
सलाम भाई जान !!
उपन्यास अंश
भाग – १५
केसर की यादों में खोया मैं दिल्ली लौट आया था !
प्रवेश करते ही बारादरी ने मेरा स्वागत किया था ! शादी में मिला माल-असबाब बारादरी में नाक तक भरा था . एक विकट चहल-पहल बारादरी को लबालब भरे थी ! घोड़े थे …लोग थे …और उन के साथ और भी बहुत सारा सरंजाम था ! अब मुझे आभास हुआ था कि कादिर की शादी में बहुत कुछ ऐसा भी मिल गया था जो दहेज़ के अलावा और कुछ भी था !
“आईये , पैगम्बर ….!!” मैं बारादरी में घूमने निकला था तो उस ने मेरा स्वागत किया था . “मैं न कहती थी कि …अब तुम्हारे पैर पड़ गए हैं …अब मेरा उद्धार होगा ….? देखो , न ! मैं फिर से बस गई ….?” लेकिन मैं न जाने क्यों बारादरी के इस उद्घोष पर चौंका था .
मुझे लगा था कि शायद ….हो-न-हो …परमात्मा ने यह सब मेरे लिए ही भेजा हो ….? वह चाहता था कि ….शायद मैं अब लश्कर रखना सीख लूं ! और रन भूमि में उतरने से पहले …उस के सारे घात-प्रतिघात सीख कर …समर्थ हो जाऊं ! बिन मांगे मुराद का मिलना और था क्या ….? और फिर बारादरी का मुझे ‘पैगम्बर’ के संबोधन से बुलाना भी तो कुछ था …?
“शादी में क्यों नहीं आया , ब्बे ….?” कादिर ने मेरा सोच तोडा था . मैं चौंक गया था . पर द्रष्टि को संयत कर मैंने सामने खड़े कादिर को ध्यान से देखा था .
कादिर रेशमी अचकन और गुलाबी तुर्रे में सजा-वजा बेहद आकर्षक युवक लग रहा था . उस ने गले में सोने का एक मोटा तोडा पहना था . उस के हाथ में एक संटी लगी थी . चहरे पर एक मन-भावन मुस्कान खेल रही थी ! उस ने दो कदम आगे लिए थे और मुझे बांहों में भर लिया था !
“बहुत …बहुत …याद आई …तेरी , हेमू !” कादिर भावुक था . “मुझे अब की बार लगा कि ….बिना हेमू के मैं अधूरा हूँ ! और अगर तुम शादी में मेरे साथ आए होते ….तो ….”
“तो ……..?” मैंने मुस्करा कर पूछा था .
“बात ही अलग होती, हेमू !” कादिर ने मुझे बांहों से ढीला किया था . “वहां तो मेरा जैसे इम्तहान लिया गया था ….! तलवार बाज़ी ….घुड सवारी ….तीरंदाजी ….और समर का सारे का सारा सरंजाम ….”
‘लेकिन ये …सब …क्यों ….?” मैंने पूछ लिया था .
कादिर ठहरा था . वह फिर मुस्कराया था . उस ने मुझे फिर से देखा था . उस की आँखों में एक अलग ही संसार उग आया था !
“शायद ….! शायद ….क्यों , सही में …वो …शायद मुझे सूबेदार बना दें !” वह बताने लगा था . “और अगर …मैं सूबेदार बना तो …..तुम्हें भी …..”
“लेकिन , कादिर …?”
“मैं सब समझता हूँ , रे !” कादिर सहज हुआ था . “मैं जानता हूँ कि …तुम हिन्दू हो ….और हिन्दूओं को सूबेदार बनाना ….खतरे से खाली नहीं होता !” अब उस ने मुझे गौर से देखा था . “लेकिन मैं तुम्हें अपने सहोदर से भी आगे मानता हूँ , हेमू ! बिहार में बहुत सारे हिन्दू सेना में हैं ! अब इत्ते मुसलमान आएँगे भी तो कहाँ से ….? और , हाँ ! वहां हमें कोई भी न रोक पाएगा ….! एक बार हम दोनों सूबेदार बने नहीं कि ….” कादिर हंस रहा था .
मेरी आँखों के सामने एक विचित्र द्रश्य घूमा था ! अगर बिहार में सूबेदारी मिलती है तो ….दिल्ली का क्या होगा ….? मुझे तो दिल्ली का सम्राट बनना था ? अगर कादिर बिहार चला जाए ….और मैं दिल्ली में अकेला रह जाऊं ….तो …? लेकिन ये रास्ता ….अभी तक …सामने नहीं आया था !
