
उस रात मैं सो न सका था !
जाग्रत – भविष्य !!!
“थोडा जल-पान कर लो …?” गुरू जी प्रसन्न हो कर पूछ रहे थे . “बहुत दिनों के बाद लौटे ….?” उन का प्रश्न कुछ गूढ अर्थ लिए था . लेकिन मैं कुछ समझ न पा रहा था .
“ननिहाल में मन लग गया था . अगर …..” अचानक मैं रुका था . मैं केसर के बारे गुरु जी को बताने में शर्मा गया था . हालांकि मेरा मन आज भी केसर की ढाणी में ही डोल रहा था . “माँ तो कह रही थीं …कि अच्छा होता …कि मैं न लौटता….. !”
“अच्छा हुआ जो लौट आये …!” गुरु जी ने भी कुछ सोच कर ही कहा था .
गुरु जी चुप थे . किसी गहरे सोच में थे . कुछ न बोल रहे थे . कोई संगीन बात थी जो उन के मन में अटकी थी . वह मुझे कुछ बताना चाहते थे . …कुछ तो था जिसे वो उगल देना चाहते थे ! पर डर रहे थे . मैं भी अवाक उन के बहते मनोभावों को ताड़, डर गया था !
“चलो ! तुम्हें पाठशाला दिखा लाऊं .” गुरु जी अचानक उठे थे . “बहुत कुछ हुआ है, तुम्हारे जाने के बाद .” वो बता रहे थे . “अब गुरु लाल गढ़ी एक बहुत बडा शिक्षा केंद्र बन चुका है ! यहाँ बाहर से भी शिक्षार्थी आने लगे हैं . उर्दू और फारसी भी पढ़ाई जाने लगी है !!”
“और संस्कृत …..?” मैं पूछ बैठा था .
गुरू जी ने मुझे आँख उठा कर देखा था . वो तनिक मुस्कराए थे . जैसे उन्हें मेरा किया प्रश्न पसंद आया हो – ऐसा लगा था . अब उन्होंने मुझे फिर से अपांग देखा था . अब की बार वह मेरी सामर्थ नांपते लगे थे ! फिर मुग्ध भाव से बोले थे !
“”पढ़ाई जाती है , संस्कृत भी …..! मैंने भी ….संस्कृत पढ़ाना छोड़ा नहीं है …! जब कि …..” चुप हो गए थे, गुरू जी .
“ये कुछ नया ही बना है ….?” मैंने ही चुप्पी तोड़ी थी . “लगता है जैसे आप ने किसी विश्वविद्यालय की स्थापना कर डाली हो …..?”
“वही तो है , हेमू !” अब की बार उत्साह के साथ बोले थे , गुरू जी . “यह देखो ! फारसी का विभाग ….और वो रहा उर्दू का ! उधर पुस्तकालय है ….और …यहाँ ….संस्कृत सिखाई जाती है !” वह मुझे बताते रहे थे और हम चलते रहे थे .
अब हम एक एकांत में आ पहुंचे थे . हम दोनों निपट अकेले थे . अब गुरू जी को विस्वास था कि उन की बात कोई भी कान चुरा न सकेगा ! वहां दीवारें भी न थीं ……और न ही कोई सुनने वाला ही आस-पास था ! लगा था जैसे हम दोनों किसी डिब्बे में बंद थे !
“जासूसों का जाल बिछा रखा है , सिकंदर लोधी ने . अव्वल नम्बर का जल्लाद है !” गुरू जी आहिस्ता-आहिस्ता कहने लगे थे . “हिन्दूओं का तो जानी दुश्मन है ! ठीक ही कह रहीं थीं तुम्हारी माँ ! गलत समय पर …..”
“पर मैं डरता नहीं हूँ ….!” मैंने उत्साह पूर्वक कहा था . “मुझे मौत से डर लगता ही नहीं ……..!!”
“लेकिन बेटे ! बे-मौत भी क्यों मरा जाए ….? बिना कुछ करे कोई क्यों शहीद हो ….? फिर तुम तो वक्त के बनाए सिकंदर हो ….हौंनहार हो …..”
“बोधन को क्यों जिन्दा जलाया जा रहा है ….?” मैंने मौका आते ही प्रश्न पूछ लिया था . “क्या वह कोई ….देश-द्रोही है …या ….”
“नहीं ….! वह तो बहुत बड़ा देश-भक्त है !! इतनी प्रताड़ना के बाद भी हिला नहीं है ….तमाम दिए लालचों के सामने झुका नहीं है ….और न ही वह सिकंदर लोधी से डरता है !!” गुरु जी बता रहे थे . “देव -पुरुष है , वह ! डरता है उस से सिकंदर लोधी …..”
