वंशी बाबू को अपने परास्त हुए मन प्राण में तनिक सी जान लौट आई लगी थी।

पुलिस को बुलाओ – यह स्वामी जी की दहाड़ अभी तक उनके कानों में गूंज रही थी। आज पहली बार उन्होंने स्वामी जी का रौद्र रूप देखा था। आज पहली बार लगा था कि स्वामी जी भी कठोर आदेश दे सकते थे। गुलाबी कांप उठी थी। गुलाबी को सदमा लगा था। गुलाबी का सारा खेल खराब हो गया था। लेकिन वंशी बाबू बेहद प्रसन्न थे।

लेकिन .. लेकिन गुलनार मेरी पत्नी है – स्वामी जी का ये कैसा स्वीकार था?

क्या गुलनार वास्तव में ही स्वामी जी की पत्नी थी? वंशी बाबू इस सामने आए सच को पचा नहीं पा रहे थे। ये कौन सी नई माया रच रहे हो प्रभु – वंशी बाबू परमेश्वर को याद कर रहे थे। ये तो एक नया ही आश्चर्य था – कोई बेहद असहज लगने वाला खेल था।

“हां हां! इंस्पेक्टर साहब मैं आश्रम से वंशी बाबू बोल रहा हूँ।”

“नमस्ते! फरमाइए वंशी बाबू!” इंस्पेक्टर गणेश की मधुर आवाज गूंजी थी।

“हमारा खयाल नहीं रखते हैं आप!” वंशी बाबू ने शिकायत की थी।

“गलत बात है वंशी बाबू! हमें सब पता होता है लेकिन आप नहीं बुलाते तो हम नहीं आते!”

“अब आइए! पुलिस के साथ। गुलाबी गेंग का हंगामा है। कोई अच्छी सी महिला कर्मचारी भेजिए जो इन औरतों के बिगड़े दिमाग ठीक कर दे।”

“कंगना दलाल आ रही हैं।” हंसा था इंस्पेक्टर गणेश। “आप के सारे दुख दूर हो जाएंगे।”

वंशी बाबू ने एक लंबी राहत की सांस ली थी।

“पुलिस आती है तो घबराना बिलकुल नहीं है।” गुलाबी ने आश्रम की सभी औरतों को इकट्ठा करके सलाह दी थी। “इज्जत का सवाल है। हमें लड़ना तो होगा ही।” गुलाबी ने इरादा व्यक्त किया था।

“चोरी तो हुई है। माल भी बरामद हुआ है।” मंजू ने बीच में बोलना आरंभ किया था। “मुन्नी डरना नहीं है। कहना कि तुमने गुलनार के झोले से हीरों का हार बरामद किया था।”

“मैंने पुलिस से जंग लड़ी है ओर जंग जीती है।” गुलाबी ने फिर से उन्हें समझाना आरंभ किया था।

याद हो आया था गुलाबी को कि किस तरह उसने पुलिस को उखाड़ा था और फिर ईंट से ईंट बजा दी थी।

“लेकिन आश्रम को तो सुरक्षित रखना था।” गुलाबी ने मन ही मन दोहराया था। “उसे तो अब मठाधीश बनना था। पुलिस को साथ लेने में फायदा था।” उसने नई युक्ति बनाई थी। “गुलनार और वंशी के व्यभिचार की कहानी मैंने देनी है पुलिस को!” गुलाबी ने अपना इरादा व्यक्त किया था। “और जब मैं कहूँ कि आश्रम की औरतों के साथ रात भर रासलीला होती है – तो सब ने एक स्वर में हां भरनी है। रो रो कर पुलिस को बताना है कि किस तरह उनके साथ अत्याचार होता है। ये वंशी बाबू दलाल है – हम सब ने खुले आम कहना है।” गुलाबी ने मुड़ कर औरतों के जमघट को देखा था। “एक बार आश्रम अपने हाथ में आ जाएगा तो ठाठ देखना दोस्तों।” हंसी थी गुलाबी। “पुलिस को प्रशासन के लिए साथ लेंगे! उनकी ड्यूटी लगवाएंगे आश्रम में। बस – चला धरा है हमारा काम!”

गुलाबी गेंग में खुशी की लहर दौड़ रही थी।

“इस मोढ़ा का क्या करें?” मंजू का अहम प्रश्न था। “ये यों न भागेगा!”

“अब तो जोरों से भागेगा – मेरी जान!” गुलाबी जोरों से हंसी थी। “ये मेरी पत्नी है – गुलनार – यही कहा था ना उसने? याद है न मंजू?” गुलाबी ने हाथ नचा नचा कर स्वामी पीतांबर दास की नकल उतारी थी। “अब बताएगा तो ये कौन है, कहां रहती है और ये औरत कौन सी जादू की छड़ी है जिसने इसे बैरागी बनाया था?”

हाहाहा! एक जोरों की हंसी अट्टहास बन कर आश्रम में गूंजी थी।

“जब जेल जाएंगे दोनों तो मजा आ जाएगा।” मुन्नी चहकी थी। “भक्तों को आशीर्वाद तो कोई भी दे सकता है।” मुन्नी का सहज सुझाव था।

लेकिन गुलाबी अचानक ही असहज हो आई थी।

स्वामी पीतांबर दास के चले जाने के बाद गुलाबी को कोई रास्ता न सूझ रहा था। कौन था – जो स्वामी के बाद लोगों को जीने की राह दिखाएगा और आशीर्वाद देगा!

कैसे चलेगा आश्रम?

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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