आज अमरपुर आश्रम पूरे तरह से गुलाबी गेंग के अधीन था।
गुलाबी के चलते ऐलानों और फरमानों को वंशी बाबू रोक नहीं पा रहे थे। गुलाबी ने चालाकी से उनका नाम गुलनार के साथ जोड़ दिया था। तरह तरह के चर्चे थे – उनके और गुलनार के जो आश्रम के आर पार आ जा रहे थे।
गुलनार को अजब ढंग से सजाया वजाया जा रहा था। गुलाबी उससे श्रावणी मां के रूप में सजने की खुंदक निकाल रही थी। सफेद साड़ी पहना कर, माथे पर चंदन का टीका लगा कर और गंजा सर करा कर गुलनार को आश्रम से धक्के दे कर निकालना तय था।
“अब ठीक सजेगी ये श्रावणी मां सौख!” गुलाबी ने विहंस कर कहा था। “मंजू सफेद साड़ी भी फटी पुरानी होनी चाहिए! भिखारिन जैसी लगेगी तो कहीं मांग खाएगी!” अट्टहास से हंसी थी गुलाबी।
पूरा गुलाबी गेंग गुलाबी के साथ साथ हंस पड़ा था। अब आश्रम पर उनका एक छत्र राज्य था। वंशी बाबू खोजने पर भी कहीं न मिल रहे थे। हीरों का बेश कीमती हार उनके कब्जे में था। और गुलाबी किसी भी कीमत पर वो हार उनसे हासिल कर लेना चाहती थी।
“दिखते हैं तो मंजू हार मांग लेना! न देंगे तो मैं देख लूंगी – वंशी को!” गुलाबी ने वंशी के साथ बाबू नहीं लगाया था – जान मान कर।
जैसे कोई जश्न मनाया जा रहा हो – पूरा आश्रम तमाशबीन बना खड़ा था। बुलाकी नाई को सीधे सीधे संदेश था कि वो पहले कैंची से गुलनार के लंबे लंबे गेसुओं को काटेगा और फिर उस्तरे से उसे गंजी बना देगा! मंजू चंदन का सफेद टीका लगाएगी और मुन्नी उसे धक्के मार मार कर आश्रम से बाहर भगा देगी!
उम्मीद थी कि सभी आश्रम वासी इस घटना पर तालियां बजाएंगे और गुलाबी की जय जयकार होगी।
केवल स्वामी पीतांबर दास ही थे जो अभी तक पूरी घटना से असंपृक्त हुए ध्यान लगाए बैठे थे।
“स्वामी जी!” शंकर ने आ कर उनका ध्यान तोड़ा था। “उस औरत का सर मुड़ा कर, उसे आश्रम से धक्के मार कर आश्रम से बारह बजे निकाला जाएगा।”
न जाने क्या हुआ था कि गुलनार के स्याह काले गेसू एक घटाटोप बन कर स्वामी जी के स्मृति पटल पर उग आए थे। वो जानते तो थे – गुलनार के गेसुओं को। उनका तो गहरा संबंध रहा था उनसे।
“क्या करूं मैं पीपल दास जी?” स्वामी जी का स्वर टूट रहा था।
“सत्य स्वयं में समर्थ होता है पीतू!” पीपल दास बोल पड़े थे। “डरो मत! सामना करो! गुलनार को गुलाबी से बचाना गलत कहां है? पत्नी है – वो तुम्हारी!”
स्वामी जी की समाधि टूटी थी। बारह बजने वाले ही थे। वो उठे थे और नंगे ही पैरों आश्रम की ओर भाग लिए थे। शंकर उन्हें अपलक देखता ही रह गया था।
वंशी बाबू चुपके से किनारे आ लगे थे। वो गुलाबी को परास्त करने का कोई सुराग खोज लेना चाहते थे।
“ठहरो!” स्वामी पीतांबर दास का स्वर गूंजा था। “मत छूना गुलनार के गेसुओं को, बुलाकी!” स्वामी जी ने आदेश दिया था।
“चोर है ये! हार चुराया है इसने – स्वामी!” गुलाबी ने इस बार भी स्वामी के साथ जी नहीं लगाया था। जैसे अगले ही पल स्वामी पर कोई कहर टूटने वाला था।
“नहीं! ये चोर नहीं है।” स्वामी जी ने घोषणा की थी।
“तुम कैसे जानते हो?” गुलाबी गरजी थी।
“गुलनार मेरी पत्नी है!” स्वामी जी ने हाथ उठा कर एक स्वीकार को हवा में उछाल दिया था। “चलो गुलनार!” स्वामी जी ने गुलनार को कुर्सी से उठा कर अपने साथ ले लिया था।
“नहीं! ये हार की चोर ..” गुलाबी आगे बढ़ कर स्वामी जी का रास्ता रोक रही थी।
“वंशी बाबू!” स्वामी जी फिर से दहाड़े थे। वंशी बाबू अचानक उनके सामने प्रकट हो गए थे। “बुलाओ पुलिस को!” स्वामी जी का आदेश था। “उन्हें हमारा संदेश दो। अब इस समस्या का दूध का दूध और पानी का पानी होगा!”
गुलनार को साथ लिए स्वामी जी कुटिया में चले आए थे।
एक नई जीने की राह उन्हें फिर से विकसित हुई लगी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड