अमरीश जी और उनके परिवार के जाने के बाद भी मामला शांत नहीं हुआ था।
“ये कौन सा अनिष्ट घुस आया था आश्रम में?” स्वामी पीतांबर दास समझ ही न पा रहे थे।
अनायास ही उन्हें याद हो आया था – पिताजी का दूसरा विवाह और घर में कानी का प्रवेश। कानी का त्रिया चरित्र एक एक कर उन्हें याद आने लगा था और याद आया था कि किस तरह कानी ने सब अपने हाथों में समेट लिया था और उन्हें ..
“गुलाबी को अगर भनक भी लगी कि गुलनार उनकी पत्नी है – तो गजब हो जाएगा!” स्वामी जी मात्र सोच कर कांप उठे थे। “अमरीश जी तो अपने घर चले गए लेकिन वो कहां जाएंगे?” उनपर एक सोच तारी हो गया था। “पता नहीं – उनके चार बेटे ..?”
“बबलू ही नालायक निकला!” एकाएक स्वामी जी कह गए थे।
“नहीं नहीं! नालायक तो पीतू था।” साथ के साथ उत्तर भी चला आया था। “अगर पीतू पव्वा न बन जाता तो बबलू का रिश्ता हरगिज न टूटता! उसके बाद तो ऊपर उठ जाता परिवार!”
सच बात थी। स्वामी जी ने स्वीकार में सर हिलाया था। दोष उन्हीं का रहा – वह मान गए थे। अमरीश जी का चरित्र शीशे सा चमकता है। तभी तो वो एक महान संकट से भी उबर आए हैं। अब संकट उन पर आया तो क्या करेंगे स्वामी जी?
“चोर तो पकड़ा जाना चाहिए!” मंजू की मांग थी। “बाहर का तो कोई चोरी करने आएगा नहीं!” मंजू की राय थी। “चोर हमारे ही बीच है!” मंजू का एलान था।
“सब की तलाशियां ली जाएं!” गुलाबी ने प्रस्ताव धरा था।
“ठीक बात है!” श्री राम शास्त्री ने समर्थन किया था। “ये तो आश्रम की प्रतिष्ठा का प्रश्न है।” शास्त्री जी का मानना था।
वंशी बाबू ने श्री राम शास्त्री को कठोर निगाहों से घूरा था। ये पढ़ा लिखा मूर्ख है – वंशी बाबू ने मन में कहा था। गुलाबी गेंग को अभी तक नहीं पहचाना है इसने – उन्हें एहसास हुआ था। स्वामी जी के अलावा अब वंशी बाबू के पास कोई सहारा न बचा था। लेकिन स्वामी जी भी इस पूरी क्रियाकलाप के गवाह बनने को तैयार न थे। असंपृक्त बने हुए थे स्वामी जी!
सभी आश्रम वासियों की तलाशी लेने का प्रस्ताव सभी को मान्य था।
“एक कमेटी बनाते हैं!” मंजू ने योजना तैयार की थी। “छह नारी और पांच पुरुष की कमेटी बनाते हैं। एक पुरुष एक नारी एक टीम बनेगी। मैं सबका निरीक्षण करूंगी – तलाशी अभियान में।” मंजू ने रुक कर वंशी बाबू को देखा था। वंशी बाबू मौन थे।
“सुझाव तो ठीक है!” श्री राम शास्त्री बोल पड़े थे।
“लेकिन आप टीम में शामिल नहीं होंगे!” गुलाबी ने ऐलान किया था। “माधव मिस्त्री होंगे पुरुषों की ओर से!” गुलाबी का फरमान था।
“पहले सभी नर नारियों की तलाशी होगी, फिर सामान असबाब टटोला जाएगा।” मंजू का कहना था। “चोर पकड़ में आने के बाद ..”
“आश्रम से निकाल देंगे!” श्री राम शास्त्री ने सुझाव रक्खा था।
“चोरी की सजा भी तो मिलनी चाहिए?” गुलाबी ने सब को संबोधित कर पूछा था।
इस प्रश्न पर कई पलों तक मौन छाया रहा था।
“इसमें तो स्वामी जी की सहमति लेनी होगी!” वंशी बाबू बड़ी देर के बाद बोले थे। “मैं उनसे परामर्श कर के बताऊंगा!” उनका सुझाव था।
“ताकि चोर भाग जाए!” गुलाबी ने नाराज होते हुए पूछा था। “स्वामी जी बेचारे किसी के भले बुरे में शामिल नहीं हैं। वो तो संत हैं – अकेले हैं और उन्हें ..”
“तलाशी लेने में हर्ज क्या है?” मंजू ने पूछा था। “अगर चोर पकड़ा जाता है – तब कि तब देख लेंगे!”
गुलाबी महा प्रसन्न थी। उसे अचानक ही पूरा आश्रम अपनी मुट्ठी में समा गया लगा था। मठाधीश बनने का सपना सबल हुआ लगा था। गुलाबी का आत्माभिमान अब चरम पर था। अब उसे दिख रहा था कि वो अपने जीने के अभीष्ट को पा लेगी। परीक्षित के जाने के बाद जो क्षति उसके जीवन में आ गई थी – अब उसकी क्षतिपूर्ति हो जाएगी।
अमरपुर आश्रम की मठाधीश बनी गुलाबी अपने लिए कोई भी एक नाम अलग से खोज लेना चाहती थी।
जीने की एक नई नवेली राह गुलाबी की आंखों में आकर बस गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड