
प्रेम – पत्र !!
“सच केसर, आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है !”
“रक्षाबंधन है , इस लिए …?” अनायास ही केसर की हंसी मैं सुनता हूँ . हंसी है या कि कोई चक्रवात ….या तूफ़ान …या कोई दहला देने वाला दानव ! शदियों के बाद आज अचानक केसर की हंसी कैसे गूंजी ? “मुझे याद है ….जब रानी कर्मावती ने हुमांयूं को राखी भेजी थी . उस की बहन बनी थी. भाई तो मेरा भी कोई नहीं था ….पर मैंने भी तो उसे राखी भेजी थी . तुम्हें तो सब याद है , न !” केसर कहती ही जा रही है . “रानी का क्या हुआ ….? लाज बचाने के लिए …अग्नि-कुंद में कूदने के अलावा विकल्प ही क्या बचा था ? और बेचारा हुमांयूं भी तो …सब कुछ हार बैठा था . उसे पूरी विरादरी ने इस हिमाकत पर लानत भेजी थी . पंद्रह साल का वनवास ….काटा उस ने …फारस में रह कर !” केसर की आवाज में दर्द था . “और ….और ….हाँ, मैं ….अभागिन तो …सब गँवा बैठी !” रोने-रोने को है , केसर ! “काश वो तुम्हें ….बिना मेरे तिलक किए ….युद्ध में न ले जाता ….! काश …मैं ….!”
“रोने क्यों बैठ गई ….?” मैं पूछता हूँ . “आज ….राखी के इस पावन त्यौहार पर ….अगर तुम …आ ही गई हो तो …मनाते हैं ….दुहराते हैं ….अपने उन सपनों को ….”
“जो अधूरे रह गए ….?” केसर ने व्यंग्य किया है . “ये दमदार तो थे ….पर न जाने क्यों , दम तोड़ गए ….?” केसर आश्चर्य से मुझे देखती है . “तुम में सारी सामर्थ थी ….एक ऐसी कुब्बत थी ….जो आम आदमी में होती ही नहीं ! तभी तो मैंने हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने का स्वप्न देख लिया था ….और तभी रक्षाबंधन के इस पवित्र त्यौहार पर शपथ ली थी कि …..”
“गलती हुई कहाँ, केसर ….?” मैं पूछ लेता हूँ .
“वही ….जहा वो गलत आदमी मेरा भाई बन कर ….हमारे बीच आ गया था !” स्पष्ट स्वर में कहती है , केसर ! “हम हमेशा से इसी तरह ठगे गए है . प्रेम में ….विश्वास में ….भाई-चारे में ….और दया-माया के वशीभूत हम ….अपना सब गँवा बैठते हैं .” केसर ग़मगीन है. “हुमांयूं तो पंद्रह साल के बाद लौटा …और …उस ने सब बसूला ! लेकिन …..”
“मेरी मौत हो गई ….?” मैंने हलके पन से पूछा है . “मुद्दा ही मिट गया तो ….”
“मैं करती भी क्या , हेमू ….?” केसर फिर से गंभीर है . “कर्मवती की तरह मुझे भी तो ….अग्नि-कुंड में कूदने के सिवा कुछ और नहीं बचा था ! वो मूं बोला भाई ….जिसे मैंने राखी बाँधी थी …हाँ,हाँ , वही …मेरी लाज लूटने ….”
“कमीना ….!!” मैं रोष में कूदने लगता हूँ . “उस की ये मजाल कि ….”
“तुम मर चुके थे …., हेमू ! और वह …तुम्हारी मौत का इनाम पा गया था . बादशाह बन गया था – वह ! और ….”
“और ….?”
“मैंने उस का खून कर दिया था ….! मैंने उसे कुत्ते की मौत ….मारा, हेमू ! मैंने चंडी बन कर उस का खून पिया ….मैंने तुम्हारी मौत का बदला चुकाया ….मैंने ….”
“ओह, केसर !!” मैं गर्व से भरा-भरा कहता हूँ. “तुम सच्ची वीरांगना हो ….पक्की वीरांगना …., केसर !” मैं मुग्ध हूँ. “तुमने आज …मुझे मेरी बहुत बड़ी चिंता से मुक्त कर दिया , केसर ! में मरने के बाद जब होश में आया था ….तो ….तुम्हें खोजने निकला था . लेकिन ….तुम कहीं थीं ही नहीं ….! पूरी दिल्ली छान मारी ….आस -पास को भी टटोला ….भागा …चहुँ और ….! खूब ही खोजा , तुम्हें ! पर ….”
