इंग्लैंड में भारत

उस रात सोई कहाँ थी, सावित्री !

कहाँ गया होगा, राजन ? ज़रूर क्लब जाएगा  …..खूब डट कर पीयेगा  ….और फिर पत्ते बांटते-बांटते बेहोश हो जाएगा  …और फिर  …? नहीं,नहीं ! अब वो संभल गया है. जब से अकेला रहने लगा है  …तब से  …

पूरा विगत तार-तार होकर सावित्री की दृष्टि के सामने पसर गया था. लीर-लीर हो कर हर शब्द सुनाई दे रहा था. बाबू जी के स्वर न जाने कैसे  …बेहद असरदार लग रहे थे. माँ का कहा-सुना सब भी उसे एक पश्चाताप की तरह याद आ रहा था. का:श।..! उस ने माँ -बाबू जी की बात मान ली होती  ….तो  ….

लेकिन प्रेम के प्रमाद ने तब बाबला बना दिया था, उसे  ..!

उस के पैर उस की प्रत्याशाओं के साथ हवा में ही रहते  …ज़मीन को छूते ही नहीं थे !

“पंछी हैं, हम  …!” राजन ने उसे टहोक कर कहा था. लन्दन की उड़ान पर जाता हवाई जहाज अब भयंकर गति से उड़ रहा था. “हवा    …मैं उड़ते दो पंछी  …….” उस ने विहँस कर सावित्री की आँखों मैं झाँका था।

हर्षातिरेक से सावित्री की आँखें चमक उठीं थीं. उसे तो कभी स्वप्न भी न आया था कि वह इस तरह अपने प्रेम के सामीप्य में  ..लन्दन जाएगी। ..सपनों से भी ऊँची उड़ान भरेगी  …आसमान को  उस की मुराद पूछेगी !

“थमेगी तो नहीं  …..ये उड़ान  ….?” सावित्री ने राजन को आहिस्ता से पूछा था.

“नहीं ! अब नहीं थमेगी  …!!” राजन ने दृढ़ स्वर में कहा था. “मैं …तुम्हें  …लेकर उडता ही रहूँगा  …अनाम गंतव्यों की और  …लगातार  ….!”

“थक गए  तो  …?”

“तो   …..तुम मुझे लेकर उड़ान  ….!” राजन ने चुहल की थी. “छोड़ना मत मुझे, साबो !” उस ने मधुर स्वर में आग्रह किया था. “हम   ….एक दूसरे के लिए हैं   …सहायक  …सेवक  …प्रेमी  …और   पूरक   !!”

“हाँ  ..!” सावित्री ने स्वीकारा था. “मैं  …मैं  ….तुम्हें   ….?”

सावित्री की आँखें सजल हो आई थीं. आज वह  …राजन को लेकर चलने में  … असमर्थ थी  ..?

“देखो, साबो   ..!” राजन की आवाज़ लौटी थी. “देखो  ….तो   …इस भव्य देश को  …इस विशाल हवाई अड्डे को  …और  …देखो  …”

“चिल्लाते क्यों हो  …?” सावित्री ने जैसे डांट दिया था , राजन को. “महसूस करो  …मनन करो  …! और  ….” सावित्री कहीं प्रसन्न थी  …बहुत प्रसन्न ! “और  ….अनुकरण करने का प्रयत्न करो। ..!”

उन दोनों को एक साथ लन्दन भा गया था.

“नहीं,नहीं  …! मैं  …अकेले  …कमरे में अकेला हरगिज़ नहीं रहूँगा। ” राजन का किया वो हंगामा सावित्री को याद आ रहा था. “एक पल भी मैं  …साबो से अलग नहीं रहूँगा !” उसी का ऐलान था. कर्नल जेम्स भी गड़बड़ा गए थे.

“अरे,भाई ! तुम  ….अभी कंवारे हो  …अभी तो तुम  ….” उन्होंने सावित्री की और देखा  था.सावित्री चुप थी. सावित्री तो न जाने कब की हार  .चुकी थी  …न जाने कब से वह राजन के साथ रह रही थी  ….उस के सहबास में थी  ….सपनों में थी। “एंगेजमेंट तक नहीं   …जो  ….?”

“तो करो न , सर  …!” राजन ने आग्रह किया था.

“लेकिन शादी  ….?” सावित्री का प्रश्न था. “माँ-बाबू जी की    ….!” उस ने रुक कर कर्नल जेम्स से प्रार्थना की थी. “कलकत्ता लौट कर   ….” उस ने सुझाव दिया था.

“मैं  ..डर्वी में भाग नहीं लूँगा, सर !” राजन जिद पर था. “मैं  …मैं  …!” वह अड़ गया था. “आई डोंट वांट  …टू  …लिव  विदआउट  यू  …साबो  ! इवन  …फॉर  ..ए  ..मोमेन्ट  ….?” उस ने खुलासा किया था. “तुम मेरी जान  …और प्राण हो   …! मैं  न रहूँगा, तुम्हारे बिना  …!!” उस का खुलासा था.

“टेक योर ओन डिसीजन , सावित्री !” कर्नल जेम्स बोले थे. “यू आर ए मैच्यौर गर्ल नाउ। ….! डिसाइड  …जस्ट   …नाउ  …!! से   …से  …, यस ! और तुम्हें चाहिए क्या, सावित्री  …? मन पसंद आदमी है  …करश्मेटिक पर्सनेलिटी है  ….आकर्षक है  …स्वस्थ है  …तुम्हें भाता है  …तुम उसे  ….प्यार करती हो  …और तुम  ….”

स्वीकार कर लिया था सावित्री ने उन का सुझाव।  ओट ली थी , राजन की जिद  …!!

दोनों बहुत खुश थे. चिड़ियाओं की तरह चौंच लड़ाते  …लड़ते-भिड़ते  …पूरे लन्दन में घूमते-फिरते रहे थे  ….खरीदारियां करते रहे थे.

“मन पसंद अंगूठी खरीदूंगा ,  चाहे जहाँ मिले  …” राजन फिर से जिद पर अड़ा था.

“गनेशी लाल के यहाँ जाओ ! मन की मुराद पूरी होगी  ….” भारतीय मूल के, इंग्लैंड में रहते ठेकेदार – गणपति ने बताया था. “बड़ा व्यापारी है  …!” उस का कहना था.

और वो दोनों अपनी-अपनी चाहतें लिए लाला  गनेशी लाल के आभूषाद ग्रह में जा घुसे थे.

“ये देखो, कुंवर साहब!” लाला  गनेशी लाल स्वयं राजन के सामने थे. “मैं आप की मनोभावना समझ कर माल दिखा रहा हूँ.” उस ने कहा था.

“क्या है, ये  …? कैसे  ….”

“हीरे को तराशते समय नक्षत्रोँ की आभा और आभास को प्रकाश के साथ इस में प्रवेश कराते हैं….ताकि पहनने वाले का प्रतिबिम्ब सपुंज सामने आ जाय !”

“गप्पें मत सुनाओ , लाल जी  …?” राजन हल्के मूड में बोला था. “कोई  ….?’

“गप्पें नहीं हैं, कुंवर जी ! हमारा व्यापार विश्व स्तर का है। हमारा गडित और हमारी ज्योतिष एक अटल सत्य हैं. ” लाला जी बता रहे थे. “बिटिया के नक्षत्र और राशि देख कर   …हमारे ज्योतिषाचार्य का कहना है   …कि बिटिया सदा सुहागिन  ….और   ….”

“पैक करा दो  ….!!” राजन बेहद खुश था.

अब सावित्री ने राजन के लिए अंगूठी चुननी थी.

“देखो, बिटिया  …!” लाला  गनेशी लाल के मधुर शब्द गूंजे थे. “अष्टधातु मैं समाहित हुआ पुखराज  ….पहनने वाला पुरुष  ….अजेय हो जाता है  …”

“मुझे  ..यही चाहिए  …!”सावित्री ने आदेश दिया था. “पैक करा दो   …”

राजन ने फिर से सावित्री को अपांग देखा था. सावित्री लजा  गई थी. अमर बेल की तरह वह इकठ्ठा हो जाना चाहती थी. पर राजन ने उसे सहारे से संभाल लिया था !

पार्टी का आयोजन कर्नल जेम्स ने किया था. आगंतुकों में वही सारे लोग थे -जो डर्वी से सम्बंधित थे. सभी लोगों ने इस पार्टी में आना एक सु-अवसर माना था   …और भारी संख्या में लोग आये थे.

पंडित हरिहर प्रसाद का मंत्रोच्चार जब सभागार में गूंज था   ….तो लोग अभिमंत्रित हुए सुनते ही राह गए थे।  लगा था – इंग्लैंड में भारत ही उठ कर चला आया था  …और अब अपनी महत्ता का बखान कर रहा था  …! इस तरह के पर्व यहाँ कभी-कभार ही देखने-सुनने को मिलते थे !!

“कन्या को अंगूठी पहनाओ  …!” पंडित हरिहर प्रसाद ने आदेश दिया था.

“बर  ..को अंगूठी पहनाएं। ..!” फिर से आदेश आया था.

और फिर सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था. दोनों के चित्र लेने मैं मशगूल मीडिया  …बाबला  हुआ लगा था.

सावित्री को आगंतुकों ने सेठ धन्नामल की बेटी के रूप में जान लिया था. उसे अपने आप को स्थापित करने में कुच्छ न लगा था. लेकिन  ….राजन बार-बार लोगों की निगाहों की पकड़ में आता था  ….और छूट जाता था.

उस दिन जैसा राजन का सौष्ठव और सौजन्य – सावित्री ने पहली बार देखा था. देव-तुल्य पिंडी लग रही थी – राजन की ! चेहरे पर बैठा हास्य और आँखों में कूदती-फिरती शरारत  …सावित्री को मोहक लगी थी. मन से वरा था – उस दिन सावित्री ने राजन को !

राजन – आज भी लोगों के लिए ‘माल’ था। …ख़रीदे जाने वाला ‘माल’ ! लोग – जो उस खेल के माहिर थे – जानते थे कि राजन ख़ज़ानों की चाबी था  …अकूत था  ….अनमोल था  …!! लेकिन वो सब के सब असहाय थे. सेठ धन्नामल की बेटी ने उस अनमोल रतन को   ….कौड़ियों में खरीद लिया था. सब जानते थे कि  ….सावित्री ने सब कुछ समो  लिया था  ….और आगे भी  ….फतह सावित्री की ही होनी थी !

उस दिन राजन सुर्ख़ियों में था  ….चर्चा में था  ….और था – एक चुनौती !

और आज फिर से राजन सुर्ख़ियों में आ गया था ! लेकिन   …आज राजन ने उस के प्रेम पर भी प्रश्न-चिन्ह लगा दिए थे. जो अखबारों में छपा था  ….वह एक वल्वा था …विद्रोह था  ….एक संगीन घटना था  ….! सावित्री को सब समझ आ रहा था.

दरवाजे की घंटी बजी थी. सावित्री बमक पड़ी थी. उस ने संयत हो कर दरवाजा खोल था.

“क्या हुआ  ….?” सावित्री ने पूछा था.

“प  …प  …पुलिस है , मैडम  …!” गार्ड ने बताया था. “पूछे – साब कब निकले , घर से   …? हम कहे – कल शाम को मैम साब के साथ गए थे  …! पूछे- कब लौटे   …? हम कहे – कि वो नहीं लौटे ..! मैम साब  ……”

“अब क्या है  …?”

“आप से कुछ पूछना चाहते हैं ..”

“तुमने बता तो दिया , सब  ….!” सावित्री ने झिड़का था उसे। “पागल  …! मूं  खोलने से पहले   …पूछ तो लिया होता  …?’ नाराज थी- सावित्री।

“राजन से मिलने के बाद ही मैं आप लोगों से बात करूंगी !” सावित्री ने कहा था और पुलिस लौट गई थी.

क्रमशः

 

 

 

 

 

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