सर्दी लगातार बढ़ती ही जा रही है, खैर! पच्चीस दिसम्बर के बाद सर्दी बढ़ती ही है। हम तो सोच रहे थे, कि सर्दी बहुत ज़्यादा हो रही है, तो अब तो हमारी प्यारी कानू हमारे साथ रजाई का ही आनन्द लेंगी और रजाई में से बाहर ही नहीं आएँगी। pomerian डॉग्स नाज़ुक क़िस्म के होते है, इन्हें ज़्यादा सर्दी और गर्मी महसूस होती है। पर क़ानू के साथ तो उल्टा ही हो गया है, कानू तो अब और भी ज़्यादा शैतानी पर उतर आईं हैं। अरे! हम तो भूल ही जाते हैं, कानू-मानू कोई कुत्ता थोड़े ही है, रानी गुड़िया है.. हमारी।

सुबह ही थोड़ी देर के बाद चाहे छत पर धूप निकली हो या नहीं कानू खेलने कूदने कमरे से बाहर निकल आती है। जैसे ही हम धूप सेकने के लिये कुर्सी पर बैठते हैं.. झट्ट से हमारी गोद में हमसे प्यार करवाने के लिये लपक कर चढ़ जाया करती है। हम भी अपनी प्यारी सी सफ़ेद स्टफ टॉय को अपनी गोद में बैठा कर उसके नाज़ुक और प्यारे से मीठे गालों पर पप्पी दे डालते हैं। कानू को यूँ हमारा गाल पर पप्पी करवाना बहुत ही अच्छा लगता है.. जब तक महारानी जी का मन होता है, तब तक हमसे अपने प्यारे से गालों पर पप्पी करवा अपनी आँखें बीच-बीच में मूंद कर आनन्द लेती रहती है। प्यार करवाना जैसे ही ख़त्म हो जाता है, वैसे ही हमारी गोद से कूद कर कानू-मानू उतर जाती है, और फ़िर वही शैतानी शुरू हो जातीं हैँ.. मैडम की।

सामने वाली दीवार पर आगे के दोनों हाथ टेककर आते-जाते हुए सभी लोगों को भौंकना और फ़िर कोई लोग हो या जानवर कानू का तो सारे दिन का हल्ला करना बनता ही है। अब क्या है, कि हमारे घर के सामने काफ़ी हरियाली है, और सर्दियाँ तो हैं ही, इसलिये घर के सामने हरियाली वाली जगह चरवाहे सारे दिन के लिये अपने पशुओं को धूप में चरने के लिये छोड़ देते हैं.. और शाम को जल्दी धूप ढ़लने से पहले ही वापिस ले जाते हैं। सारे दिन घर के सामने हरियाली में गायों का रौनक मेला लगा ही रहता है। गायों के चरने से क़ानू का काम भी बढ़ गया है.. अब तो कानू के पास एक पल का भी टाइम नहीं होता। प्यारी गुड़िया जैसी हमारी कानू रानी को सुबह से ही गायों की टेंशन हो जाती है.. जैसे ही गायों का मेला लगता है, कानू का भी सामने वाली दीवार पर दोनों हाथ रख भौंकना शुरू हो जाता है। कितना भी कंट्रोल करने की कोशिश कर लो पर क़ानू तो बस हाथ धो कर ही पीछे पड़ जाती है।

काफ़ी दिनों से यही सिलसिला चला रखा है, कानू ने.. पर अब देख कर ऐसा लगने लगा है कि कानू की थोड़ी सी दोस्ती हो गई है.. गायों के साथ। अब जैसे ही गायों के आने का टाइम होता है.. क़ानू अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाते हुए बाहर की तरफ़ दौड़ती है, मानो कोई क़ानू की सहेली या फ़िर दूर के रिश्तेदार आये हों। कानू-मानू को भी अब गायों को देखे बगैर अच्छा नहीं लगता है.. बच्चे मज़ाक करने लगे हैं, कहने लगे हैं.. देखो! कानू आपके रिश्तेदार आ गए।

गायों को कोई बच्चा मज़ाक में क़ानू की बुआ की लड़की बोलता है, कोई मज़ाक-मज़ाक में क़ानू की चाची की लड़की। रोज़ आकर चारा खाने वाली गायों को अब कानू की रिश्तेदार बताने लगे हैं बच्चे।

इसी तरह से क़ानू के सर्दी के दिन मस्ती से रिश्तेदारों के साथ निकल रहे थे, कानू उन गायों को देख-देख खेल- कूद करती रहती और हम घर के कामों में व्यस्त रहते। हुआ यह कि एक दिन हमारी नज़र रसोई में रखे एक कट्टे पर पड़ी.. खोल कर देखा तो उसमें आटा था.. लाएँ होंगे पर रखकर भूल गए थे। अब काफ़ी सारा आटा घर में इकठ्ठा हो गया था.. करते क्या हम इतने सारे आटे का। और वैसे भी हमें किसी ने बताया था, कि आटे को इक्ट्ठा करने से उसमें कीड़े पड़ जाते हैं.. गेहूँ को इकट्ठा कर लो। इकठ्ठा किया हुआ आटा जो पुराना था, वो हमनें एक तरफ़ रख दिया था। अरे! हाँ! एक बात तो हम बताना भूल ही गए हैं, कि कानू आजकल पता नहीं कहाँ से सूखी लकड़ी उठा लाती है.. और सारा दिन अपने रिश्तेदारों के साथ बिताने के बाद शाम को उस सूखी लकड़ी से घंटो खेला करती है.. हम अपनी प्यारी कानू से कहते हैं,” अले! क्या खेल रही हो! कचरा मत खाना”।

हमारी इस बात पर क़ानू हमारी तरफ़ देखती है, खुश होकर अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाती है, और अपनी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर हमसे कहती है,” हम कचरा बिल्कुल भी न खायेंगे, पर हमें इस लकड़ी के टुकड़े से थोड़ी देर खेलने दो माँ!”।

सच! हमारे दिन कैसे प्यार से प्यारी और दुलारी कानू के साथ निकल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। नया साल आने को था, हर साल हम नया साल घर में या फ़िर बाहर दोस्तों और अपने रिश्तेदारों को पार्टी देकर ही मनाते हैं.. इस बार हम सोच रहे थे, कि हम नया साल कैसे मनायेंगे। वैसे तो जब से हमारे यहाँ कानू आयी है, तो नए साल की पार्टी का मज़ा कानू के साथ दुगना हो जाता है। पर इस बार हम सोच रहे थे, कि अपनी कानू और बच्चों के साथ मिलकर नए साल का स्वागत कैसे किया जाए। इसी बात को लेकर थोड़ा सा सोच में डूबे थे, कि अचानक हमारे दिमाग़ में आया, क्यों न बच्चों से आईडिया लिया जाए।

बस! न्यू ईयर की पार्टी का विषय लेकर हम बच्चों के पास पहुँच गए थे। हमनें बच्चों से पूछा था,” हाँ! तो भई! किस तरह से सेलिब्रेट करना चाहते हो न्यू ईयर, ये पार्टी का आईडिया हमें बिल्कुल भी मत देना.. पुराना हो गया है, कुछ नई प्लांनिंग बताओ”।

बच्चों ने हमारी बात पर गौर किया और सोच कर हमारे पास आए, और कहने लगे,” न्यू ईयर पार्टी तो हम ज़रूर करेंगें, पर अपनी गुड़िया कानू के रिश्तेदारों के साथ”।

“ कानू के रिश्तेदार!” हमनें पूछा था।

“ भूल गयीं, वो गाय जिनके साथ कानू- मानू सारे दिन भोंक-भोंक कर बात-चीत करने में बिजी रहती है”। बच्चों ने याद दिलाया था।