“क्यों ….?”
“कहीं वह उस का तख्ता न पलट दे ….!!”
“कैसे ….?”
“अगर हिन्दू एक जुट हो गए तो …….क्या उठेगा …इस सिकंदर लोधी का …..!!” गुरू जी ने मुझे घूरा था . “बोधन संस्कृत का प्रकांड विद्वान् है ….ग्यानी है …वेद पाठी है ….! उस के अनुयाई देश -विदेश में हैं …! वह जन-मानस की जान है ….प्राण है …! लोग उस का कहा अटल सत्य मानते हैं ….! लोग उस की शिक्षाओं का आदर करते है ….अनुसरण करते है !”
“फिर सिकंदर लोधी बोधन को क्यों जिन्दा जलवा रहा है ….?” मैं चीख पड़ा था .
“इस लिए कि ….बोधन कहता है कि इश्वर और अल्ला एक हैं …..! लेकिन सिकंदर लोधी कहता है कि …इश्वर कुछ नहीं है ….केवल अल्लाह ही है ….और उसी की इबादत होगी …!”
“ये तो गलत है ! बोधन के अनुयाई आगे क्यों नहीं आते ….?” मैं तनिक उद्विग्न हो गया था .
“यही तो रोना है , हेमू !” टीस आए थे , गुरू जी . “यही तो हमारा दुर्भाग्य है !! न तो हम संगठित हैं ….और न ही हमारा कोई धना-धोरी है ….!” उन का इशारा जंग में हार गए हमारे राजा-महाराजाओं की ओर था . “हमारे पास इस जल्लाद का मुकाबला करने के लिए कुछ भी तो नहीं है …..!” अब फिर से उन्होंने मेरी आँखों में देखा था . “उस के पास …तुर्क हैं ….बे-रहम नर-भक्षी हैं …..! घुड़ सवार ….चले आते हैं ….सर्राते ….और उठा ले जाते हैं …बहिन-बेटियों को ….!! लूट-पाट तो ….आम बात है ….लेकिन रोके कौन …..?”
“लोग ….!!” मैंने उत्तर दिया था .
“कैसे,हेमू , कैसे ….? निहत्थे लोग …इन से कैसे लड़ पाएंगे ….?” गुरू जी ने बे-बशी में हाथ झाड दिए थे . वह अब भी विक्षुब्ध थे …..और मैं था – निरुत्तर ….!!
पिता जी मुझे ढूँढने चले आये थे . मशाल के प्रकाश ने हम दोनों को उजागर कर दिया था . चुपचाप मैं उन के साथ घर लौट आया था !!
पर उस रात मैं सो न सका था …..!!!
“हिन्दू ही हिन्दू को हरा सकता है !” अचानक मैं कुछ अस्पष्ट आवाजें सुनने लगता हूँ . “और किसी की ताकत नहीं …जो हिन्दू का हाथ मोड़ दे …!!” आवाजें आती ही चली जाती हैं . “इतिहास उठा कर देख लो ….! जितनी भी निर्णायक जंगें हुई हैं …वहां हिन्दुओं ने ही अपने सहोदरों को हराया है ! और ये सच है , मित्रो …कि चाहे मुसलमान हों …या फिर क्रिश्चियन हों …अगर उन का साथ हिन्दू न देते तो …..”
अब मेरी आँखें खुली हैं . अब मैं भी सचेत हूँ …सतर्क हूँ …! ये बात मुझे भी अक्षरसः सत्य लगी है . हमने ही हमें हराया है – इस में कोई दो राय नहीं हैं . पर …पर ये लोग हैं कौन …जो …सुबह के नौ बजे ही यहाँ इस फिरोज शाह तुगलक के मकबरे पर एकत्रित हुए हैं ? मुझे सोते से जगा कर इन्होने मुझ पर उपकार किया है . अब मैं इन्हें जानने के लिए उत्सुक हूँ .
“मैंने पढ़ा है …कि ..इस मकबरे में जिन रहते हैं !” एक विदेशी महिला ने प्रश्न किया है . “मैं जिन देखना चाहती हूँ !” उस ने अपनी मांग सामने रख दी है .
“तो रात के दो बजे आप आंयें ….!” एक देसी आदमी बोला है . “मिस जैकी ! में आप को तुगलक को दरबार लेते दिखाऊंगा ! में दिखाऊंगा कि कैसे ….”
“लेकिन , मनोज भाई ! ये तुगलक …दरबार क्यों लेता रहता है …?” एक अमरीकन ने पूछा है .
