शनिवार का दिन आश्रम के लिए अनूठा दिन होता है।

शाम को कीर्तन होता है। आशीर्वाद लेने आये लोग भी कीर्तन में शामिल होते हैं। दूर दराज से भी लोग कीर्तन में भाग लेने आते हैं। खूब भीड़ लगती है। पंडित प्रभु पाद जी की मंडली सभा को अपने भजन कीर्तन और वाणी विलास से मोह सा लेते हैं। सभी आगंतुक भजन कीर्तन में शामिल होते हैं और सभी गाते हैं और कभी कभी तो सभी नाचते भी हैं!

कीर्तन में मुख्यतः कान्हा की बाल लीलाएं गाई जाती हैं। कान्हा के अलावा श्री राम, शिव पार्वती और ब्रह्मा विष्णु महेश का भी स्मरण होता है। बीच बीच में कुछ आख्यान-व्याख्यान भी चलते हैं।

मेरे लिए आश्रम में एक ईंट पत्थरों का आसन बना है जहां में भी आंखें बंद कर बैठा बैठा कीर्तन करता हूँ और भक्ति का भरपूर आनंद उठाता हूँ। इस उपक्रम को आप मेरे ही मन की उपज मानिए। कारण कि मन बहुत चंचल है अतः ध्यान धारणा में इसे कैद करना आसान नहीं होता। लेकिन कीर्तन एक ऐसी विधा है जहां पर मन हमारे पास आकर बैठ जाता है और स्वयं भी प्रभु से बतियाता है!

जब पंडित प्रभु पाद जी की मंडली कान्हा की शरारतें और उसकी शिकायतें यशोदा मां को कह सुनाती है तो श्रोतागण झूम झूम उठते हैं! सभी अपने तन मन की सुध बिसार कर कान्हा में तल्लीन हो जाते हैं। लगता है जैसे हम सभी कान्हा हैं और अपनी अपनी कथा व्यथा कह रहे हैं अपनी अपनी यशोदा से!

सच भी यही है। जब हम आपा भूल जाते हैं तो सांसारिक व्याधा से कट जाते हैं! भक्ति रस का आनंद हमारी रग रग में संचारित हो जाता है और हमारे सारे संताप हर लेता है! इन पलों में हम – हम होते कहां हैं?

मैं आती संगीत लहरी के साथ झूम रहा था, गा रहा था और आत्म विभोर था। लेकिन जैसे ही धुन बजना बंद हुई थी मैंने आंखें खोल दी थीं। और .. और .. मैंने देखा था कि ठीक दूसरी ओर मेरे सामने गुलनार बैठी थी। तभी गुलनार ने भी आंखें खोली थीं और मुझे देख लिया था। हम दोनों की आंखें चार हुई थीं। लेकिन मैंने झट से आंखें बंद कर ली थीं। मैं .. मैं .. चाहता था कि .. गुलनार ..

लेकिन किसका कीर्तन मैं तो अब गुलनार के साथ रेलवे स्टेशन पर खड़ा खड़ा भागने की जुगत बिठा रहा था।

“भोजपुर तक जाएगी ये रेल गाड़ी!” मैंने गुलनार को बताया था। “चलते हैं भोजपुर!” मैंने उसे पूछा था। “वहां पहुंच कर देख लेंगे कुछ ..”

“ठीक है!” गुलनार ने आहिस्ता से कहा था।

हम दोनों डरे हुए थे। टिकट ले कर हम रेल गाड़ी के डिब्बे के एक कोने में चिपक कर बैठ गये थे। गुलनार मुझसे सट कर बैठी थी। उसके शरीर की गर्मी मुझे सजग किये थी। मेरी आंखों में नींद का नाम न था और गुलनार भी एक चोरी के माल की तरह मेरी निगरानी में थी!

सुबह सुबह गाड़ी भोजपुर पहुंची थी। स्टेशन के साथ ही एक मंदिर और धर्मशाला थी। हम दोनों पहुंचे थे तो हमारी भेंट स्वामी श्रीनाथ जी से हुई थी। गुलनार ने जब उनके पैर छूए थे तो मैं भी पीछे न रहा था। आशीर्वाद देते देते उन्हें हमारी कथा व्यथा समझ आ गई थी।

“भूखे प्यासे भी हो?” उनका प्रश्न था। “कोई बात नहीं!” कह कर उन्होंने भोला को पुकारा था। “इन्हें 24 नम्बर में रख दो!” वो बोले थे। “खान पान भी करा देना।” उनका आदेश था।

उस कमरा नम्बर 24 में हम दोनों अकेले पुरुष और महिला पहली बार अपने स्वर्ग को पा गये थे ओर अपने एकांत से खूब मिले भेंटे थे।

“स्वर्ग जाने का सीधा मार्ग भक्ति है!” पंडित प्रभु पाद जी संगत को बता रहे थे। “और कीर्तन तो सनातन का एक ऐसा साधन है जहां आप हर व्याधा से बच जाते हैं!”

“झूठ!” मैं चीख पड़ना चाहता था। “ये गुलनार .. कीर्तन में आ बैठी ये गुलनार ..?”

लेकिन मौन ही बैठा रहा था में!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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