कौवे की जान ले लेता! लेकिन वह तो अब बाराती बन बैठा था। पके घावों में चोंच मारने वाला ये कमीना कौवा जानवरों का कब से सगा हो गया – जंगलाधीश की समझ में न आ रहा था।

लेकिन जो एके की बात चल पड़ी थी वह सब से ज्यादा महत्वपूर्ण थी। अब आपसी नोक झोंक का यह माकूल मौका न था।

“हम इस आदमी की अक्ल ठिकाने लाने की बात सोच रहे हैं – काग भुषंड जी!” लालू गीदड़ मौका पाते ही बोला था। “आप का सहयोग भी सराहनीय होगा। आप तो आदमी की हर चाल समझते हैं!”

कौवे ने लालू गीदड़ के चालाक चेहरे को पढ़ा था। वह निरा धूर्त तो था ही लेकिन न जाने कैसे आज बुद्धिमानों जैसी बातें कर रहा था।

“अरे सूरमा हमारा और आदमी का क्या बंटता है भाई?” कौवे ने जंगलाधीश की ओर नजर घुमाई थी। “उसका आना और हमारा जान – रास्ता ही नहीं काटते हैं? अपने में वो मस्त हैं और हम भी खूब खा कमा रहे हैं! फिर वैर भाव काहे का?”

कौवा उड़ कर फिर शेर की कमर पर बैठ गया था। शशांक को यह बुरा लगा था। बनती बात को वह कब बहा दे – उसका कोई भरोसा नहीं था।

“काग भुषंड जी!” बड़ी ही आजिजी से बोला था शशांक। “जब आदमी आप को तीर कमान दिखाता है तो आपकी आंखें धड़धड़ा जाती हैं। दिल बैठ जाता है और भागते ही बनता है आपको!”

“आदमी से कौन नहीं डरता भाई!” कौवे ने बात स्वीकारी थी।

“तभी तो!” शशांक तनिक आगे झुक आया था। “आज नहीं तो कल ये आपका हक भी खा जाएगा और उसकी तीर कमान का उत्तर तक आपके पास नहीं होगा!”

“यह उत्ता आज खोजो – आज!” तड़का था सूरमा। “महाराज, फूले फूले विचरते हो आज कल की चिंता भी तो करो?”

कौवे को बात कुछ जमती लगी थी। था तो आदमी बदमाश ही! उसका दबदबा भी खूब ही था। चलती भी आदमी की ही थी। अगर किसी तरह हम सब मिल कर इस आदमी पर काबू पा लें तो ..?

राज कौवे करेंगे – एक बारगी काग भुषंड के दिमाग में आया था। और किसी में तो उतनी अक्ल थी ही नहीं जो सारी धरती पर साम्राज्य फैला कर बैठ जाता। कौवे की तो आंख ही तमाशे की थी! उन जैसा शातिर तो इस जंगल में और कोई था ही नहीं!

जन गणना के मामले में भी कौवे ही सबसे अधिक थे। कल को जब शासन और शक्ति के बंटवारे की बात आएगी तो वह तुरंत ही जन गणना की तुरप लगा देंगे और सत्ता हथिया लेंगे!

“जंग का ऐलान आज से ही कर देते हैं!” काग भुषंड जोश के साथ बोला था। “इस आदमी की नाक में दम न कर दिया हमने तो ..”

“देवर जी इतनी उतावली में क्यों हैं!” सुंदरी ने पहली बार मुंह खोला था। “आपके पौरुष पर हम शक नहीं करते पर उस मुबारक मौके का इंतजार करने की सलाह जरूर देंगे .. जब ..”

“हम सब एक होंगे और एकजुट होंगे!” अबकी बार जंगलाधीश बोला था। उसने सुंदरी की बात का समर्थन करना आवश्यक समझा था। “और फिर एक रण नीति भी हमें तैयार करनी होगी!”

“कर लो भाई!” काग भुषंड ने बड़े ही रूखे पन से कहा था। “हमें तो जब कहोगे तब लड़ लेंगे!” कह कर वह उड़ गया था।

आदमी को नष्ट करने के बाद धरती पर अपना अधिकार जमाने की बात कौवे के मन में घर कर गई थी! यह एक सुनहरी अवसर था जब वह अपनी अक्ल का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया में कौवों का साम्राज्य स्थापित कर सकता था।

आदमी विहीन हुई पृथ्वी की कल्पना काग भुषंड के जहन में लगातार घर करती जा रही थी। आदमी के न रहने की स्थिति में तो उन्हें किसी का डर रहेगा ही नहीं! उनके जोड़ का और था ही कौन जो धरती पर राज करता? कौवे तो कहीं आदमी से भी ज्यादा बुद्धिमान थे – उसने आज पहली बार महसूसा था।

कौवे आदमी से कहीं आगे देख सकते थे। चलने फिरने में तो आदमी उनका जोड़ रखता ही नहीं था! और जहां तक सवाल था दो हाथों का – तो कौवे उन हाथों का करते भी क्या? उन्हें तो सब काम चोंच से करना आता ही था।

और फिर उनका साम्राज्य तो होना ही उनका था! उन जैसा उनके लिए और केवल उनकी उन्नति के लिए ..

“सुनो बंदर भाई!” काग भुषंड अब पीपल के पेड़ पर आ बैठा था। “आदमी के खिलाफ जंग का ऐलान हो चुका है! अब इस आदमी के आतंक से हम सब को अंततः: मुक्ति मिलेगी!” उसने पीपल के तने से पेट सटा कर चिपके बंदर को जगा सा दिया था। “मत डरो आदमी से! लड़ने के लिए सेना तैयार करो ..” वह तनिक मुसकुराया था। “भाई! तुम्हारे बिना जंग जीतना आसान न होगा!”

“हम क्यों लड़ें बे!” बंदर ने घुड़का था काग भुषंड को। “हमारी तो ये बेचारा आदमी पूजा करता है! बंदरों को तो वह अपना पूर्वज मानता है!”

“मुगालते में मत जिओ भाई! जिस दिन उसकी बंदूक की नाल तुम्हारी तरफ सीधी हुई – धांय धांय! सब स्वर्ग पधार जाओगे!”

“क्यों? हमने उसका क्या बिगाड़ा है!”

“तुम्हारी बढ़ती जनसंख्या पर उसकी नजर है! तुम्हारे प्रति उसका रोष भी बढ़ता ही जा रहा है। किसी दिन ऐसी पूजा करेगा तुम्हारी – लेने के देने पड़ जाएंगे!”

“सोने दे यार!” बंदर ने बेरुखी से कहा था। “क्यों कांय कांय कर रहा है? क्या खाकर लड़ेगा – तू आदमी से?” हंसा था बंदर। “अब तो भगवान भी आदमी के वश में है भाई!” वह फिर से अपनी नींद का आनंद लेने लगा था।

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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