अमरीश अकेला बैठा बैठा अपने उन भले दिनों को याद कर रहा था जब वो और अजय बुलंदियों पर थे और अवस्थि इंटरनेशनल ने व्यापार जगत में तहलका मचा दिया था।
दोनों की दोस्ती की चर्चाएं थीं। दोनों बड़े ही कर्मठ और दूरदर्शी थे। दोनों ने नौकरियां छोड़ कर अपना व्यापार बनाया था और नाम कमाया था। लोग तो उनकी दोस्ती की कसमें खाते थे।
वीकएंड से लौटते वक्त अजय और मानुषी की कार खराब खड़े ट्रेलर में सीधी जा घुसी थी। गहरा कोहरा था और अजय सड़क पर खड़े खराब ट्रेलर को देख नहीं पाया था। दोनों बातों में तल्लीन थे और तभी ..
“ए केस ऑफ एक्सीडेंट बाय डीफॉल्ट!” पुलिस ने तो यही कहा था। “ये एक साजिश है!” पत्रकार समीर था – जिसने पहली बार प्रतिवाद किया था। “अजय और मानुषि की मौत से वो कौन है जिसे करोड़ों का फायदा होने वाला है?” उसने प्रश्न उठाया था और एक शक पैदा कर दिया था। और तब प्रश्न के उत्तर में अमरीश का ही नाम आया था।
“केस तो बनेगा सर! मीडिया को आप संभालिए वरना तो ..” पुलिस कमिश्नर करन सिंह ने सीधे सीधे परिणाम बताए थे। “सब जानते हैं कि आप लोग जिगरी दोस्त थे। लेकिन जमाने में हवा कौन बह रही है। हर कोई पैसे का भूखा है! रिश्ते कुछ नहीं रह गए हैं आज के जमाने में! हम तो हर रोज देखते हैं .. आए दिन यही घटा है कि ..”
“सिंह साहब! मैं तो अजय तो आजन्म तक ..”
“कौन मानेगा इस बात को अमरीश जी!”
अजय और मानुषि की मौत असाधारण बन गई थी। चूंकि अजय एक संपन्न कोरपोरेट था और उसने कई नए आयाम खोले थे अतः उसकी मौत ने भी कई सारे प्रश्न खड़े कर दिए थे। शक की सूई हर बार अमरीश पर ही आ कर ठहरी थी। वही तो था जिसे अजय का पूरा कारोबार ज्ञात था, और वही था जिसे ..
“कोई सुनता ही नहीं मेरी बात, सरोज!” निराश हताश अमरीश सरोज को अपने दुखड़े बता रहे थे। “अजय की मौत का आघात सहा नहीं जा रहा है और उलटे लोग मुझी पर शक कर रहे हैं। विचित्र विडंबना है यार!”
“बुरे लोग अच्छे लोगों के नाम गांव तक भूल गए हैं! कोई तुम जितना अच्छा आदमी भी हो सकता है – आज कोई मानने को तैयार नहीं है! हम दोनों परिवार ..” सरोज की आंखों में आंसू थे। “मानुषि मुझे अपनी छोटी बहन मानती थी और .. और अंजली को तो ..”
“अपनी बहू बनाना चाहती थी!” तनिक हंसे थे अमरीश। “मैं जानता हूँ सरोज! लेकिन अविकार ने भी तो ..” वो चुप हो गए थे।
“सपना ही रह गया सब!” सरोज की आवाज रुलाई में टूट आई थी। “न जाने क्या जादू किया है इस छोकरी ने अविकार पर कि अब उसे भी हमारा विश्वास नहीं! उसे क्या पता नहीं है ..?”
“शायद ये कि मैं और अजय अविकार और अंजली की शादी कर एक ऐसे संबंध सूत्र में बंध जाना चाहते थे जो ..”
“बच्चे थे और तब हमने उन्हें बताया तक न था।” सरोज को अफसोस था।
“फिर अंजली को कैसे पता है? अंजली तो ..?” अमरीश को आश्चर्य था।
“लड़कियां ज्यादा प्रेम दीवानी होती हैं।” सरोज ने अमरीश को आंखों में देखा था और लजा गई थी। “मैंने तो तुम्हें देखा भी नहीं था और ..”
“लेकिन अविकार ..?” अमरीश के दिमाग में एक ही प्रश्न अटका था – अविकार!
और अविकार का सामना एक्सीडेंट की उस घटना से जब हुआ था तो लोगों का पैदा किया वही शक उससे भिड़ गया था। लालच में शायद अमरीश अंकल अपराध कर बैठे थे – उसने भी सोचा था और अमरीश अंकल के पास न पहुंच वह बार में जा पहुंचा था – जहां उसकी मुलाकात गाइनो ग्रीन से हुई थी!
गाइनो ग्रीन भी उसके सामने एक नई राह की तरह प्रकट हुई थी और वह उन शंकाकुल पलों में समझ ही नहीं पाया था कि गलत क्या था और सही क्या था!
तब गाइनो को प्रेम डगर की पार्टनर मान वह अनभोर में ही चल पड़ा था – इस जीने की राह पर!

मेजर कृपाल वर्मा