“हाँ! , तुम्हारे होते ….” कादिर चहका था . “तुम्हारे होते ….”
“बंगाल तक सब हमारा होगा !” मैंने कादिर के मन की बात कह दी थी .
“हाँ, तुम्हारे होते मुझे उम्मीद है …कि हम बंगाल तक रुकेंगे नहीं ! इधर राजपूत तो वैसे ही डरे बैठे हैं . आगरा …ग्वालिअर …भी कमारे कब्जे में आ ही जाएगा ….!” कादिर ने मेरी आँखों में देखा था . “और फिर एक बार सिक्का जमा नहीं कि …..दिल्ली …!!” कादिर ने मेरे मन की बात कह दी थी !
“लो, तुम्हारा नाश्ता आ गया ….!” कादिर ने मुझे सूचना दी थी . “मम्मी भी तुम्हारे लिए तड़पती रहीं !” वह बता रहा था . “तुम्हें बहुत चाहती हैं. ” कादिर कह रहा था . “वो भी हिन्दू हैं, न ….?” उस ने हंस कर बताया था .
एक बार फिर वही हिन्दू-मुसलमान का खंजर हमारे बीच आ लटका था ! मैं कभी-कभी समझ ही न पाता था कि …हम हिन्दू-मुसलमान के दो खेमों में बंटे क्यों लड़ते रहते हैं ….? ये इस्लाम की बला न जाने कैसे बयार के साथ उड़ कर …भारत में घुस आई थी ….? और अब ये कहर ढा रही थी ! हमें बांटे खड़ी थी ….!!
“जंग के सिवा और कोई जादू है ही नहीं ….हेमू ….जो इस इस्लाम के भूत को भारत से बाहर खदेड़ दे …!” मैं अब गुरु जी की आवाजें सुन रहा था . “ईंट का ज़बाब ….पत्थर ही होता है !!” उन का अटल विश्वास था .
“आओ ! नाश्ता साथ-साथ करते हैं ! और तुम्हें मैं शादी की मुबारकबाद भी दिए देता हूँ !” मैंने बड़े ही प्रेम से कादिर को पुकारा था .
“नहीं …!” कादिर अकड़ा था . “वो तो ….नीलोफर को घर चल कर देनी है ….!!” उस ने मुझे सूचना दी थी . “मम्मी ने तुम्हें बुलाया है !” उस का चहरा अनाम सी ख़ुशी में गर्क था .
अशरफ बेगम का बेहद सुंदर चहरा मेरी आँखों के सामने उजागर हुआ था !
“कब से इंतज़ार कर रही हूँ ….!” वह कह रहीं थीं . “मेरा कलेजा काँपता है ….जब मैं तुम्हें …” वही मेरे हिन्दू होने का डर उन की आँखों में लरक आता .
“मैं कभी भी आप को निराश नहीं करूंगा , बुआ !” मैंने चुपचाप उन के कान में कहा था .
कादिर मेरी चुप्पी का अर्थ लगाता रहा था . वह शायद समझ रहा था कि मैं …कोई बहाना बना कर जाता रहूँगा .
“देख, ब्बे …!” कादिर ने मुझे बांहों से पकड़ा था . “अगर तू घर नहीं आया तो ….मैं भी तेरी शादी में नहीं आऊँगा !” वह तड़क उठा था . “क्या हुआ ….हम मुसलमान हैं ….तो ….?” वह मुझे पूछ बैठा था .
“नहीं , यार ! व्वो कोई बात नहीं !” मैंने उसे मनाया था . “पर तुझे कैसे पता कि ….मेरी भी शादी ….?”
“अब्बा के पास न्योता आ चुका है , दोस्त !” प्रसन्न हो कर कादिर ने कहा था . “शामी तो आएँगे और अम्मी भी ….और मैं भी आऊँगा …!!” कादिर ने सब उगल दिया था .
“लेकिन ……” मैं कहते-कहते रुक गया था .
मैं कहना चाहता था कि …कादिर ! हम तो मामूली किसान हैं ! हम तो शादी सादा ढंग से करेंगे …हम तो अपने रीति-रिवाजों के अनुसार ही ….विवाह संपन्न करेंगे ….! हमें कोई सूबेदारी हासिल नहीं करनी , मित्र ! हम तो ……..
“मैं चलता हूँ !” वह अब जा रहा था . “हाँ ! नीलोफर तुम्हारा इंतज़ार कर रही है !” उस ने मुझे सूचना दी थी . “मैंने उसे बता दिया है कि हम जिगरी यार हैं ! और तू महान है – मैंने बता दिया है !” वह हंसा था . “आ-जा-ना , ब्बे …!!” कह कर वह चला गया था .
