बिना विलम्ब किये पृथ्वी राज ने युद्ध की तैयारियां आरम्भ कर दी थीं।

दिल्ली में बुलाया पहला समर सम्मेलन एक उल्लास की लहर की तरह पूरे दिगंत पर छा गया था। बड़े बड़े इरादों को बगलों में दबाए और बड़ी बड़ी इच्छाओं के पुलिंदे उठाए सभी पदाधिकारी पूरी तैयारी के साथ सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे थे।

नकुल ने लाल किले में सब के लिए व्यवस्था बनाई थी। लाल किले की संरचना में सभी की सहूलियतों का ध्यान रक्खा गया था।

अब एक नए संसार का उदय होना था। आदमी का सपना तो अब समाप्त होने को था और जो नया सपना नजर आ रहा था वो तो बेजोड़ था।

हरी भरी धरती, पानी से भरे ताल तलैया ओर सुगंधित बहती बयार! पूरा भय रहित वातावरण, बेशुमार आजादी और सब के विकास के लिए सुनिश्चित अवसर।

इतने सुंदर सपनों को आंखों में सजाए पृथ्वी राज ने सभी आगंतुकों का भली भांति आगत स्वागत किया था।

तेजी और नकुल रात दिन एक कर इस सम्मेलन को सफल बनाने की भरसक चेष्टा में लगे थे।

छोटे शरीर वाले पृथ्वी राज को पद की बड़ी गरिमा ने बड़ा सा आकार दे दिया था। उसे लग रहा था जैसे उसका शरीर भीमकाय था, बहुत बड़ा था ओर सबसे बड़ा था। वह श्रेष्ठ था। वह जिम्मेदार था और उसका दायित्व उससे भी बड़ा था।

“हम से आदमी बहुत बड़ा है।” शशांक ने संवाद खोला था। “मैंने पहली बार आदमी का चोर दृष्टि से मुलाहजा किया है।” उसने सभा सम्मेलन में आये सभी जमा पदाधिकारियों को एक नजर भर कर देखा था। “बाप रे बाप!” शशांक ने अपने छोटे छोटे हाथ आसमान की ओर तान दिये थे। “इसके पास लड़ने के लिए जो सौदा सामग्री है वह तो असीम है भाई!” उसने एक मोटा अंदाजा सामने रक्खा था। “और इसकी सामर्थ्य ..?”

“तो फिर नहीं लड़ा जाये?” नकुल ने बात काटी थी। नकुल क्रोधित हो उठा था। उसे शशांक अब आदमी का जासूस लगा था। “डर रहे हैं सब तो ..?” नकुल ने जमा आगंतुकों को नापा था।

“डर तो कोई नहीं रहा है भाई!” विहंस कर बोले थे जंगलाधीश। “शशांक ने तो पते की बात बता दी है!” जंगलाधीश ने फिर से मुसकुराकर कहा था। “हमला करने से पहले हम भी तो शिकार को तोलते हैं, मित्र! छोटी सी भूल भी कभी कभी जान ले लेती है।”

सभा में एक सन्नाटा जैसा भर आया था। नकुल को जंगलाधीश की बात बेबुनियाद लगी थी। शशांक की लाई खबरें सुन कर उनपर सोच विचार करना अनिवार्य लगा था।

“शशांक भाई! आपके पास जो भी पते की बातें हैं आप हम सभी को बेधड़क बताइये!” मणि धर ने आदेश जैसा दिया था। “यह समर सम्मेलन है। यहां हर बात पर हर तरह का जिक्र होना जरूरी है। खास कर हम आदमी के बारे जितना ज्यादा जान लें उतना ही फायदेमंद होगा!” मणि धर ने आंख उठा कर पूरी सभा को देखा था। “हम तो कई बार युद्ध हारे हैं आदमी से।” वह तनिक मुसकुराया था। “लेकिन इस बार ..?”

“जरूर जीतेंगे ये युद्ध!” लालू ने तालियां बजाते हुए कहा था। “हम सब मिल कर लड़े तो जीत हमारी ही होगी। शक्ति संगठन में होती है, श्रेष्ठ। और अब हम सब संगठित हैं!”

लालू की ओर हर निगाह उठी थी। लगा था – वही इस संगठन की जान था। जो वह कह रहा था उस में दम था।

“आदमी बला का लड़ाका है।” शशांक ने अपनी बात फिर से जारी की थी। “यह आदमी लड़ता है। छल से लड़ता है, बल से लड़ता है और बुद्धि से लड़ता है।” शशांक ने बात को तोल दिया था।

“तो क्या आदमी एक नहीं अनेक है?” अबकी बार प्रश्न चुन्नी ने किया था। “कहते तो इस तरह हो – शशांक भाई कि आदमी कोई मायावी जैसा कुछ हो!”

“हॉं हॉं! आदमी है ही मायावी, चुन्नी बहन जी!” शशांक ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा था। “तुम देखना – यंत्र से लड़ेगा और मंत्र से लड़ेगा! तेग से लड़ेगा और तलवार से लड़ेगा।” रुका था शशांक। सभा में एक सन्नाटा भरने लगा था। “टेंकों से लड़ेगा और तोप से लड़ेगा। हवा में लड़ेगा और जमीन पर लड़ेगा।” शशांक कहता ही जा रहा था।

“तो फिर हम कैसे लड़ेंगे मित्र?” विहंस कर पूछा था नकुल ने। “इतना क्यों डराते हो भाई?”

एक छोटी चुहल सभा के बीचों-बीच दौड़ गई थी। सब को ताजा सांस लौटी थी। आदमी का तारी होता खौफ खाली सा हो गया था!

“दिमाग के अलावा आदमी के पास लड़ने के लिए होता ही क्या हथियार है?” शशांक ने अपनी बात पूरी की थी। “आज कल तो वह पृथ्वी को छोड़ कर आताल पाताल तक की खोज में लगा है। वह ऊपर देख रहा है तो वह शून्य में भी दौड़ लगा रहा है। अभी भी इस आदमी का पेट भरा नहीं है भाई।”

“ये सही मौका है मित्र, वार करने का!” काग भुषंड जो अब तक चुप बैठा था अनायास ही बोल पड़ा था। “आदमी ऊपर देख रहा है और हम नीचे। निकाल देते हैं इसके पैर के नीचे की मिट्टी!” आंखें नचाई थीं काग भुषंड ने। “पता ही न चले इसे कि कब क्या हो गया?” वह हंस रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading