मंजू के पास जो खबर उड़ कर आई थी उसे सुनकर वो स्वयं दहला उठी थी।

सरोज सेठानी शैतान थी – मंजू को अब विश्वास होने लगा था। जो सादगी और सेवा का चोला उसने आश्रम में आ कर ओढ़ लिया था – मिथ्या था। आश्रम को लील लेगी सेठानी मंजू को अब जँच गया था।

“गुलाबी का क्या होगा?” मंजू अनुमान न लगा पा रही थी। “उसे खबर लगेगी तो तूफान तो जरूर आएगा। गुलाबी अगर विध्वंस पर उतर आई तो? वंशी बाबू ने अगर उसे चुटिया से पकड़ आश्रम से बाहर निकाल दिया तो? गुलाबी आश्रम को उड़ा देगी!” मंजू को अंदेशा था। “अपने घर परिवार को उड़ा कर आई थी गुलाबी। इतनी सुंदर और आकर्षक औरत इतनी दुर्दांत और तीखी होगी – कोई सोच भी नहीं सकता था। शायद स्वामी जी संभाल लेंगे गुलाबी को!” मंजू को एहसास हुआ था। “लेकिन स्वामी जी को तो पता ही न था कि आश्रम में चल क्या रहा था। वो तो कभी नारी निकेतन को झांक कर भी न देखते थे।”

“कैसे कहा जाए स्वामी जी से कि हवा कौन चल पड़ी थी?” मंजू सोचती रही थी।

श्रावणी सत्संग आरंभ होने वाला था। ये एक सप्ताह का कार्यक्रम नारी निकेतन हर साल मनाता था। सोमवार से लेकर शनिवार तक सुहागिन महिलाएं व्रत उपवास रखती थीं। करवा चौथ के इस पावन पर्व पर सब अपने अपने सुहाग के लिए अमर प्रेम की कामनाएं करती थीं। बड़ा ही प्रेम और सौहार्द का सप्ताह होता था। सुहागिनें सजधज कर उत्सव मनाती थीं। एक अनुपम और बेजोड़ वक्त आश्रम में आ कर बस जाता था।

पूरा आश्रम दिन रात के रंगारंग कार्यक्रमों से ओतप्रोत रहता था।

उत्सव को सार्थक बनाने के लिए सभी सुहागिनें श्रावणी मां को सजाती थीं। श्रावणी मां से पूरे सप्ताह तक सुहागिनें आशीर्वाद लेने आती रहती थीं। बड़ी ही गहमागहमी रहती थी – इन दिनों। और अंत में शनिवार के दिन भक्ति संगीत सभा के उपरांत उत्सव का समापन होता था। वंशी बाबू बहुत प्रेम से बहुत बड़ी दावत का प्रबंध करते थे। श्रावणी मां सभी श्रद्धालु सुहागिनों को बांहों में भर भर कर आशीर्वाद देती थीं।

इस बार का उत्सव सेठानी सरोज की देख रेख में होना था।

वंशी बाबू ने सेठानी जी को खुली छूट दे दी थी। उत्सव को बड़े ही अलग रंगढंग से मनाया जा रहा था।

गुलाबी के लिए ये एक सप्ताह बड़े ही गर्व का समय होता था।

श्रावणी मां के चोले को पहन वो बड़े ही सौम्य, सभ्य और पावन भाव भावनाओं से भर जाती थी। हाथ उठा उठा कर सुहागिनों को आशीर्वाद देना उसे बहुत भाता था। वो तो चाहने लगती थी कि ये सप्ताह कभी खत्म ही न हो। वो हमेशा हमेशा श्रावणी मां के चोले को ही जीती रहे, वो हमेशा उसी उच्च स्थान पर बनी रहे जहां सब उसका सम्मान करें, मान दें और उसके चरण स्पर्श करें। गुलाबी की ये ही महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल थी कि वो सामान्य स्तर पर आकर जीना न चाहती थी। वह चाहती थी कि वह सर्वथा ही सर्वश्रेष्ठ स्थान पर विराजमान रहे और अन्य सब उसकी प्रशंसा में जुटे रहें।

श्रावणी मां की भूमिका में सजीवजी गुलाबी परम और श्रेष्ठ सुंदरी लगती थी। उसका रूप लावण्य सजवज कर चौगुना असरदार हो उठता था। उसे देखते ही सुहागिनें उसके चरण स्पर्श करती थीं और वो आशीर्वाद देती थी।

अब मंजू को चिंता खाए जा रही थी।

“इसे नहीं सजाएंगे इस बार!” मंजू को दीवारों ने सूचना दी थी। हवा पर तैर कर आई थी सूचना। किसी के होंठ नहीं कह रहे थे लेकिन सबके कान सुन रहे थे। लेकिन गुलाबी मस्त थी। गुलाबी जानती थी कि उसके सिवा कोई और श्रावणी मां नहीं बनेगी – नहीं सजेगी।

वक्त का अगला कदम क्या होगा – स्वामी जी भी नहीं जानते थे।

लेकिन जीने की राहें तो बनती बिगड़ती रहती हैं – यह तो सभी जानते हैं।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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