ghamandiघमंडी 

पारुल के यों अचानक चले जाने से राजन के लौटने की उम्मीद पर पानी फिर गया लगा था. सावित्री टीस गई थी. न जाने क्यों ….अगर कभी राजन को कोई काँटा भी चुभा तो …घाब सावित्री को लगा …! राजन को हुई तनिक सी पीड़ा भी सावित्री सह नहीं पाती थी. राजन के बहके-बहके कदम …लड़-खाडाते पैर ….उचट गया दिमाग ….बिगड़ गया जायका …और घोर निराशा बे-काबू होती ही जा रही थी. सावित्री को राजन से लगाव था. …बेहद लगाव था ! राजन के प्रति सावित्री सह्रदय थी. उन दोनों का एका अनमोल था- दोनों का सौहार्द-प्रेम अजेय था ! ‘नज़र लग गई मेरे , राजन को !’ सावित्री ने मन में दुहराया था.

सावित्री ने गलत नहीं सोचा था. कभी राजन और सावित्री की जोड़ी चर्चा में थी. उन के प्रेम-प्रसंग …उन के कारनामे ….करतूतें ….जग जाहिर थे ! राजन और सावित्री के जीवन में सर्व-सुख थे . उन के पास धन के ढेर थे ….चाहतों के पारावार थे….अटूट सम्पति थी – फलता-फूलता व्यापार था ! हर संभव सुविधा उन के पास थी. धाक थी उन की चहु ओर ! पर ….अब ….राजन …?

लौट-लौट कर राजन आज फिर से सावित्री के मानस-पटल पर उदय हो रहा था.

राजन …..! युवा राजन …..!! कर्नल जेम्स का शिष्य – राजन …सावित्री के सामने आ कर ठहर गया था.

“गुड मोर्निंग , मैडम …!” उस का वह कहा विनम्र अबिवादन सावित्री आज तक भूली कहाँ थी ….?

“हाउ आर , यू …., राजन …?” उस का पूछा प्रश्न भी कोई कम महत्वपूर्ण न था !

चीते की सी चाल-चल्गत वाला – राजन , तब सावित्री को एक बेजोड़ युवक लगा था ! हीरे का मुंह पोंछते ही …..उस की चमक सामने आने लगी थी. कर्नल जेम्स की दी शिक्षा-दीक्षा को राजन ने बड़े ही मनोयोग से ग्रहण किया था. स्वभाव से म्रदु-भाषी  ….हंस-मुख …और कर्तव्यनिष्ट – राजन …..सब की आँखों का सितारा बन गया था! सुलेमान सेठ तो ….राजन की कश्में तक खाने लगा था….उस के नाम के सिक्के चलाने लगा था …..उसे घुड-दौड़ के खेल का जादूगर कहने लगा था ! कहने लगा था – राजन बाबू, राज़ करोगे …..ये मेरा मत है !

“इन्दयोरेन्स टेस्ट …..इज …ए …मस्ट, मास्टर !” कर्नल जेम्स ने सुलेमान सेठ को बताया था. “अगले इतवार को …तैयारी करो …! दस-बारह …जोड़े होने चाहिए ! देखा-जूली वाले क्रॉस- कंट्री कोर्से पर सुबह दस बजे – सब तैयार रहें !”

सुलेमान सेठ के लिए कर्नल जेम्स के आदेश – अखंड होते थे….सिरोधार्य होते थे ….! क्यों कि वह जानता था ….कि …कर्नल जेम्स जैसा अनुभवी आदमी ….ही उन की नैया पार लगा सकता था !

“मैं …देखा-जूली जा रही हूँ , इतवार को ……..” सावित्री ने अपनी माँ – गीता को बताया था.

“क्यों ….?” उन का प्रश्न था.

“घुड-सवारी के लिए …कर्नल जेम्स …….”

“तो तुम्हें क्या लेना है ….?”

“भाग लेना है ….!”

“क्या ….?” चौकी थीं गीता देवी .”और तेरे …उस कालेज के कार्य-क्रम का क्या रहा ….? तू …तो ….अपने इष्ट – माइकल दत्त पर कविता -संग्रह …..?”

“शिट ….!!” सावित्री ने मुंह बिचका कर कहा था. “मैं जा रही हूँ ….और …प्लीज, मामा …..पापा को कह कर कर्नल जेम्स …..!”

“शिफारिश …..?”

“हाँ,हाँ …! बिना पापा के बताए …कर्नल जेम्स …..!”

“जिद्दी …हो गई है , तू – सावित्री ….!!” माँ ने शिकायत की थी. “आज-कल तेरे हाव-भाव बदल गए हैं….!” उन का कहना था. “देख …..”

“नो भाषण , मोम …!” सावित्री ने खुशामद की थी. “प्लीज ….प्लीज …! पापा से ….मेरी ओर से …., प्लीज , मोम ….!!”

