रैमर : तोप में गोला लोड करने का एक मजबूत लकड़ी का लम्बा दस्ता।
दुश्मन के लोहागढ़ पर हमारे वीर सैनिक आक्रमण कर रहे थे। हमले का नाम ‘गरम हवा’ दिया गया था।
“गरम हवा फायर।” कैप्टिन मानिक जो कि फायर कंट्रोल ऑफीसर थे, उनकी आवाज वायरलैस सैट पर गूंज उठी थी।
आदेश पाते ही हमारी तोपें दनादन फायर किये जा रही थीं। शमशेर के पुष्ट बदन पर पसीने की बूंदें उगी थीं। कांख में रैमर दबाए वो लगातार अपनी तोप के डिटैचमेंट के अन्य पांच साथियों को आदेश दिये जा रहे थे – लोड .. करैक्ट .. फायर।
बगल में लगी अन्य तोपें भी उसी की तोप की तरह आग उगल रही थीं, दुश्मन की हमला रोकती कंपनियां धूल चाट रही थीं। अदृश्य से आते बंदूकों और मशीनगनों के फायर होने के निनाद तोपों की गर्जन-तर्जन के साथ संधि जैसी कर रहे थे।
लैफ्टीनैंट चौधरी की आवाज रह-रहकर तोपचियों के कानों में गूंजती – मोर वन फाइव डिग्री .. टू फाइव मिनिट ..। एलीवेशन .. वन फोर डिग्री ..। थ्री राउंड्स गन फायर .. फायर ..। हुक्म मिलते ही तमाम तोपों पर गोले लोड करनेऔर फायर करने की होड़ सी लग जाती। समूची गन पोजीशन में लोड फायर, लोड फायर की आवाजें, तोपों के छूअने की आवाज के साथ मिलकर कलेजा कंपा देनेवाली हुंकार जैसी बन जातीं। लगता – मानो रणचंडी ने अपने पूरे गाजन-बाजन के साथ शत्रु की सेना पर आक्रमण किया हो।
वायरलैस सैट पर कैप्टिन मानिक की आवाज रह-रहकर गूंजती – दुश्मन भाग रहा है। दुश्मन का एक टैंक टूट गया। दुश्मन के पांच सिपाही पकड़ लिये ..। दुश्मन अब हथियार डाल रहा है। सात घायल हुए सैनिक सामने पड़े कराह रहे हैं ..।
लैफ्टीनैंट चौधरी दनादन गोले फायर करते पोचचियों को जब ये सूचना देते हैं तो उनके लड़ने के हौंसले और भी बुलंद हो जाते हैं।
आसमान पर तोपों का धुआं घटाटोप बनकर छाने लगा था। हवा में जली बारूद की गंध मिलकर अजीब सा गैसों का एक कॉकटेल तैयार कर रही थी। शत्रु पर लगातार विजय पाने का हर्ष तमाम सैनिकों को इनाम जैसा बांट रहा था। रात-रात भर जागरण करते और लगातार गोले फायर करते रहने से तोपचियों के कंठ स्वर भर्रा गये थे। एक शांत रौद्र बनकर उनकी आंखों से टपक रहा था।
लेकिन ये क्या ..? अचानक ही लैफ्टीनैंट चौधरी ने चिल्लाकर कहा – काला घोड़ा। यानि कि दुश्मन की रेड पार्टी ने गन पोजीशन पर हमला कर दिया है। सैनिकों में एक अजीब सी खलबली मची है। सूबेदार थापा दस-बारह सैनिकों की एक टोली बनाकर निर्धारित मोर्चे पर दुश्मन को रोकने चल पड़े हैं।
लैफ्टीनैंट चौधरी ने सभी गनों को अपने ठीक सामने गोले बरसाने का आदेश दिया। चारों ओर बंदूकों और लाइट मशीनगनों की गोलियां बरसने लगीं। शत्रु ने तीन ओर से भारी तादाद में हमला बोल दिया था। वीरतापूर्वक दुश्मन का मुकाबला करते लैफ्टीनैंट चौधरी को लाइट मशीनगन का एक ब्रस्ट लगा।
लगा, जैसे अनगिनत महारथियों ने अकेले अभिमन्यू पर वार किया हो! चौधरी बुरी तरह घायल हो खंदक में गिर पड़ा। लेकिन यहॉं अभिमन्यू अकेला नहीं था। मुकाबला अब भी जारी था। शमशेर अपने पूरे जोश-खरोश में आगे बढ़ते दुश्मन पर अब भी गोले बरसा रहा था।
एक स्वचालित दृश्य किसी आश्चर्यजनक घटना की तरह घअने लगा था। सामने धावा बोलते शत्रु के सैनिक आखिरी सांस तक जूझने को तैयार थे। शत्रु अब कतारबद्ध हो चढ़ते ज्वार की तरह लहरों में आ-आकर धावा बोलने लगा था। अपने मृत और घायल सैनिकों के शरीर फलांग फलांग कर वो लोग हमारी गन पोजीशन पर कब्जा करने को निरंतर आगे बढ़ रहे थे।
तोपखाने का कलर तोप होती है। हमारे पूर्वज भी उसे चंडी या मॉं भवानी के नाम से सम्बोधित कर इसकी पूजा करते आये हैं। मुगलों और अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज तक तोप युद्ध में विजय प्राप्त करने का एक जबरदस्त कारण सिद्ध होती चली आई है। नेपोलियन ने विजय पर विजय प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया था कि अच्छा तोपखाना लड़ाई जीतने का सबसे बड़ा और जोरदार फैक्टर है। यही कारण् है कि आज भी लड़ाई आरंभ करने से पहले एक देश दूसरे देश की आर्टीलरी को कूतना नहीं भूलता। अगर अपना पलड़ा हलका पड़े तो विपक्ष की तोपों को इंफैन्टरी भेजकर नष्ट करने का प्रयास एकमात्र विकल्प होता है।
शमशेर ने देखा था कि उसकी बगल में लगी नम्बर एक तोप को दुश्मन के सैनिकों ने बारूद लगाकर उड़ा दिया है। उस तोप पर काम करते सभी लड़ाके सैनिक वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। अपनी भवानी मॉं की गोद में उसके लाडले जवान बेखबर होकर सो रहे थे .. चिरनिन्द्रा में निमग्न। शमशेर को एक उत्साह भरने लगा था। वीरगति प्राप्त करने की मुँह बाये खड़ी उस अनमोल घड़ी का उसने एक क्षुद्र मुस्कान से अभिनन्दन किया।
अब भी गोलियां चल रही थीं। सूचना पाते ही कैप्टिन मानिक ने अपनी दूसरी तोपों का फायर अपनी ही गन पोजीशन पर लाना आरम्भ कर दिया था। दुश्मन को अंतत: मिटा देने की तमाम कोशिशें आरम्भ हाे चुकी थीं।
लेकिन दुश्मन भी था एक नम्बर का ढ़ीठ। न जाने चींटियों की तरह कौन से अदृश्य बिलों से आ-आकर आगे बढ़ता आ रहा था। दोनों ओर के सैनिक बुरी तरह से हताहत हो फटी-फटी ऑंखों से इस विचित्र घड़ी का अंत देखने को उत्सुक लग रहे थे। हार-जीत दो सगी सहोदराओं की तरह सैनिकोंं को मृत्यू मॉं की ओर अग्रसर होने को प्रेरित कर रही थीं।
चार पांच सैनिक शमशेर की तोप की ओर लपके। शमशेर ने अपनी स्टेनगन से वार करना चाहा, लेकिन उसकी गोलियां खत्म हो चुकी थीं। तमाम खाली हो गई मैगजीनों का एक बार मुलाहिजा कर उसने स्टेनगन को जमींन पर फैंक दिया। वह न जाने कब से गोलियां बरसाता रहा था और अब .. जबकि उसे अहं जरूरत थी .. उसकी गोलियां खत्म हो चुकी थीं।
शमशेर ने मुड़कर साथियों की ओर देखा। ये क्या ..? वहॉं भवानी मॉं की गोद में उसके सभी लाडले पुत्र चिरायू हुए सो रहे थे। शमशेर घबराया नहीं था। एक ठंडा आक्रोश उसके दिल दिमाग पर विष की तरह असर करने लगा था। उसकी दांती भिंच गई थी। तोप के अजेय आंचल से उछलकर उसने रैमर से सीधा शत्रु पर वार किया। पहली चोट – पहला दुश्मन नीचे। दूसरी चोट – दूसरा दुश्मन चित्त। तीसरी चोट – तीसरा दुश्मन .. और चौथी चोट पर चौथा दुश्मन .. शमशेर के कदम चूम रहे थे।
