लेकिन काग भुषंड को चैन नहीं था। वह अब अपना अभियान जारी रखना चाहता था। वह किसी तरह भी कौवों का साम्राज्य स्थापित कर लेना चाहता था।
“अपनी बिरादरी वालों से पहले बात तो कर लो, काग भुषंड जी!” गिलहरी ने चिंता में डूबे कौवे से कहा था। “पहले अपनों को तो मना लो! घर में एका होगा तो बाहर तो साथ आ ही जाएगा!”
“हॉं ठीक फरमाया चुन्नी! हमारी अपनी ताकत पहले मुठ्ठी में आ जाए तभी कोई आगे बात बनेगी।” उसने भी हामी भरी थी। “वैसे तुम क्या सोचती हो? क्या कौवों का धरती पर राज होगा?”
“राज काज तो चलता ही धोखाधड़ी से है!” चुन्नी हंसी थी। “मैं तो जब आदमी को आदमी से घात करते देखती हूँ तो दंग रह जाती हूँ। अपने सगों को ही मार डालता है ..”
“बहुत बेरहम है!” काग भुषंड ने भी हामी भरी थी।
“पराया मांस खाने में तो तुम भी माहिर हो!” चुन्नी ने आंखें मटकाई थीं। “बेरहम भी हो!” उसने आगे कहा था। “चला लोगे तुम सल्तनत!” कह कर वो भाग गई थी।
बिरादरी वालों की पंचायत बुलाई थी काग भुषंड ने।
“ठीक विचार है भाई काग भुषंड का!” गवाली गिद्ध बोला था। “अगर आदमी किसी तरह से नष्ट हो जाए तो हमें जीवन दान मिल जाए!” उसने सर पर आई विपत्ति का बयान किया था। “भूखे मर रहे हैं हम लोग! पहले कम से कम हमें मुर्दों की लाशें तो मिल जाती थीं। लेकिन अब तो आदमी उसे भी उठा ले जाता है! क्या खाएं .. कहां जाएं ..?”
“आदमी को ही नोच नोच कर खाओ! बहुत मीठा होता है ..” उल्लू ने आंखें मटका कर कहा था।
“पागल हो गया है क्या?” बाज बोला था। “मुफ्त में जान जाएगी बंधु!” उसने चेतावनी दी थी।
“ये तो – है ही उल्लू!” काग भुषंड ने बात काटी थी। “अंधा तो है ही – अब पागल होने का सबूत भी दे रहा है!” उसने उल्लू को घूरा था। “मजाक करने का वक्त गया भाइयों!” उसने अपनी आंखें फड़काई थीं। “मैं अपनी दिव्य दृष्टि से देख रहा हूँ कि अगर हमने आदमी को यहीं समाप्त न कर दिया तो यह अजेय हो जाएगा!”
“कैसे भाई?” गरुड ने पूछा था।
“इसे अमृत की तलाश है। यह अमृत की खोज में लगा है। और जिस दिन इसे अमृत मिल गया .. उस दिन के बाद तो ..”
“सब का अंत आया धरा है!” बाली गिद्ध ने पुष्टि की थी।
पंचायत में एक सन्नाटा फैल गया था। अजेय हुआ आदमी .. अमर हुआ आदमी जान कर सबकी आंखें निराशा से भर आई थीं। अजेय हुए आदमी से भी ज्यादा खतरनाक होगा अमर हुआ आदमी – यह कोई गलत बात नहीं थी।
“कैसे भी हो अब इसका अंत ला दो!” काग भुषंड ने एक नारा सा ईजाद किया था। “कुछ भी करो .. कैसा भी सोचो – शुभ अशुभ, अच्छा बुरा अब सब न्याय संगत होगा।”
“काग भुषंड जी! आप इस विचार को अब एक जिहाद का जामा पहना दो!” गरुड कहने लगा था। “हम सब आपके साथ हैं! अब आप ही हमारे नेता हैं! हम सबकी ओर से आप अन्य सभी जंतु जानवरों से मिलें और तय करें कि इस आदमी का अंत कैसे लाएं!”