देखा जूली के क्रॉस कंट्री रेस ट्रैक पर …सजे-बजे खड़े राजन और कजरी को सावित्री ने आँखें भर-भर कर देखा था ! कजरी और राजन …..दो ही थे – जो उस समारोह की जान थे ….शान थे ….और आने वाले कंपनी के इतिहास की आन थे …!

“ये …घमंडी ….थोडा पागल है , मैम …!” कर्नल जेम्स ने सावित्री को सचेत किया था. “बी ….फर्म …..एंड ….” उन की चेतावनी थी.

इस बार सब ने मुड कर सावित्री को देखा था. लम्बे-चौड़े …जिस्म वाले घमंडी घोड़े पर बैठी – सावित्री , ….किसी भी राज कुमारी से कम न लग रही थी ! घमंडी का रंग गोरा था …..और सावित्री …….? एक नाप-तोल जैसी आरंभ हुई थी. कजरी सांवली थी …तो …घमंडी गोरा था …..और राजन ….और सावित्री ……? हवा पर न जाने कैसे राजन और सावित्री को जोड़ा बना दिया था ! घमंडी की आँखें सांवली कजरी पर टिकी थीं ….तो राजन चोरी-छुपे बार-बार सावित्री को देखे जा रहा था ….!

घोड़े …और युवक-युवतियां ….सब युवा थे …! केवल कर्नल जेम्स ही थे …जो जिम्बेदार थे ….बूढ़े थे….और अनुभवी थे ….!!

कैंटर से सहज रूप से दौड़ आरंभ हुई थी. एक लंबा रास्ता तय होना था. रास्ते में रुकावटों के अलावा – खेत -खलिहान ….झाडी-झुण्ड …उंच-नीच …और …तोड़-मोड़ …सभी शामिल थे ! एक प्रकार का सम्पूर्ण इम्तिहान था – आज !

कजरी और राजन …दो ही थे , जिन के लिए ….ये सब अनोखा न था !

वो दोनों तो …यह सब अपने शैशव-काल में ही ….देख चुके थे ….भुगत चुके थे …..! उन का तो आरंभ ही यही था ! कजरी का मन खिल गया था ….और राजन की आँखें भी चमक उठीं थीं ….!!

सावित्री ने यह सब देख लिया था ….!

और वहां कुछ ऐसा भी था – जो सावित्री ने पहली बार देखा था.

कजरी पर रीन्झा उस का घोडा – घमंडी , उतावला-बाबला हो गया था. लाख कोशिश करने के बाद भी सावित्री उसे काबू न कर पा रही थी. घमंडी ……कजरी के ऊपर जान देने तक के लिए आमादा था. सावित्री क्या करती …?

एक अजूबा ही हुआ था ! उस की अपनी आँखें ….अनवरत रूप से राजन पर जा लगी थीं . न जाने क्यों वह अपलक राजन को ही निहार रही थी ….निहारना चाह रही थी ….! जिस ढंग से राजन ने कजरी को अपने हाथों में संभाला हुआ था ….बेजोड़ था ! राजन के हाव-भाव भी सावित्री के मन को बहुत भा रहे थे. जिस मनोयोग से वह कजरी को दौड़ा रहा था ……कुदा रहा था ….और मंजिल की ओर चला ही जा रहा था – सावित्री के लिए एक अनूठा अनुभव था !

“क्या – वह …..मुझे नहीं देख रहा ….?” सावित्री के मन में जिज्ञासा थी. “क्या राजन …केवल कजरीको ही देख रहा है ….?” उस ने स्वयं से प्रश्न पूछा था.

“वह तुम्हें ही देख रहा है …..अपनी मैम को ही निहार रहा है …..सराह  रहा है …..और …..”

“और ……..?” सावित्री पूछ बैठी थी.

“तुम पर जान निशार है – उस की ! तुम्हें ……पा चुका है …..राजन …! तुम्हें ….प्यार …, हाँ, हाँ …..प्यार करता है ……, राजन !”

“धत्त …….!!” सावित्री सोच कर लजा गई थी.

पहली बार ……हाँ, अपने जीवन में पहली बार सावित्री के मन में किसी पुरुष के प्रति इस तरह के विचार पैदा हुए थे. वह – सहज , सिल्बिल्ली …लड़की …..एक बारगी …आज शौख …और चंचल हुई लगी थी ! पहली बार उस के मन में ‘प्रेम’ के अंकुर फूटे थे. पहली बार उस ने अपने जीवन में किसी पुरुष को आमंत्रित किया था ! और …पहली बार ही ….वह काम-देव के आते फूल जैसे बाड़ों के मुकाबले में खड़ी हुई थी. उसे …आज हारने में आनंद आ रहा था ….पूर्ण समर्पण के लिए उस का मन कह रहा था …..वह राजन को …, न चाह कर भी ….चाहती चली जा रही थी !

अलख में कहीं ….राधा के साथ कन्हेंयाँ ….फाग खेलने लगे थे ….!!

