गरुणाचार्य पंच परमेश्वर के मुखिया नियुक्त हुए थे। उनकी देखरेख में सारे महत्वपूर्ण फैसले होने थे। उनकी पारदर्शी समझ पर किसी को शक नहीं था। वह बड़े विद्वान थे। समझदार थे और सबके हितैषी थे! पक्षपात की बात तो उन्हें छू तक नहीं गई थी। उनके मुखिया चुने जाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं थी!
गरुणाचार्य का रुतबा एकबारगी सुर्खियों में छा गया था! जंगलाधीश को जलन होना स्वाभाविक ही था! उन्हें तो कोई पूछ ही नहीं रहा था!
अन्य चार पंचों का चुनाव भी बड़ी ही सूझ बूझ के साथ हुआ था। इस चुनाव में भी जंगलाधीश को नहीं पूछा गया था। उसके सामने तो केवल चुने चार पंचों के नाम रक्खे गये थे!
“ये सब क्या तमाशा है लालू!” जंगलाधीश बौखला गया था। “पंचों में न किसी शेर का नाम है न किसी बघेर का?”
“पंच परमेश्वर होते हैं!” लालू ने व्यंग पूर्वक कहा था। “और वो आप हैं नहीं!” उसने मुड़कर शशांक की ओर देखा था। “शेर और बघेर ..”
“अब जमाना लद गया शेर और बघेरों का जंगलाधीश!” शशांक ने लालू की बात को बड़ा किया था। “अब देखना ये है कि जो पंच बने हैं उनसे हम क्या फायदा उठा सकते हैं?”
जंगलाधीश ने मुड़ कर सुंदरी को देखा था। सुंदरी का देखा सपना अब साकार होता नजर नहीं आ रहा था। उसे तो अब लालू और शशांक पर भी शक होने लगा था। जो हवा अब चल पड़ी थी उसका तो रुख ही कुछ और था!
“गरुणाचार्य को किसी जाल में फंसाना तो असंभव है!” सुंदरी ने सब कुछ समझ कर राय दी थी। “वह प्रधान पंच है! वह तो न्याय ही करेगा!”
“जाल में न फंसे! पर चाल पर तो मरेगा?” लालू ने फिर से पत्ते फेंके थे। “अरे भाई! तुम से अच्छी चाल चलता कौन है रानी! उड़ा दो इसे?”
शशांक जोरों से हंसा था। जंगलाधीश को यों बातें बनाते ये दोनों धूर्त लगे थे। उसका मन तो आया था कि इन दोनों की एक साथ गर्दन दबोच दे। लेकिन सुंदरी ने इशारे से उसे वर्ज दिया था!
“इन पंचों के नाम सुझाए किसने हैं?” जंगलाधीश सोच में डूबा था। “न तो हुल्लड़ हाथी हमारा है और न ही ये मणि धर, चुन्नी तो काग भुषंड की है और नकुल सरेआम पृथ्वी राज का पिट्ठू है! हमारे पक्ष में तो कोई फैसला हो ही नहीं सकता!” उसने साफ कहा था।
“न हो!” शशांक कूदा था। “हम गलत फैसले को कौन सा मानने वाले हैं! अभी तो राजा आप ही हैं! और आप ही रहेंगे ..!” उसने दो टूक फैसला कर दिया था।
जंगलाधीश को यह बात सोलहों आने जंच गई थी। वह इन पंचायत के पचड़ों में क्यों पड़े? वह राजा था – तो राजा था!
सुंदरी को भी शशांक का सुझाव अच्छा लगा था। अगर जंगलाधीश राजा बना रहता है तो वह तो रानी थी ही! व्यर्थ के पचड़ों से फायदा ही क्या था? आदमी से जंग लड़ना कौन सा आसान काम था? काग भुषंड के शोर मचाने से न तो शेर भाग सकते थे और न ही आदमी मर सकते थे!
ये अनचायत पंचायत सब व्यर्थ का चोंचला था!
लेकिन जब से चुन्नी पंच चुनी गई थी तभी से उसके पर उग आये थे! काग भुषंड ने भी महसूसा था कि उसका शक निराधार नहीं था! अगर उसे शिकस्त का मुंह देखना पड़ा तो इसका कारण चुन्नी ही होगी – वह जानता था!
चुन्नी के साथ हुई शशांक की बैठकों का काग भुषंड को पता चल गया था। और शशांक कितना मीठा ठग था – यह भी काग भुषंड जानता था। चुन्नी भोली थी। अब उसे डर था कि फिर एक बार उसकी बनी बनाई बात बह न जाये!
पंचायत की सब से कमजोर कड़ी को पकड़ा था शशांक ने!
“भगवन! अब तो सारी सृष्टि का भार आप के कंधों पर आ गया है!” काग भुषंड ने बड़े ही मधुर स्वर में गरुणाचार्य को उसका दायित्व समझाया था। “आप तो न्याय प्रिय हैं! आप तो विद्वान हैं! अब जो भी फैसला पंचायत करेगी उसमें हमारा अहित तो हो ही नहीं सकता!”
गरुणाचार्य ने बड़े ही ध्यान पूर्वक सुना था काग भुषंड को। उसके स्वर कुछ बदले बदले से लगे थे। धूर्त अगर सज्जन बनने का स्वांग भी करता है तो और भी ज्यादा धूर्त दिखाई देता है! गरुणाचार्य ने हंसना चाहा था पर अपने पद की गरिमा को सहेजते हुए सहज ही बने रहे थे!
“चुन्नी और शशांक मिल कर कोई खेल रच रहे हैं!” काग भुषंड ने धीमे से गरुणाचार्य के कानों में बात डाली थी। “इन पंचों पर भी नजर रखियेगा!” उसने सुझाया था। “बना बनाया खेल बिगड़ सकता है!” उसने चेतावनी दी थी और चला गया था।
मेजर कृपाल वर्मा