“इस लिए वुड्स कि …उस की आत्मा …अधूरी इच्छाओं के जंजाल से …मरने के बाद भी , मुक्त नहीं हो पाई ! वह तो चाहता था – पूरे हिन्दुस्तान को जीते …दौलताबाद में राजधानी बना कर …भारत के हर कौने पर नज़र रखे … और एक ऐसी सल्तनत कायम करे ….जो ….”
“ये तो सभी चाहते रहे हैं, मनोज जी ! अंग्रेज भी तो इसी सपने को साकार करने दिल्ली आये थे …? उन्हें तो सफलता भी मिली . लेकिन ….उन के किसी कब्रिस्तान में तो ऐसा उधम नहीं होता ….?” फ्रांसिस ने प्रतिवाद किया है . वह अंग्रेज है .
“क्यों नहीं होता …?” हँसता है , मनोज . “तुगलक का तो केवल जिन ही दरबार लेता है ….लेकिन अंग्रेजों की तो सरकार दिन-रात भारत के ही सपने देखती है ….!! कहाँ पच रहा है उन्हें …यों खाली हाथ भारत छोड़ कर चले जाना ….?”
“और मुसलमान ही कौनसे मान रहे हैं ….?” मुरीद बोला है . “अंग्रेजों ने मुसलामानों से छीना था , भारत ! और अब वो चाहते हैं कि ….”
अचानक मेरा विवेक बोलता है – आज भी ये दोनों ताकतें हिन्दुस्तान छोड़ कर कहीं नहीं गईं ….! सहसा मैं सोचने लगता हूँ कि …जहाँ मुसलामानों के मकबरे …महल…मज़ार ..और ईदगाहों की चर्चा …अखबारों में होती रहती है ….वहीँ अंग्रेजों के चर्चों…मीनारों …और हाट -बाज़ारों का भी जिक्र आता ही रहता है ! न मुग़ल कहीं गए हैं …और न ही अंग्रेज ! उन सब की रूहें यहीं हैं . जो मरे हैं …वो आज भी फिर से जिन्दा हो कर भारत को ही जीत लेना चाहते हैं ! पर क्यों ….?
“हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाते रहो ….फिर हमारी फतह निश्चित है !” मुरीद हंसा है . “बेहद बेबकूफ लोग हैं , हजूर !” उस ने वुड्स से कहा है . “ये गुलाम बन कर बहुत खुश रहते हैं ….!!” अब की बार वह ठहाका मार कर हंसा है !
एक उजाला भाग कर मेरे जहन में भर गया है !!
“बोधन को चौराहे पर जला कर मारनेवाला ….और कोई नहीं प्रेम है, हेमू !!” अब मैं गुरू जी के शब्द सुनने लगा हूँ . “प्रेम यहीं संस्कृत पढ़ने आया था . प्रेम एक कट्टर ब्राह्मण था . प्रेम बहुत बहादुर और होनहार था . उसे अचानक सिकंदर लोधी ने दरबार में बुलाया . सूबेदार की पदवी दी और बहका कर मुसलमान बना लिया ! ये बहादुर खान ….वही प्रेम है ! ये बोधन का अनुयाई था …लेकिन …आज ….?”
हाँ …! यही कारण था कि लाख माँ और पिताजी के मना करने पर भी मैं …बोधन को चौराहे पर ज़लता …और मरता देखना चाहता था ! मैं ‘प्रेम’ ….उर्फ़ बहादुर खान को भी बोधन को ज़लाते देखना चाहता था . मैं चाहता था कि …देखूं …और समझूं कि ….’प्रेम’ बहादुर खान क्यों बना ….? और मैं जानना चाहता था कि सिकंदर लोधी का हिन्दुओं को सताना …मुसलमान बनाना ….और उन्हें मौत के घाट उतारना ….क्या कोई अन्य अर्थ रखता था …..?
“चांदनी रात में आना ….अकेले ! नंगे पैर ….!! मंगल वार को हम ज्योत जाग्रत करेंगे ….!!” अब मनोज जैकी को अकेले में समझा रहा है . “हम दोनों ही होंगे ….!!” उस ने कोई गुप्त इशारा किया है .
“और मैं भी तो हूँगा ही , मित्र ….?” मैंने पूछना चाहा है . “मैं भी तुम्हें …सिकंदर लोधी से मिलवाऊंगा ….!” मैं हंसा हूँ . “वह तुम्हें अवश्य ही सूबेदार नियुक्त करेगा ….और तुम …..? गद्दार ….!!” मुझे क्रोध चढ़ आता है ….!!
…………………
श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!