शेर और गीदड़ का संवाद सुनकर शशांक – खरगोश अपने बिल से बाहर निकल आया था। उसने भी आज महसूसा था कि जंगल में अब अकेले अकेले रहना वास्तव में ही संभव नहीं था। लालू गीदड़ की आवाज में दम था। शेर तो निरी मूर्खता पूर्ण बाते कर रहा था। उसका अकेले का आदमी के सामने बनता क्या था? दो कौड़ी का कद नहीं रहा था उसका।

जिस रफ्तार से जंगल कट रहा था और जिस तेजी से आदमी अपना विस्तार करने में लगा था – शेर तो क्या खरगोश का भी जीना दूभर हो जाना था!

“छोटा मुंह बड़ी बात!” शशांक जंगलाधीश के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया था। “क्षमा करें महाराज!” उसने आदर में सर झुकाया था। “आप अन्नदाता हैं! आप हमारे राजा हैं! इजाजत हो तो हम आज मुंह खोलें?”

जंगलाधीश और लालू गीदड़ ने एक साथ हाथ जोड़े खड़े शशांक को देखा था। धवल, सफेद, गोल-मटोल और बटन जैसी आंखें चमकाता शशांक जंगलाधीश को बहुत प्यारा लगा था। अगर आज संकट की घड़ी न हुई होती तो जंगलाधीश उसे एक ही ग्रास में गप्प कर जाता। बताशे जैसा ये शशांक न जाने कब का उसकी दाड़ के नीचे घुल गया होता!

लेकिन आज वक्त की रफ्तार कुछ और थी।

“कहो कहो शशांक!” जंगलाधीश तनिक संयत हुआ था। “निडर होकर बोलो!” उसने कहा था। “जो हुआ है – तुम्हारे सामने हुआ है! आदमी को क्षमा करने का प्रश्न तो ..”

“क्षमा करने की बात मैं भी कहां करने वाला हूँ महाराज!” शशांक ने गोल गोल ऑंखें घुमा कर साथ खड़े लालू को निहारा था। “सूरमा की बात में दम है!” वह बोला था। “आदमी से सीधे सीधे पार पाना संभव नहीं है। मैं ही क्यों आप भी जानते हैं कि आदमी के पास आज क्या नहीं है?”

“लेकिन मुकाबला तो करना ही होगा!” जंगलाधीश ने तर्क किया था।

“चालाकी से! चतुराई से! जैसे कि आदमी हर काम योजना बद्ध करता है – वैसे!”

जंगलाधीश तनिक सोचने को मजबूर हुआ था। वह शशांक के तर्क सुनकर सचेत सा हो गया था!

“भाई! ऐसी चतुराई और चालाकी हमारे तो खून में ही नहीं है!” जंगलाधीश ने सच्चाई को स्वीकारा था। “हम जब दहाड़ते हैं तो सब कुछ उजागर हो जाता है!”

“इसलिए मेरी राय ये है कि अब आप अलोप हो जाएं!” लालू ने प्रस्ताव सामने रक्खा था। “अब उसे लड़ने दीजिए – जो आदमी से भी दो कदम आगे हो!”

जंगलाधीश सकते में आ गया था। उसने महसूस किया था जैसे लालू उसे उल्लू बना रहा हो। वह चाहता हो – मुफ्त में जंगल का राज गीदड़ को मिल जाए। आदमी का डर दिखा कर शशांक और लालू दोनों किसी गहरी चाल के तहत उसे एक समझी सोची योजना बता रहे थे – वह महसूस रहा था।

“ऐसा कौन सा बलवान पैदा हो गया है – जो शेर और आदमी दोनों से ज्यादा शक्तिशाली है?” जंगलाधीश ने अब आंखें मटका कर उन दोनों से पूछा था। “यह खबर तो हम पहली बार ही सुन रहे हैं!” उसने आश्चर्य से आसमान की ओर देखा था।