“उस ने मुझे कैदी बना लिया था ! मुझे छोड़ और सब का क़त्ल करा दिया था . और फिर ….उस मेरे मुंह बोले भाई ने ….अपने कलुषित इरादे …..मेरे सामने रख दिए थे !”
“क्या …?”
“यही कि ….कि , केसर ! मैं तुम्हें अपनी बेगम बनाऊंगा, केसर ! मैं और तुम , मिल कर …दिल्ली की सल्तनत को ….” उस ने मुझे गलत निगाहों दे घूरा था . “ना न कहना …., केसर !”उस ने आग्रह किया था . “हमारा ये …..मिलन ….हमारा फतवा होगा ….हमारा ….”
“पर पहले मैं तुम्हारा खून तो पी लूं , कादिर !” मैंने उस के सीने में कटार भौंक दी थी , हेमू. ! न जाने कैसे मैं चंडी बन गई थी , उस दिन ? न जाने कैसे मैंने अपनी हुई हार को ….जीत मान कर जिया था ….!”
“और ….?”
“और …फिर फरार हो गई थी !”
“मेरी लाश का ……?” मैं जिज्ञासा वश पूछता हूँ . न जाने कब से मैं बचता ही आ रहा था -इस प्रश्न से ! पर आज न जाने क्यों मैं केसर के मुंह से सब सुनना चाहता हूँ .
“जश्न मना था …दिल्ली में ! दुशमनों ने इतना बड़ा जश्न शायद कभी नहीं मनाया , जितना कि उस दिन …तुम्हारी मौत को लेकर …लाश को बीच में रख कर …”
“कारण …….?”
“हिन्दू -राष्ट्र की स्थापना का ….खतरा हमेशा-हमेशा के लिए टल गया था !” केसर ने टीस कर बताया था . “उस दिन तो मुझे भी आश्चर्य हुआ था .., हेमू .कि …कि हमारे हिन्दू राष्ट्र की स्थापना से कितना गुरेज था ….कितनी नफ़रत थी ….और कितना -कितना विरोध था ! और तो और हेमू, हमारे अपनों को भी ख़ुशी हुई थी ….”
“क्यों …?”
“गद्दार थे …न …!” केसर की आवाज दरक गई थी . “इस देश का सब से बड़ा एक ही दुर्भाग्य है , हेमू !”
“क्या …..?”
“गद्दार …!!” दुखी थी , केसर ! न जाने क्यों ….और कब हमारा खून अपवित्र हुआ …और शायद किसी ने हमें श्राप दे दिया ….कि …”
“सब टल गया है, अब !” मैंने आश्वस्थ किया है , केसर को ! “अब शुभ घडी आन पहुंची है ….अब जाग्रत हो चूका है ,देश ! तुम देखना केसर कि अब ….हिन्दू – राष्ट्र की स्थापना हो कर रहेगी !” मैंने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहा है .
“ये चीन और पकिस्तान ……? तब मुकाबला एक से था …..पर अब …..तो …?” केसर ने मेरी आँखों में घूरा है . “है , दम …..?” उस ने मुझे चुनौती दी है .
न जाने क्यों मैं हंस पड़ता हूँ ! न जाने क्यों बेतहासा हंसी बिखरती ही चली जाती है …!! न जाने क्यों मैं आज ….अपनी दर्दनांक मौत के हादसे को भूल जीवित हो गया लगा हूँ ! न जाने कैसे मैंने अपनी आँख में लगे तीर से पैदा हुई उस पीड़ा के पारावारों पर विजय पा ली है ….और न जाने कैसे मैं …..आज अपने पुराने खिलंदर के रूप में …अवतरित हुआ लगा हूँ ! पुराने किले में पहुँच कर मैंने फिर से घोसला बना लिया है . बस ….अब केसर आ गई है …तो ….
“दम है , केसर !” मैं बेहिचक बोला हूँ . “लेकिन आरम्भ वही से करते है .” मैंने सुझाव दिया .
“कैसे …?”
“तुम – चीन और पकिस्तान को राखी भेज दो …” मैं हंसा हूँ .
लेकिन ये क्या ….? केसर तो हँसती -हंसती गायब हो गई ….? विलुप्त क्यों हो गई , केसर ….?
अब कैसे पुकारूं , केसर को ….?
और …ये हिन्दू-राष्ट्र का स्वप्न …….?
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श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!