“ओ मइया!” जैसे ही श्रावणी मां उदय हुई थी मंजू की आह निकल गई थी। “इसे सजा दिया ..?” उसने आश्चर्य जताया था।

“मरने मरने को थी जब आई थी। बचा लिया था स्वामी जी ने।” गुलाबी को याद आ रहा था।

“अब तो गलुए लाल हो गए हैं, दारी के! देख तो – कैसा हुस्न चढ़ा है।” मंजू एक टक श्रावणी मां को देखे जा रही थी।

“सेठानी सरोज की गोट है!” गुलाबी ने मंजू की आंखों में देखा था।

“इसी को पीटते हैं पहले!” मंजू ने एलान कर दिया था – मौके पर।

श्रावणी मां की दैदीप्यमान छटा ने चारों ओर उजाले बखेर दिए थे। भक्ति की शक्ति और सौंदर्य का कमाल मिल कर धमाल मचा रहे थे। हर आंख ठहर कर श्रावणी मां के दर्शन कर रही थी। हर कोई श्रावणी मां के प्रति प्रशंसा से भर आया था।

लेकिन स्वामी पीतांबर दास अपनी सुधबुध भूले खड़े थे। उनके दिमाग में एक द्वंद्व उठ खड़ा हुआ था – जिसे वो गुलाबी मान रहे थे वो तो गुलनार थी। कई बार उन्होंने आंखें झप झपाई थीं लेकिन गुलाबी के स्थान पर हर बार ही गुलनार उजागर हुई थी। उन्होंने हठ पूर्वक अपनी दृष्टि को रोक लिया था। वो गुलनार से आंखें चार करना नहीं चाहते थे।

“ये कौन सी माया रच डाली प्रभु!” स्वामी जी ने मन ही मन कहा था। “ये विचित्र घटना क्यों घटी है? अब गुलनार कहां से आ गई?” वह कुछ भी समझ न पा रहे थे।

श्रावणी मां के आगमन के साथ ही सौभाग्यवती सुंदरियां आशीर्वाद लेने उमड़ पड़ी थीं!

पूजा अर्चना के साथ-साथ मधुर संगीत प्रवहमान हो रहा था। अंजली और अविकार का जोड़ा आज विशेष रूप से तैयारी के साथ सभा में शामिल हुआ था। जहां अंजली स्वयं में एक संपूर्ण सुंदरी थी वहीं अविकार भी किसी गंधर्व से कम न लग रहा था।

“अइयो राधे तू पनघट पै आज!” अविकार ने सुर साधा था तो अंजली ने तान भरी थी। “तू .. तू .. राधे अइयो पनघट पै आज!”

जहां भक्त मधुर संगीत का स्वाद चख रहे थे वहीं स्वामी पीतांबर दास डरे सहमे चोरी चोरी गुलनार को देखे जा रहे थे।

“मैं .. मैं .. आज रात को ही भाग जाऊंगा, पीपल दास जी!” स्वामी पीतांबर दास ने अपने मंसूबे बयान किए थे।

“सभी प्रभु की इच्छा से होता है पीतांबर!” पीपल दास मुसकुराए थे। “मुकाबला करो! भागते क्यों हो?”

स्वामी पीतांबर दास ने सीधा गुलनार की आंखों में झांका था।

“मैं तुम्हें भूली कब थी पीतू!” गुलनार की ही आवाज थी।

“क्यों ..? तुम्हीं ने तो नदी में फिकवाया था।” गुर्राए थे स्वामी जी। “और अब मुझे आश्रम से निकाल फेंकेंगे लोग!”

“क्या कभी क्षमा नहीं करोगे अपनी गुलनार को?”

“नहीं! मैं तुम्हारा स्पर्श भी नहीं करूंगा! मैं अखंड ब्रह्मचारी हूँ! मैं प्रभु का अनन्य भक्त हूँ। मैं विपुल वैरागी हूँ। मैं अब .. परमेश्वर ..”

“मेरे परमेश्वर तो तुम्हीं हो पीतू!”

“माया हो तुम – मैं ये जान गया हूँ गुलनार!”

“मैं तुम्हारी दासी बन कर रहूंगी पीतू!”

“नहीं! तुम फिर दगा दोगी!”

स्वामी पीतांबर दास ने आंखें मूंद कर लंबे पलों तक परमात्मा का ध्यान किया था।

अचानक ही एक कांटों भरी जीने की राह उनकी आंखों के सामने आ कर बिछ गई थी। आदेश आ रहे थे – अब एक एक कदम सोच समझ कर उठाना पीतू! ये तुम्हारी तपस्या का चर्म है और औरत माया का मर्म है!

“मुझे माया से मुक्त करो परमेश्वर!” स्वामी पीतांबर दास ने प्रार्थना की थी और आंखें खोल ली थीं!

अमरपुर आश्रम में अपार आनंद भरा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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