अब लालू ने मुड़ कर शशांक को घूरा था। शशांक तनिक घबरा गया था। शेर के सामने आने का और मुंह खोलने का जुर्म तो वह कर ही बैठा था। अब तो जान बचाने की बात उसे सोचनी थी। किसी प्रकार कोई ऐसा हल उसे सुझाना था जो उसकी जान छूट जाए।

“महाराज!” वह डरते डरते बोला था। “छोटा मुंह बड़ी बात!” उसने घिघियाते हुए कहा था। “सुंदरी – लोमड़ी के पास कुछ ऐसे नुस्खे हैं – जो आदमी को आदमी से लड़ा सकते हैं!” उसने अबकी बार आंखें बचा कर लालू गीदड़ को घूरा था। लालू तनिक मुसकुराया था। “अगर ऐसा हो जाये तो न सांप मरे और न लाठी टूटे। हम सब जीवन दान पा जाएंगे महाराज!”

जंगलाधीश की समझ में बात समा गई थी। अगर आदमी ही आदमी की जान का प्यासा हो जाए और नर संहार करने लगे तो बात बनी धरी थी। फिर तो शेरों का ही राज रहेगा – वह समझ गया था। लेकिन सुंदरी ये जादू कैसे कर पाएगी – अब वह ठीक से समझ लेना चाहता था!

“अरे, भाई! आदमी अब आपस में नहीं लड़ेगा। अब तो समझौते और सुलह सफाई का युग चल रहा है। न गोरा काले से लड़ रहा है और न पूरब पश्चिम से जंग करने की सोच रहा है! पूरी धरती पर एक छत्र राज स्थापित करने के बाद आदमी तो अब उपग्रहों पर जाने की बात सोच रहा है!” उसने शशांक को घूरा था। “और तुम हो कि कहते हो .. सुंदरी ..”

“सुंदरी को आप छोटा ना मानिए, महाराज!” लालू ने शशांक की बात को बल दिया था। “उसकी चाल और चालबाजी का मुकाबला है कहां?” वह हंसा था। “कई बार तो उसने शेरों के गले में ही घंटी बांध दी है!” अब लालू ने जंगलाधीश को घूरा था। “आप के पर दादा ही तो थे – जिन्होंने अपनी शक्ल कुएं में देखकर छलांग लगाई थी!” लालू जोरों से हंसा था। “कुएं में कूद कर जान दी और पानी पी पी कर मरे बेचारे!”

“बस करो लालू!” जंगलाधीश गरजा था। “हम से सहन न हो पाएगा ..”

“सच्चाई कड़वी होती है महाराज!” लालू विनम्र हो आया था। “आज इस सच्चाई को मान लेंगे तो आप की कल की मुसीबत टल जाएगी। सुंदरी के पास चलते हैं ..”

“कुछ राय तो वह देगी ही!” शशांक ने भी समर्थन किया था।

जंगलाधीश के पास अपना तो कोई विकल्प था ही नहीं।

अगर वह अकेला आदमी से जंग लड़ भी लेता तो परिणाम तो वह जानता ही था! मुफ्त में जान देने से अच्छा तो यही था कि सभी जंगल के जानवरों को साथ ले कर लड़ा जाए! मुसीबतें तो सभी जानवरों के ऊपर आन पड़ी थीं। आदमी का आतंक तो अब असहनीय हो चला था।

“सुंदरी से मिले तो बहुत दिन हो गये हैं!” जंगलाधीश ने सहज होते हुए कहा था। “चलो! इसी बहाने आज मुलाकात भी हो जाएगी!” वह मुसकराया था। “लेकिन मेरे पर दादा की तरह अमर उसने मेरे साथ भी कोई चाल खेली तो ..?” उसने अब एक साथ शशांक और लालू को घूरा था।

लेकिन वह दोनों विनम्र बने ही खड़े रहे थे – बोले कुछ न थे!

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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