काग भुषंड की आंखें एक अनाम प्रसन्नता से लबालब भरी थीं।
आज पहली बार उसने महसूस किया किया था कि एकजुट होकर लड़ने की बात ही कुछ और थी। आज जो दम उसकी बात में दिख रहा था वह पहले उसने कभी भी महसूस नहीं किया था। एक समूह का नेता चुनने के बाद जो जिहाद की बात वह करने जा रहा था – उसे जंगलाधीश भला क्यों नहीं मानेगा?
शेरों की जनसंख्या भला थी भी कितनी?
“बधाई हो काग भुषंड जी!” घोंसले में आते ही चुन्नी ने उसका स्वागत किया था। “आज तो जंच रहे हो!” वह मुस्कराई थी।
“क्यों नहीं, चुन्नी!” काग भुषंड ने अपनी चोंच को पैना किया था। “आज मुझे अपना सपना सकार होता लग रहा है!” उसने कहीं दूर देखा था। “आज से मैं तुम्हें अपनी निजी सचिव बनाने की घोषणा करता हूँ।” उसने गर्व के साथ कहा था।
“लेकिन क्यों?” चुन्नी तड़की थी। “न जात में न पात में! आप कौवे मैं गिलहरी! भली ले क्या तालमेल रहा?”
“यही तो विशिष्ट होगा चुन्नी!” काग भुषंड ने हंस कर कहा था। “ये जात पात हमें पहले से ही तोड़नी होगी। अगर कौवों का राज धरती पर फैला तो न्याय अन्याय का ध्यान पहले रक्खा जाएगा!”
“सो कैसे?”
“शेर और बकरी एक घाट पानी पीएंगे!” काग भुषंड ने घोषणा की थी। “बेशक तुम आज से ही सब को सूचना दे दो कि हम कौवे अगर सत्ता में आये तो ..”
चुन्नी बहुत जोरों से हंसी थी। वह हंसती ही रही थी। कौवों की मानसिकता का उसे पता था। फिर भी अगर काग भुषंड उसे अपनी निजी सचिव बनाने की बात कह रहा था तो उसे क्या एतराज हो सकता था? किसी न किसी तरह उसे भी तो कौवों की नजरों से बचे रहना था।
अगर कौवे औरों की नजरों में आते थे तो चुन्नी पर से कौवों की नजर हटना स्वाभाविक ही था!
दोस्ती और दुश्मनी के सींग तो होते नहीं! बस वक्त वक्त का फेर होता है। आज का दुश्मन कल का दोस्त होता है – यह चुन्नी जानती थी।
“कल ही हम जंगलाधीश से मिलकर रण नीति तैयार करते हैं!” काग भुषंड ने कहा था। “हमारे साथ चलना कल!” उसने चुन्नी को आदेश दिया था। “हमारी ताकत के बारे में तुम ही जंगलाधीश को बताना!” उसका सुझाव था।
“पहले तो सुंदरी से ही मिलना होगा!” चुन्नी की राय थी। “सब कुछ सुंदरी के साथ तय करना होगा।” उसने काग भुषंड को सलाह दी थी।
“शायद ठीक कहती हो चुन्नी!” उसने आंखें नचाते हुए स्वीकार किया था। “हम तो भूल ही गये थे चुन्नी कि जंगलाधीश तो अब मात्र एक मोहरा है! सुंदरी ही सब कुछ है ..” उसने चुन्नी की ओर देखा था। “तुम्हारी तो सुंदरी के साथ खूब पटेगी।” वह हंस रहा था।
“खूब!” चुन्नी फड़क कर बोली थी। “हम दोनों सहेली हैं न!” वह भी हंस पड़ी थी।
मेजर कृपाल वर्मा