काग भुषंड हुल्लड़ की कमर पर आ बैठा था। उसका मन तो हुआ था कि हाथी की गुदाह देह में अपनी पैनी चोंच घुसा कर मीठा सा नाश्ता कर ले! पर आज उसका आने का उद्देश्य संगीन था। अतः वह संभल गया था।
“सुना है शेरों के मुकाबले में लड़ने आ गये हो?” हुल्लड़ ने कठोर स्वर में प्रश्न किया था। “लड़ लोगे शेरों से?” उसने व्यंग किया था।
काग भुषंड को हुल्लड़ की बात नापते देर न लगी थी। वह समझ गया था कि अब लालू गीदड़ ने कौवों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया था।
“हमें तो किसी ने प्यार से दिया ही नहीं हुल्लड़ भाई! और जो लिया है, लड़ कर ही लिया है!” काग भुषंड ने एक सच्चाई सामने रख दी थी। “हमें तो लड़ना आता है!” उसने अपनी पैनी चोंच से हुल्लड़ की कमर को सहला सा दिया था। “तुम तो गजराज हो!” वह तनिक हंसा था। “अब पृथ्वी राज बन जाओ!” काग भुषंड चहका था। “तुम्हें रोकता कौन है?”
“उल्लू बनाने आये हो?”
“नहीं!”
“शेर ..!” हुल्लड़ के मुंह में शब्द अटक गये थे। वह तो जानता था कि शेर का डर आदमी के डर से कहीं ज्यादा था! आदमी के यहां दया धर्म था – लेकिन शेर तो शेर ही था! “शेर का सामना करना पड़ा तो?” हुल्लड़ एक बारगी यह विचार आते ही हिल गया था।
“यों डरने से तो काम चलेगा नहीं, भाई साहब!” चुन्नी ने मौका पाते ही अपनी जबान खोली थी। “आप की इज्जत शेर और लोमड़ी से कहीं ज्यादा है! आप सबके मित्र हैं, सब के साथी और सहायक हैं!” चुन्नी रुकी थी।
अब जा कर हुल्लड़ को तनिक होश आया था। उसे भी एहसास हुआ था कि उसका जंगल में शेर से कहीं ज्यादा भाई चारा था। वह तो घास खाता था, किसी जानवर को नहीं! उसकी दुश्मनी तो किसी से थी ही नहीं!
“लफड़ा तो इन शेर और लोमड़ियों का ही है!” काग भुषंड फिर से कह रहा था। “साथ में वह नालायक लालू गीदड़ अपना अंगा सेक रहा है!” उसने अपनी आंखें मटकाई थीं। “अगर ये तिगड्डा बैठ गया तो समझो सूपड़ा साफ! आदमी तो क्या करेगा? पर ये जंगल उजाड़ देंगे!”
काग भुषंड ने अपनी आंखों को मटकाया था। उसने अब कहीं दूर देखा था। उसे लगा था कि उसकी बातों का असर हुल्लड़ पर हो गया था।
“और फिर ये शेर और लोमड़ी की शादी?” चुन्नी ने मुंह बिचका कर कहा था। “अरे भाई! ये भी कोई तुक हुई?” उसने मूंछें मरोड़ी थीं। “छीं! मुझे तो शर्म आती है कि शेर ..”
“लोमड़ी से शादी कर रहा है!” जोरों से हंसा था काग भुषंड। “सोचो! कल को इन की संतान हुई तो क्या होगी?”
“कुछ भी हो सकती है!” चुन्नी ने पैर पटके थे। “कौन अलाय-बलाय पैदा हो जाए – कौन जाने? आदमी तो अलग – ये एक और नई मुसीबत पैदा हो जाएगी, गजराज! कोढ़ में खाज समझो!”
अब हुल्लड़ की बात समझ में आ गई थी!
