चोर औरत गुलनार के साथ आते स्वामी पीतांबर दास को देख शंकर हैरान था।

“बैठो!” सामने पड़े मोढ़े पर गुलनार से बैठने का आग्रह किया था स्वामी जी ने। “शंकर! जल पिलाओ हम दोनों को!” स्वामी जी ने दूसरे मोढ़े पर बैठते हुए कहा था।

जल पिलाते वक्त शंकर ने गौर से गुलनार को देखा था। बड़ी ही आकर्षक औरत थी। श्रावणी मां में जब सजी थी तो साक्षात दिव्य स्वरूप लगती थी। लेकिन आज उसका चेहरा उतरा हुआ था।

“शंकर! ये मेरी धर्म पत्नी गुलनार है।” स्वामी जी ने शंकर को बताया था। “हम दोनों को खाना खिला दो!” स्वामी जी ने आदेश दिया था।

गुलनार सर झुकाए स्वामी जी के साथ भोजन करती रही थी। दोनों चुप थे। लेकिन कहीं अनेकानेक तूफान उठ रहे थे। गुलनार के मन प्राण में एक आंदोलन भरता जा रहा था।

“मैं भक्तों को आशीर्वाद देने जा रहा हूँ। मेरे लौटने तक तुम यहीं बने रहना!” स्वामी जी ने शंकर से आग्रह किया था।

शंकर सारी स्थिति को समझने का प्रयत्न करता रहा था।

आश्चर्य ही था कि स्वामी पीतांबर दास की दृष्टि बदल गई लगी थी। आज वो आश्रम को नई निगाहों से देख रहे थे। आज उन्हें आश्रम अपना न लगा था। अब तो गुलनार अपनी थी। विगत अपना था। सब नाम गांव अब तो उजागर हो जाना था। कोई भी प्रश्न अब अनुत्तरित न रहना था। नए सरोकार थे जिनका जन्म हो चुका था और अब स्वामी जी को अलग से एक जीवन जीना था।

कमाल ही था कि भक्तों के दुख दूर करने वाले स्वामी जी आज अपने ही कष्टों के भार तले टूटे जा रहे थे।

लेकिन गुलाबी गेंग था कि होली दीवाली मना रहा था।

“स्वामी जी ने कहा है कि वो कल सुबह आश्रम छोड़ कर चले जाएंगे।” शंकर खबर लाया था। और आश्रम में सब को बता रहा था।

“गीदड़ की मौत आती है तो वो गांव की ओर भागता है।” मंजू हंस रही थी। “अपने आप ही निकल गया – कांटा!” उसने गुलाबी की आंखों में देखा था। “सितारे बुलंद हैं आपके – मठाधीश जी!”

गुलाबी हंसी नहीं थी। गुलाबी अचानक एक सकते में आ गई थी। शंकर की लाई खबर ने उसे मुश्किल में डाल दिया था।

“मंजू!” गुलाबी की आवाज में संदेह तैर आया था। “पुलिस आई तो ..?”

“तो क्या! कह देंगे – भाग गई! चोर थी। स्वामी भी उसके साथ मिला हुआ था।”

“और हार ..?” गुलाबी ने फिर पूछा था।

“कह देंगे वंशी के पास है!” मंजू का उत्तर था।

“नहीं रे!” टीस आई थी गुलाबी। “तू पुलिस को नहीं जानती मंजू! मैंने तो भुगता है! गवाह-सबूत – दोनों ही चाहिए पुलिस को। लेकिन हमारे पास गवाही तो होगी लेकिन सबूत नहीं होगा। चोर भी अगर भाग गया तो हम चौड़े में आ जाएंगे मंजू!”

अब मंजू का चेहरा भी लटक गया था।

लेकिन गुलनार बेहद प्रसन्न थी। जैसे उसकी तपस्या फलीभूत हुई थी। वह चाहती रही थी कि कैसे ही, किसी भी प्रकार से उसका स्वामी जी के साथ अबोला टूटे! वह स्वामी जी को बताए कि किस तरह वह मजबूर थी और उनसे बिछड़ने के बाद उसका कितना बुरा हाल हुआ था।

“मैं निर्दोष हूँ स्वामी जी!” अचानक गुलनार बोल पड़ी थी।

“दोषी तो मैं भी नहीं हूँ, गुलनार!” स्वामी जी ने भी अपना पक्ष रख दिया था।

“गुनहगार तो वक्त है – तुम दोनों नहीं!” पीपल दास जी ने हंस कर हस्तक्षेप किया था। “प्रभु रचते हैं – आदमी की प्रारब्ध!” वो बताते रहे थे।

उनके जीने की दो अलग-अलग राहें फिर से मिल कर एकाकार हो जाएंगी ये तो कभी उन्होंने सोचा ही न था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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