“शेष नाग के काटे का इलाज तो खोजना ही होगा पृथ्वी राज!” नकुल की चिंता बढ़ती जा रही थी। “अगर सर्प टूट पड़े तो चूहों का बनता क्या है?” उसने स्थिति की संगीनियत समझाई थी। “तुम तो तभी तक हो जब तक ..”

“नहीं भाई! जब तक धरती है, हम हैं!” पृथ्वी राज तुनका था। “इस तरह से हार मानने वाले तो हम भी नहीं हैं!” उसने मूंछें मरोड़ी थीं। “ये मत समझो कि हम बित्ते भर के हैं और हमारा कोई वजूद ही नहीं है!” वह फिर से भड़का था। “जो मारक शक्ति हमारे पास है उससे तो आदमी भी घबराता है!” अबकी बार वह मुसकुराया था। “महा मारी का अमोघ अस्त्र हम कई बार इस्तेमाल कर चुके हैं!” उसने नकुल की याददाश्त ताजा की थी।

नकुल ने मुड़ कर पृथ्वी राज को आंका था। वह तो समझ रहा था कि उनके पास कुछ था ही नहीं। लेकिन पृथ्वी राज तो जितना जमीन के भीतर था उतना ही बाहर था! नकुल किसी भी तरह से उसे भयभीत न कर पा रहा था। उसे अपना उल्लू सीधा होता नजर नहीं आ रहा था!

“विडम्बना ये है मित्र कि मणि धर भी बराबर का पंच है!” नकुल ने अब दूसरे पत्ते फेंके थे। “और तुम तो जानते ही हो कि पंचों को पटाना कितना कठिन काम होता है!” वह कूद कर मूढ़े पर जा बैठा था।

“आप फिर किस मर्ज की दवा हैं भाई साहब?” अबकी बार तेजी बोली थी। “अगर हमारा साम्राज्य स्थापित होता है तो उसमें आप की भी तो भलाई है!” तेजी ने मूढ़े पर बैठे नकुल को पूछा था। “हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो बात नहीं बनती न!” तेजी ने उलाहना दिया था। “सर्पों को अगर आप शिकस्त नहीं देंगे तो ..?”

“मैं उसकी तो बात ही नहीं कर रहा हूँ भाभी!” नकुल का मिजाज कुछ ढीला हुआ था। “मैं तो कह रहा था कि सर्पों की संख्या नेवलों के मुकाबले कहीं बहुत ज्यादा है!”

“तो आप चूहों को अपने साथ ले लो!” तेजी ने अपनी गोट आगे सरकाई थी। “हम तो असंख्य हैं! हम बलिदान देने से कभी पीछे नहीं हटते नकुल!”

“सो तो है – भाभी!” सकपका गया था नकुल। “अगर आप जैसी वीरांगनाएं हमारे साथ होंगी तो फतह हमारी हुई समझिये!”

तेजी का तेज तन आया था। वीरांगना का संबोधन उसे अच्छा लगा था। अचानक ही नकुल पर उसका प्यार उमड़ आया था। उसने नकुल को नई निगाहों से देखा था। पृथ्वी राज को ये नया बनता बनता समीकरण बुरा लगा था!

तेजी पहले से ही कम तेज न थी! अगर इस नकुल ने उसे ज्यादा चढ़ा दिया तो शायद दिल्ली की वह स्वयं महारानी बन बैठे और फिर वह ..?

नहीं नहीं! ऐसा होना तो असंभव था – पृथ्वी राज ने स्वयं को कठिनाई से समझाया था। तेजी उसे कभी त्याग नहीं सकती! आखिर आदमी और चूहों में कुछ फर्क तो था ही!

“हुल्लड़ और कुल्लड तुम दोनों सुधरोगे नहीं!” हाथियों की कमर पर कूद फांद करता काग भुषंड अपनी गोट पकाने आया था। “हाथियों और चूहों का क्या मेल है भाई?” उसने प्रश्न दागा था। “उस मूर्ख नकुल के बहकावे में आ कर तुम लोग सोच रहे हो कि तुम पृथ्वी पर राज करोगे?” उसने हुल्लड़ और कुल्लड दोनों को एक साथ घूरा था। “जित्ते मोटे हो उत्ती ही मोटी अक्ल के मालिक हो!” व्यंग किया था काग भुषंड ने!

हुल्लड़ और कुल्लड दोनों ने एक साथ काग भुषंड को घूरा था।

रात के गहन अंधकार में हुई उस गुपचुप मीटिंग का राज इस काले कौवे के हाथ कहां से लगा – उन दोनों का आम प्रश्न था। वो दोनों ही समझ नहीं पा रहे थे कि वो कौन था जो उनकी बात चुपके से उड़ा ले गया था?