ये घमंडी  नहीं था – जो कजरी को छेड़ रहा था ……बल्कि …राजन था ….जो ….सावित्री को बांह पकड़ कुंजों में लिए जा रहा था !

“लगाम संभालो ……, सावित्री ….!” कर्नल जेम्स की जौमदार आवाज़ सावित्री ने सुनी थी .

और जब सावित्री ने घमंडी को खींचा था …तो वह …विद्रोही सलीम की तरह ….लगाम चबा कर …कजरी के साथ जा खड़ा हुआ था ! राजन को ये चलता शुगल सुहाने लगा था. उस ने तुरंत कजरी को भर-फैंक दौड़ने की आज़ादी दे दी थी . वह जानता था कि सावित्री का पागल घोडा -घमंडी ही मात खाएगा ……

“क्या कर रहे हो …….?” सावित्री ने पुकारा था.

“चली …आओ …..!!” परचम जैसा लहराता – राजन , हवा से बातें कर रहा था !

परिवेश और प्रतिभा दोनों लड़ रहे थे . कजरी को उंच-नीच का डर  न था – लेकिन घमंडी …..बार-बार गच्चा खा जाता …संभलता …और फिर से कजरी के पीछे आ जाता ..!

सावित्री को न जाने कैसे …एक अनमोल आनद ने आ कर अपनी अंजुरी में भर लिया था.

वह भूल गई  थी. घमंडी को  ….और उसे याद था – राजन ! राजन एक बार पलट कर …उस पर निगाहों के तीर चला गया था ! उस ने मुस्कराकर उत्तर दिया था ….स्वागत किया था …..सहमति जताई थी ! कितना आनंद आया था ……कितना-कितना …अच्छा लगा था …..सावित्री को ..! घमंडी तक को इस की खबर लग गई थी ! वह अब कजरी के बराबर आ लगा था. तब राजन ने भरपूर निगाहों से सावित्री को देखा था. सावित्री ने भी उन निगाहों के स्वागत में अपने गेसुओं को फहरा कर ….राजन को प्रेम की छांह बांटी थी ….और राजन ने क्या किया ….?

कजरी में एड लगाईं थी – उस ने ! कजरी ने सरपट भरी थी. घमंडी गिरते-गिरते बचा था ! वह अब कजरी से पीछे छूट रहा था .सावित्री परास्त हो रही थी. उसे रोष आने लगा था. उस ने भी घमंडी में एड लगाईं थी …..’तेज …और …तेज …’ दौड़ने को कहा था.

घमंडी फासला कम करने लगा था. राजन ने भी उसे करीब आते देख लिया था.

कजरी राजन के इशारे पर जान झोंक कर दौड़ती जा रही थी . अचानक राजन ने देखा …..था- तालाब , सामने गहरा तालाब ….! उस के पसीने छूट गए थे. पर फिर उस ने स्थिति को संमझ लिया था. अचानक ही कजरी को कस कर रोक लिया था…, उस ने ! लेकिन घमंडी सावित्री को लिए  ….उस के सर पर आ खड़ा हुआ था. राजन ने अपनी बलिष्ट बांहों में सावित्री को लपक कर ले लिया था …..! अँधा हुआ घमंडी ….तालाब के भीतर समा गया था …!

पहली बार राजन ने सावित्री के सुकोमल अंग-प्रत्यंगों को निहारा था …..महसूसा था …..छुआ था ……और उन्हें चूमते-चूमते रह गया था…! पहली बार सावित्री ने भी राजन की बलिष्ट बांहों की सामर्थ को …कूता था ..उस के अनग जैसे सौष्ठव को आँखों में भर कर महसूस था ….किसी पुरुष के बदन के …..स्पर्शों को सराहा था – चाहा था ……! सावित्री एक अनमोल सुख-स्वपन की गोद में ….आ बैठी थी …! राजन भी तो अपनी मन की मांगी मुरादें पा गया था !!

“क्या हुआ ……., राजन …?” कर्नल जेम्स की आवाज़ ने राजन को जगा-सा दिया.

“बेहोश …हो …गई …है, सर !” राजन का उत्तर था.

सावित्री ने आँखें बंद कर लीं थी …..! वह बेहोश थी – अब !!

राजन ने उसे एक छोटे बच्चे की तरह ….कंधे से चिपका लिया था ! कजरी से नीचे कूदा  था – वह …और आहिस्ता-आहिस्ता …तालाब की सीढियाँ उतर गया था …! अपनी जाँघों पर सावित्री को लिटा ….उस ने तालाब के स्वच्छ जल के छीटे मारे थे. सावित्री ने आँखें खोल दीं थीं ….!

दोनों तब ….खुली आँखों से …एक-दूसरे को देख कर – दंग रह गए थे ….!

और कर्नल जेम्स ने …घमंडी को तालाब से निकाल कर …फिर कभी कजरी का पीछा न करने को कहा था ….!!

 

 

 

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