सारा शहर भक्ति रस में डूबा-डूबा लग रहा था।

न जाने क्या जादू चला था कि लोगों के मन में स्वतः ही भक्ति भाव का प्रादुर्भाव हुआ था और उन्हें परमेश्वर की महिमा का आभास हुआ था। अमरीश विला को आश्रम से वंशी बाबू और उनके सहयोगियों ने आ कर खूब सजाया था और भक्तों के स्वागत हेतु पंडाल लगाए थे।

शहर का काया कल्प हुआ लगा था। हवन पूजन पर होते मंत्रोच्चार ने अशुभ को ललकारा था और शुभ को पुकारा था। अच्छे सच्चे भाव और भावनाओं के आगमन से समाज ओतप्रोत था और सभी ने आपसी प्रेम और सौहार्द का अनुभव किया था।

कोर्ट रूम में उदास निराश चक्कर लगाते अमरीश के वकील भोला राम को डर लग रहा था। गाइनो और उसके वकीलों की फौज – जगदीश एंड एसोसिएट्स पहुंचे हुए थे। उन सब के चेहरे खिले हुए थे। सीनियर वकील रोशन की आंखों में एक अजब गजब चमक डोल रही थी। केस में फाइनल बहस करने के लिए आज उनका मन उछल-उछल रहा था।

केस की आवाज पड़ी थी तो दोनों पक्ष जज साहब के सामने आ खड़े हुए थे।

जज साहब ने अकेले खड़े वकील भोला राम को संदिग्ध निगाहों से देखा था। फिर उनकी निगाहें गाइनो और वकीलों की खड़ी चौकड़ी पर पड़ी थी।

“क्यों? बहस नहीं करनी है वकील साहब!” जज साहब ने भोला राम वकील से सीधा प्रश्न किया था।

“योर ऑनर!” लुटी पिटी आवाज में भोला राम बोले थे। “ही इज नॉट वेल!”

“मैडीकल ..?” जज साहब ने मांग की थी।

“सर! वो मैडीकल नहीं – स्वामी पीतांबर दास के आश्रम में ..”

“कौन सी दुनिया में रहते हैं आप – वकील साहब?” जज साहब बिगड़ गए थे। “इट्स नॉन सेंस!” उन्होंने झिड़का था वकील साहब को। “वॉरंट निकाल देता हूँ!” जज साहब ने धमकी दी थी।

“एक डेट और दे दें सर!” भोला राम ने मांग की थी।

“ओके! कल ..? कल दो बजे के लिए बहस रख देता हूँ! फिर मत कहना वकील साहब कि ..”

गाइनो ने कड़ी निगाहों से सीनियर वकील रोशन को घूरा था।

“योर ऑनर! ये सब प्रपंच है! ये कुल मिला कर एक षड्यंत्र है, मी लॉर्ड!” रोशन गरजे थे। “मैं तो अरज करूंगा कि आप ..”

“इन द इंटरेस्ट ऑफ जस्टिस, वकील साहब!” जज साहब तनिक हंस गए थे।

लेकिन गाइनो ग्रीन के चेहरे की खुशी गायब हो गई थी।

यह पहली बार ही था कि गाइनो को शक हुआ था और सीनियर वकील रोशन के कहे वाक्य उसके दिमाग में झनझना रहे थे। प्रपंच है – ये! कुल मिला कर कोई षड्यंत्र है! और ये हो भी तो सकता था! वो यहां नहीं थी – दो माह से! हो सकता था कोई प्रपंच रच दिया हो अमरीश ने? और .. और अविकार का तो कोई जिक्र ही न था। कहां था वो? गाइनो ने सीधे पुलिस हैडक्वाटर की राह गही थी। वह जानना चाहती थी कि क्या अविकार के बारे में कोई सूचना थी? क्या उन्हें अविकार मिला? और क्या अविकार ..

“एक दिन की ही तो बात है!” गाइनो ने अपने आप को तसल्ली दी थी। “कल तो फैसला हो ही जाएगा! लगता नहीं कि जज साहब अमरीश को ..

“गुनहगार है ये जज साहब!” अचानक गाइनो कहने लगी थी। “इसे तो फांसी की सजा दे दीजिए! इसने अपने जिगरी दोस्त को .. उसकी पत्नी सहित ..”

फिर भी गाइनो की आंखों के आगे आज अंधकार ही अंधकार था।

न जाने कैसे वो आज अपनी जीने की राह से भटक गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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