“भाई हम आगे नहीं आना चाहते!” हुल्लड़ संभल कर बोला था।
“तो फिर साथ आ जाओ!” चुन्नी ने तुरप लगाई थी।
“सत्ता में साझा कर लेते हैं भाई!” काग भुषंड ने स्वीकारा था। “जो पद चाहो सो ले लो और फिर प्रतिष्ठा तो आपको मिलेगी ही!” काग भुषंड ने फैसला सुनाया था। “मैं अभी मुनादी कर देता हूँ ..” वह तुरंत कूद कर सामने आ गया था।
तभी .. हॉं तभी सामने की झाड़ी में छुपा शशांक उन दोनों को एक साथ नजर आ गया था! चुन्नी की आंख भी उधर गई थी तो वह भी सन्न रह गई थी! लालू का ये जासूस तो उनकी सारी खबर पा गया था! उनकी तो सारी चाल ही चौपट हो गई थी।
“कैसे हो शशांक ..?” हुल्लड़ ने सूंड़ हिला कर शशांक की खैरियत पूछी थी।
“काका! शगुन पढ़ना है!” शशांक ने सूचना दी थी। “निमंत्रण है आप सब के लिए!” शशांक चहका था। “गाजे बाजे से आइयेगा!” उसने अनुरोध किया था। “बहुत बड़ा जश्न है! सभी अपनी अपनी ताकत के हिसाब से आएंगे!” शशांक ने छोटे छोटे शब्दों में बहुत कुछ बड़ा बखान कर दिया था!”
काग भुषंड और चुन्नी ने एक दूसरे को घूरा था। कितना चालाक है – लालू गीदड़ और कितनी धूर्त है ये लोमड़ी – सुंदरी ..! अब वो दोनों कुछ समझने का प्रयत्न कर रहे थे। और शशांक था कि सामने खड़ा खड़ा हंस रहा था।
करें तो क्या करें? कैसे कहें हुल्लड़ से कि वह शगुन में जाने से मुकर जाए!
“ये क्या ढोंग रच रहे हो शशांक भाई?” चुन्नी ने फिर से पासा फेंके थे। “शेर और लोमड़ी! उनकी शादी .. और उनका शगुन ..” चुन्नी जोरों से हंसी थी। “ये कौन सी तुक बनती है शशांक भाई?” चुन्नी ने पूछा था।
काग भुषंड तनिक उचका था और पास के पेड़ पर जा बैठा था। अब वह हुल्लड़ पर होती प्रतिक्रिया को पढ़ रहा था। शशांक को देख कर हुल्लड़ के तो होश ही उड़ गये थे! डर तो उसे शेर का ही था।
काश! कौवे का भी कोई डर होता तो काग भुषंड को भी मोर्चा मारना कितना आसान हो जाता!
“अरे बहिन जी! इस जात पात को तो अब आदमी भी तोड़ रहा है!” शशांक तनिक मुसकुराया था। “आजादी आ रही है! कोई किसी के भी साथ जाए तो जाए!” शशांक खिलखिला कर हंसा था।
हुल्लड़ को शशांक की बात में दम लगा था। सब घिल्लमिल्ल हों जाएं एक बार तो बुरा भी क्या था? जो जिसके साथ चाहे – जोड़ा बना कर रहे!
“कौवे और गिलहरी का साथ भी कहां बनता है भाई?” अबकी बार हुल्लड़ ने चुस्की ली थी। “लेकिन देखो .. ये दोनों ..?” हुल्लड़ हंसता रहा था।
“लेकिन ये भी अच्छी बात है!” शशांक ने बात को बल दिया था। “आज साथ साथ हैं तो साथी हैं! कल को प्यार हो गया तो पति पत्नी होंगे!” उसने अबकी बार चुन्नी और काग भुषंड को एक साथ घूरा था।
चुन्नी शरमा गई थी। काग भुषंड गरमा गया था। उसे शशांक की बात में चाल नजर आई थी। हो न हो – ये सब उस सुंदरी का दिमाग हो? वह जान गया था कि आज के बाद चुन्नी वो चुन्नी न रहेगी जिसे वो सत्ता हथियाने में हथियार बना कर लाया था!
हो सकता था – चुन्नी ही उसकी हार का असली कारण बन जाए! क्योंकि बहुत मायनों में चुन्नी मूर्ख थी!
मेजर कृपाल वर्मा