सुबह के चार बजे थे। पुलिस की दबिश अमरपुर आश्रम आ पहुंची थी।
आश्रम में बाय बेला मच गया था। पुलिस ने आश्रम को चारों ओर से पंजे में ले लिया था। जो जहां था – वहीं रोक दिया गया था। वंशी बाबू पुलिस की मदद करने में व्यस्त थे। उन्होंने पुलिस इंस्पेक्टर गौतम को स्थिति से अवगत कराया था और बताया था कि बरामद किया हार उनके पास सुरक्षित था।
नारी निकेतन पहुंची इंस्पेक्टर कंगना दलाल ने पूछताछ आरंभ की थी।
“स्वामी जी!” कांपता शंकर कुटिया पर पहुंचा था। “पुलिस ..!” वह कठिनाई से कह पाया था। “पुलिस पहुंच गई है।” उसने पूरी सूचना दी थी।
गुलनार सतर्क हो गई थी। पुलिस के मात्र नाम से ही वह कांप उठी थी। वह जानती थी कि उसका नाम उछाला जाएगा और गुलाबी उसे पुलिस के हवाले किए बिना मानेगी नहीं।
“स्वामी .. स्वामी म .. म .. मैं!” गुलनार कांपती आवाज में कह रही थी। “च .. च .. चोर?”
“तुम चोर नहीं हो गुलनार!” स्वामी जी ने कड़क आवाज में कहा था। “डरो मत!” उनका आदेश था। “मैं हूँ न!” वो तनिक मुसकुराए थे।
गुलनार ने आसमान की ओर देखा था। एक पल परमेश्वर को याद किया था और मुड़कर स्वामी जी को देखा था। वही पीतू था – उसका पीतू जो आज भी उसकी रक्षा प्रतीक्षा में सीना ताने खड़ा था। आभार से गुलनार की आंखें भर आई थीं।
“इंस्पेक्टर साहब!” गुलाबी अपने गेंग के साथ इंस्पेक्टर कंगना दलाल के आसपास आ खड़ी हुई थी। “हम लोगों का बुरा हाल है – इस आश्रम में। वंशी बाबू की रास लीला रात भर चलती है। चोरों का अड्डा बन गया है – ये आश्रम।”
“तुम यहां क्या करती हो?” इंस्पेक्टर दलाल ने पूछा था।
“म .. मैं तो अपने दिन काट रही हूँ। दुखियारी हूँ ..”
“माजरा क्या है?” दूसरा प्रश्न किया था कंगना दलाल ने।
“चोर पकड़ा गया है – वो स्वामी के पास है। माल बरामद हुआ है – वो वंशी बाबू के पास है!” गुलाबी ने स्पष्ट कह सुनाया था।
“चोर किसने पकड़ा?”
“मुन्नी ने!” गुलाबी का उत्तर था। “ये रही मुन्नी! चल बता दे मुन्नी कि ..”
“हार तुम्हें किसने दिया?” कंगना दलाल ने मुन्नी से पूछा था।
मुन्नी चुप थी। उसे डर लग रहा था। कंगना दलाल की धारदार आवाज उसे डरा रही थी।
“बोला! तुम्हें हार किसने दिया?” कंगना दलाल ने धमकाया था मुन्नी को। “सच सच बताना .. वरना .. तू फिर देख लेना ..!”
“मंजू ने दिया था मुझे हार!” मुन्नी ने रो रो कर बताया था। “वो रही मंजू!” उसने उंगली के इशारे से मंजू को बताया था।
“बता दे मंजू – सच सच बता!” कंगना ने मंजू को कॉलर से पकड़ा था। “वरना .. तेरी – मैं ..”
“गुलाबी!” मंजू बोल पड़ी थी। “गुलाबी ने चोरी करने को कहा था और ..”
“गुलाबी ..?” कंगना दलाल ने आंख उठा कर आवाज दी थी। “कहां गई गुलाबी?” वह पूछती रही थी।
गुलाबी गायब हो गई थी। पूरा आश्रम छान मारा था लेकिन गुलाबी कहीं नहीं मिली थी। पुलिस मुन्नी और मंजू को हिरासत में ले कर लौट गई थी।
गुलाबी एक बार फिर जीने की राह भूल किसी विकट बियाबान में डोल रही थी – अकेली – निपट अकेली।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड