“बुरा न माने , कामरेड ! चस्मदीद गवाह मिल गया है . अपना ही अज़ीज़ है. गण-मान्य व्यक्ति है. उस ने कह दिया है कि …कि बम्ब फाड़ते हुए उस ने …’भगत सिंह ‘ को अपनी आँखों से देखा था . अब तो फांसी टूटेगी …टूटेगी ….ज़रूर …”
“रो क्यों रहे हो ….? हंसो …मेरी तरह हंसो !! हा हा हा हा …! अंधे है , अंग्रेज ! लालच में पड़ा आदमी वक्त की पहचान खो देता है ! ये समझ नहीं पा रहे है कि मैं एक इतिहास बनूँगा …उदहारण बनूँगा ….मशाल बनूँगा ….मिशाल कायम करूंगा ….और मेरे अजीज मैं अमर हो जाऊँगा ! अब हंसो ….मेरी तरह हंसो …- हा हा हा हा …!!”
“लेकिन ….लेकिन …हमारी आज़ादी की जंग ….?”
“मेरे मरने के बाद आरंभ होगी , मित्र ! विशास करो मैं मरूंगा नहीं ….मौत के बाद और भी प्रासंगिक हो जाऊँगा …बलशाली बन जाऊँगा …और तुम देखना कि ….मैं ….इन के सारे बने मंसूबों को ढा दूंगा ! मेरी मौत के बाद उगा युवा-शक्ति का श्रोत …नए संवेग के साथ तूफान बन कर उठेगा …! कुर्बानियों की होड़ लगेगी …देश-भक्ति सर चढ़ कर बोलेगी ….! खून से फाग खेलेंगे ….भारत माँ के लाल !!”
“बापू ….?”
“नहीं …..! नहीं मांगेगे मेरे प्राणों की भीख ….! दाता अंग्रेज नहीं ….वक्त है , मित्र ! सब को तराजू का तुला मिलता है !! ”
“झूठी गवाही देने वाले को ….हम ….?
“गवाह झूठे ही होते है …..लेकिन न्याय झूठ के पेट से ही तो पैदा होता है , मित्र ! जो अंग्रेज कर रहे हैं ….अन्याय नहीं है ….न्याय है !”
उन के चहरे पर एक कांति आ बैठी थी . न जाने वो कैसी आभा थी जिस मैं देश-हित स्पष्ट दिखाई दे रहा था . और उन चमचमाती आँखों मैं जलती ज्योति ….असंख्य दीपकों को प्रज्वलित करती लग रही थी …..आज़ादी के पथ को प्रकाशित करती जा रही थी ….अनंत की ओर बढती ही जा रही थी ….
प्रणाम ! आप अमर हुए , कामरेड !!
कारण – वो झूठी गवाही थी ….मित्र ! मान गए …..?
————