“ अरे! हाँ! हाँ! याद आया, पर न्यू ईयर पार्टी पर गायों का क्या काम” हमनें जानना चाहा था।

“ अरे! काम-वाम छोड़ो, इस बार नए साल पर पशु-भोज करवा कर न्यू ईयर मनायेंगे”। बच्चों ने आईडिया दिया था।

हमें बच्चों का आईडिया बहुत ही पसन्द आ गया था.. अब हमनें  साल के पहले दिन पशु भोज करवाने की तैयारी शुरू कर दी थी। आटा तो हमारे पास फालतू पड़ा ही था, बाज़ार से तो कुछ हमें लाना ही न था.. कम आटा न था.. होगा कम से कम बीस किलो के करीब।

अब पशुओं के लिये रोटी और साग तो बनाते नहीं.. तो हमनें पतिदेव से कहकर उनकी फैक्ट्री से कई सारे खाली फालतू पैंट के डिब्बे मँगवा डाले थे।

अब नए साल से एक दिन पहले ही हमनें सारे पैंट के खाली डिब्बे एक जगह जाकर रख दिये थे, जहाँ कानू के रिश्तेदार रोज़ चरवाहे के साथ आते थे। नए साल वाले दिन हमनें आटे का बोरा गाड़ी में रखखा और फैक्ट्री से ट्रैक्टर ट्रॉली पर पानी का ड्रम भी मँगवा लिया था। हम सब अब नए साल की सुबह अपनी कानू और बच्चों के साथ.. कानू के रिश्तेदारों के पहुँचने से पहले ही सामने अपने हरे-भरे घास वाले मैदान में पहुँच गए थे।

हमनें पैंट के डब्बों को लाइन से रख, और सब में आटा और पानी का घोल बना कानू के रिश्तेदारों के आने से पहले ही उनके लिये दावत तैयार कर के रख थी। अब जैसे ही चरवाहा अपनी गायों के साथ वहाँ पहुँचा था.. उसने सारे डिब्बे लाइन से  रखे हुए देखे, उसके पूछने से पहले ही हमनें बता दिया था,” भईया! आज अपनी गायों को यह घोला हुआ आटा खिला दो, यह हमारी तरफ़ से तुम्हारी गायों का नए साल का भोजन है”।

चरवाहा हमारी बात सुनकर हँसा और खुश होकर बोला था,” ठीक है, साहब! आज मेरी भी जल्दी छुट्टी हो जायेगी, इनका पेट फटाफट भर जाएगा.. आपको भी पुण्य मिलेगा, नए साल की आपने बहुत ही नेक काम के साथ शुरुआत की है”।

चरवाहे ने आटे के घोल के सारे डिब्बों के आगे अपनी गाय खड़ी कर दीं थीं.. गायों ने खुश होकर वो घुला हुआ आटा आराम से खाया था। कानू भी एक तरफ़ उस हरियाली में अपने रिश्तेदारों के साथ खुश होकर खेल रही थी। जब तक गायों का आटे का भोजन चला था, हम वहीं अपनी कानू-मानू के साथ खेलते रहे थे। फ़िर वह डिब्बे हम वहीं छोड़ और चरवाहे से यह कहकर,”, भइया यह डिब्बे गायों के लिये चाहिए तो ले लेना.. नहीं तो तुम्हीं इन्हें कबाड़े में निकाल देना”। कहकर अपनी क़ानू रानी को लेकर घर आ गए थे। इस तरह से नए साल पर हमनें कानू के रिश्तेदारों को न्यू ईयर पार्टी दी थी।

इस तरह से अपनी प्यारी कानू के रिश्तेदारों यानी के पशु-भोज करवा कर हमनें नए साल का स्वागत किया था.. कानू-मानू के रिश्तेदारों को नए साल पर पार्टी देते और पुराने साल को टाटा बोलते एक बार हम सब फ़िर से चल पड़े थे.. प्यारी और सबसे न्यारी कानू के साथ।

A Very Happy New Year!! From:  kaanu!