शक तो शशांक पर ही था। लोप अलोप होता शशांक जासूसी करने में माहिर था। जबान का इतना मीठा कि शहद समान! और शरीर ऐसा कि हवा में ही विलीन हो जाए!

“हमारी तुम्हारी पटेगी नहीं भूतेश्वर!” गुल्लड़ अकड़ के साथ बोला था। “हम चाहे जिसके साथ जाएं – या कि न जाएं, हम पर काई बंदिश तो है नहीं!” उसने अपनी सूंड़ को फटकारा था। “भाई नकुल का प्रस्ताव था! सो हमें पसंद आ गया!”

काग भुषंड ने अपनी आंखें मटकाई थीं। हाथियों की एक कमर से दूसरी पर कूदा था। फिर उसने अपनी चोंच को पैना किया था। उड़कर सामने पीपल के पेड़ पर बैठ कर अब उसने दोनों भीम काय हाथियों को चींटी समान मानकर देखा था।

“राज तो हमारा ही रहेगा!” काग भुषंड संभल कर बोला था। “अपनी फजीहत करा लोगे तुम लोग!” उसने फिर से आंखें मटकाई थी। “सब लोगों का थोड़े थोड़े में गुजारा होता है .. लेकिन तुम लोग ..” काग भुषंड ने हाथियों के सीधे पेट पर लात मारी थी। “टनों में और मनों में खाते हो भाई! इतना आयेगा कहां से? धरती को तो तुम ही उजाड़ कर रख दोगे!”

“पेट में ही तो खाते हैं!” गुल्लड़ भभका था। “भूखों तो मरने से रहे!”

“चूहों के साथ रह कर कितना मिलेगा खाने को – जानते भी हो?” हंसी था काग भुषंड। “तोले दो तोले – बस!” उसने व्यंग किया था। “पृथ्वी राज के राज में पोल पट्टी नहीं चलेगी बंधु! सब को तुला नपा मिलेगा!” काग भुषंड जोरों से हंसा था। “सबको समान .. सबको बरोबर!” उसने उपहास किया था।

हाथियों के तो होश उड़ गये थे! न जाने ये कैसी हवा चल पड़ी थी? आब कोई पेट भर कर भी न खाएगा तो जिंदा कैसे रहेगा?

“और हमारा तुम्हारा भाई चारा तो कब का चला आया है!” काग भुषंड ने अगली गोट को आगे किया था। “और हम तो हैं मस्त कलंदर! जो चाहे खाओ जितना चाहे खाओ, जी चाहे तो गाओ, नहाओ और मौज मनाओ!” उसने अपने पंख फड़फड़ाए थे। “हम तो सब का आदर करते हैं जी! गजराज हो .. सो रहोगे!” वह उड़ कर अब हुल्लड़ की कमर पर आ बैठा था। “हमारा तुम्हारा तो साथ बनता है भाई!” उसने बात को पक्के पर बिठाया था।

हुल्लड़ ने कुल्लड को घूरा था। दोनों ने काग भुषंड की बात को दोहरे अर्थों में सोचा था और समझा था! शायद ये कौवा ही पते की बात कर रहा था। कुछ भी था – था तो दुख दर्द में शामिल! चूहों का तो राग विराग ही अलग था। अगर कल को उनके पेट पर ही लात पड़ी तो उनका तो सर्वनाश ही होना था!

“भूतेश्वर!” हुल्लड़ बोला था। “किसी तरह अगर हम राजा हो जाएं और ..”

“हो जाओगे!”

“करना क्या होगा?”

“जो मैं कहूँ वो!” कहकर काग भुषंड कूद कर हुल्लड़ की कमर पर आ बैठा था।

आदमियों के बाद हाथियों का राज होना ही स्वाभाविक था। और अगर यह काग भुषंड कह रहा था तो जरूर उनकी बात में दम था! न तो चूहों के साथ उनकी पटरी बैठेगी और न ही लालू और शशांक की बातों में दम था! लेकिन काग भुषंड जो भी करता था – साफ साफ करता था।

और फिर गरुणाचार्य सरपंच था। अगर कुल्लड अपनी गोट गरुणाचार्य के साथ बिठा लेता है तो बात बनने में देर कितनी थी?

“मंजूर है, भूतेश्वर मंजूर है!” हुल्लड़ और कुल्लड दोनों सूंड़ें हिला हिला कर कह रहे थे। “हमें सब मंजूर है लेकिन राज पाट हमारा ही होना चाहिये!”

दो गुटों के बीच एक बड़ा समझौता पहली बार सामने आया था!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading