प्रभु की कृपा से सेठ जमुनादास के घर पुत्र रत्न का आगमन हुआ है।
मुझे याद है जब वो आश्रम में पत्नी सहित पधारे थे और आशीर्वाद ले कर गये थे। उनकी पत्नी सरला बहुत ही नेक और धर्मावलंबी है! उनके अटूट विश्वास पर मुझे तब भी भरोसा था कि प्रभु उन्हें वरदान अवश्य देंगे! और अब तो ..
आश्रम में धूम धाम मची है। वंशी बाबू बहुत व्यस्त हैं। सेठ जमुनादास आश्रम में पधारे हैं। उनका आग्रह है कि पुत्र का नामकरण संस्कार यहीं आश्रम में हो। वंशी बाबू ने भी उनका आग्रह ठुकराया नहीं है। उनके आने से आश्रम में रौनक बढ़ गई है। शनिवार का कीर्तन तो इतने जोशोखरोश के साथ हुआ है कि पूछो मत।
गुलनार ने भी कीर्तन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। सेठानी सरला के साथ सहायता में खड़ी गुलनार मुझे बहुत अच्छी लगी थी। गुलनार के चेहरे पर एक अलग नूर दिखा था मुझे। निस्वार्थ सेवा करने से आदमी अलौकिक लगने लगता है।
नाम करण संस्कार के उत्सव के लिए वंशी बाबू ने सारी जिम्मेदारी श्री राम शास्त्री को सोंप दी है। बाकी बंदोबस्त उनका है, लेकिन नामकरण श्री राम शास्त्री ही करेंगे। मुझे भी अच्छा लगा है कि एक विद्वान आदमी को भी आश्रम में कुछ करने को मिला है। कुछ सेवा तो श्रम से होगी ही और उनकी दान पेटी में भी कुछ इजाफा हो जाएगा।
सेठ जमुनादास सभी आश्रम के लोगों के लिए उपहार लाए हैं। उन्होंने एक मोटी रकम भी आश्रम के खाते में जमा कराई है। आश्रम को अनुदान देने के साथ साथ खान पान का खर्चा भी वही उठा रहे हैं। खूब दावतें चल रही हैं। आश्रम में आनंद उमड़ रहा है। प्रभु का प्रसाद ग्रहण कर सभी आश्रम वासी महा प्रसन्न हैं!
नाम करण संस्कार के लिए श्री राम शास्त्री ने वेदी बनाई है। हवन हुआ है। फिर मंत्रोच्चार के साथ उन्होंने शिशु का संसार में स्वागत किया है। हम सभी ने भाग लिया है और श्री राम शास्त्री ने शिशु का नाम गणपति रक्खा है। सेठ और सेठानी महा प्रसन्न हैं।
श्री राम शास्त्री की ओजस्वी वाणी से उच्चरित मंत्रोच्चार में लगा है जैसे वेदों के संयोग सुनाई दिये हों। मुझे बेहद अच्छा लगा है। आज कई बार मन में आया है कि काश मैं भी कुछ पढ़ा लिखा होता! लेकिन ..
“ये आपके लिए है शास्त्री जी।” सेठ जमुनादास ने अलग से शास्त्री जी को दक्षिणा दी है। सभी का अनुमान है कि सेठ जी ने शास्त्री जी को एक मोटी रकम दी होगी।
वंशी बाबू के खिल गये चेहरे का अर्थ मैंने लगा लिया है। मैं जानता हूँ कि वंशी बाबू को उम्मीद है कि ये रकम आश्रम के खाते में ही आएगी। आश्रम के खर्चे भी तो बहुत हैं और वंशी बाबू के पास यही एक आमदनी हैं जो हर रोज तो होती नहीं है। लेकिन फिर खर्चे तो खर्चे हैं। मैं भी प्रसन्न हूँ कि चला वंशी बाबू के पास कुछ तो पहुंचेगा और ..
लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। श्री राम शास्त्री ने तो मिली रकम की चर्चा तक नहीं की है।
कई दिनों तक एक सन्नाटा मेरे और वंशी बाबू के बीच डोलता ही रहा है।
“बहुत लालची है ये शास्त्री!” वंशी बाबू शिकायत कर रहे हैं। “इसे नहीं रखना आश्रम में।” उनका कहना है। “ये अन्य लोगों को भी खराब करेगा।” वंशी बाबू ने आरोप लगाया है शास्त्री के ऊपर।
अब मैं क्या कहूँ? देव तुल्य लगने वाला श्री राम शास्त्री अपनी सारी शाख गंवा बैठा है।
“सुधरने का एक मौका दे दो वंशी बाबू!” मैंने आग्रह किया है। “वक्त तो लगता है आदमी को सन्यासी बनने में!” मैं हंस पड़ा हूँ।
लेकिन कष्ट तो मुझे भी हुआ है कि श्री राम शास्त्री जीने की उसी राह पर फिर से चल पड़ा है जिस पर चलते चलते उसकी पुत्र वधु ने उसे जूते मार कर घर से भगाया था।
अब ये और कहां पहुंचेगा – कौन जाने?