ड्योढ़ी पर आते ही मुझे एहसास हुआ था कि …पहले मेरी दुआ-सलाम शेख शामी साहब के साथ होनी थी !
“आओ , बरखुरदार !”शेख साहब ने बड़े ही मीठे स्वर में मेरा सत्कार किया था !
“सा-ला-म , शेख साहब !!” मैंने झुक कर उन्हें प्रणाम किया था और उन की बगल में आ बैठा था .
“शादी में शरीक क्यों न हुए ….?” उन का पहला ही सवाल था . “वो लोग …बहुत बड़े हैं ! मैं तो चाहता था कि …तुम्हारा …भी तार्रुफ़ करा देता ….”
“वो शोरे का लफडा था …न …!” मैंने हिचकी लेते हुए कहा था . “अगर मैं शादी में आ जाता तो …सारा खेल ही बिगड़ जाता ! कहीं बारूद बन रहा है ….तोपों के लिए …! शोरे की खपत खूब हो रही है ! दलाल मारे-मारे फिर रहे हैं ! किसी भी कीमत पर शोरा खरीद रहे हैं . लेकिन मैंने अपने सब भट्टी वालों से माल उठा लिया है ! नकद में लिया है . पैसा भी जास्ती दिया है ! लेकिन अब हमारे गोदाम नाक तक भरे हैं . आप अब ….”
खिल गए थे – शेख शामी ! उन्हें लगा था कि मुझे दिल्ली बुला कर उन्होंने कोई गलती न की थी !!
“जाओ ! तुम्हारा इंतज़ार हो रहा है !” उन्होंने प्रसन्न हो कर मुझे आशीर्वाद दिया था .
मैंने अब नांप कर कदम बढाए थे ! मैं पहली बार ही इन के ज़नानखाने में प्रवेश कर रहा था ! सीधे ही मेरा मुकाबला अशरफ बेगम से हुआ था . वो मुझे देखते ही खिल गईं थीं .
“कित्ता तड़पाता है रे , तू ….?” उन्होंने उल्हाना दिया था . “मैं इंतज़ार में सूख गई ….पर तू ….?”
“व्यापार का लफडा था , बुआ ! अगर मैं आ जाता तो सारा शोरा बिक जाता !” मैंने सीधा ही उत्तर दिया था .
“चल, जा !” उन्होंने मुझे अब कादिर के हवाले कर दिया था .
मैं और कादिर अब उस के रंग-महल में आ बैठे थे ! चंद पलों के बाद ही नीलोफर आई थी . मेरी चकित हुई द्रष्टि ने जैसे कोई अपरिचित अप्पसरा देख ली हो ….ऐसा लगा था ! नीलोफर सर से पैरों तक आभूषणों से लदी थी ! सर-सर सरसराता उस का सरारा …लहरों की तरह …हवा पर लहरा रहा था ! उस के चहरे पर एक मोहक मुस्कान धरी थी ! उस का केश-विन्यास बड़ा ही विमोहक था ! गोरी-चिट्टी नीलोफर …कोई दैवीय प्रतिमा लगी थी , मुझे !
“सा-ला-म , भाई जान !” नीलोफर ने मुझे आदर दिया था .
“जीती रहो , बहिन !!” मैंने भी स्नेहपूर्वक उस के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया था . “सौभाग्यवती भव ….!!” मेरे होठों से फिसल गया था .
अब हम तीनों हंस पड़े थे ! हम जोरों से हँसे थे . कादिर मेरे कहे ….करे …और सुने पर …हैरान था ! उसे शायद मुझ से कुछ भिन्न आशाएं थीं ! लेकिन नीलोफर को मेरे बारे में सही अनुमान था !
“मैं भी आधी हिन्दू हूँ , भाई जान !” नीलोफर बोल उठी थी . “मेरी अम्मी भी हिन्दू हैं !” उस ने बताया था . “आप मेरे भाई जान हुए ! मैं आप का स्वागत करती हूँ !!”
“फिर मैं …..?” कादिर उठ खड़ा हुआ था . “अरे, भाई, बताओ कि फिर मैं …..किस का क्या लगा ….?” वह हँसे जा रहा था .
और फिर हम तीनों ही खूब हँसे थे !!
यह भी तो एक संयोग ही था जो आज स्थापित हो गया था !!!
……………….
क्रमश :
श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!