लेकिन उस चौथे दुश्मन ने जमीन चाटने से पहले शमशेर पर अपनी बन्दूक के कुंदे से जबरदस्त चोट की थी। आते वार को कनपटी पर झेला था – शमशेर ने। एक तमाड़ा सा उसे आ गया था, जो उसे बेहोश किये दे रहा था। दुश्मन के सैनिकों को अपने कदमों पर बिछा देख उसने एक अजेय मुस्कान फैंकी। वह अपनी तोप की नाल का सहारा पा कर टिक गया था। न जाने कब उसे एक गहन बेहोशी ने आगोश में ले लिया था।
शमशेर कि ऑंख जब खुली तो दृश्य बदल चुका था। अब वह महावीर चक्र विजेता शमशेर था। शमशेर – अब रेजीमेंट की शान था। वह रेजीमेंट की तोपों की तरह ही अब एक कलर था। उस के चित्र असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में छपे थे। उसकी तोप के आस-पास पड़े दुश्मन के चार मृत सैनिकों सहित उसका चित्र जब उसी के सामने आया तो उसे विश्वास न हुआ था। कर्नल शर्मा ने शमशेर को सीने से लगा लिया था। शमशेर की ऑंखों में गर्व के आंसू झिलमिला रहे थे।
“रेजीमेंट के इतिहास में तो तुम्हारा नाम अमर रहेगा ही शमशेर, लेकिन आज से भारतीय तोपखाने में भी तोपची तुम्हारा नाम गर्व से लिया करेंगे।” कर्नल शर्मा कह रहे थे।
“ये आपके ही आशीर्वाद और सख्त सिखलाई का फल है सर! आप हमेशा कहते रहते थे – तोप हमारा कलर है .. हमें इसकी इज्जत करनी चाहिये। रोज सुबह उठकर तोप को सैल्यूट करना चाहिये, ये आपका ही आदेश था।” शमशेर का कंठ रुंधने लगा था।
“इसी से तो आज हमारी इज्जत दुगनी हो गई है – और अब ये सिद्ध हो गया है, शमशेर।” कर्नल शर्मा ने शमशेर की पींठ थपथपाते हुए कहा था, “तोप साक्षात मॉं भवानी का स्वरूप है।”
“एक गोली – एक दुश्मन के स्थान पर हमारा आज से नारा होगा – एक रैमर : चार दुश्मन ..” कैप्टिन मानिक ने हँसते हुए कहा था। “कैसा रहेगा सर ..?” उसने कर्नल शर्मा से मुड़कर पूछा।
“शमशेर को हम इस नारे के सहारे सदियों तक प्रेरणा-स्रोत के रूप में जिंदा रख सकते हैं।” कर्नल शर्मा ने समर्थन किया था, “यंगमैन इज राइट।” उन्होंने प्रशंसा में कैप्टिन मानिक के कंधों को थपथपाया, “तुमने भी तो दुश्मन पर आर्टिलरी का फायर डालकर कमाल के युद्ध कौशल का परिचय दिया है ..। तुम्हारा नाम भी अमर हो गया है। देखता हूँ – क्या मिलता है।”
“सर! अगर एडज्यूटेंट को इनकी बहादुरी का पता चल गया ता .. एक्सट्रा ड्यूटी सुना देगा।” बगल में खड़े लैफ्टीनेंट चौधरी ने परिहास किया।
“वाह बेटा! नम्बर काट कर वीरचक्र मार ले गये ..। और अब हमारी बारी आई तो .. एक्सट्रा ड्यूटी ..?” कैप्टिन मानिक ने लैफ्टीनेंट चौधरी को आगोश में कस लिया था।
लगा – कैप्टिन मानिक और लैफ्टीनेंट चौधरी विजयदशमी के दिन गले मिलते राम-लक्षमण हों। लक्षमण लगी शक्ती झेल फिर से स्वस्थ हो गया था और राम .. स्नेह-सिक्त निगाहों से अपने सहोदर की सामर्थ्य कूत रहा था। कैप्टिन मानिक को याद आ रहा था – किस तरह अपनी जान झोंककर उसने लैफ्टीनेंट चौधरी को तोपों सहित दुश्मन के चंगुल से बाहर निकाला था। किस तरह उसने सैनिक की अचूक सूझ-बूझ से विजयी होते दुश्मन को पराजित का करार दे दिया था।
अगर कैप्टिन मानिक ने वैसा न किया होता तो ..? वह किसी प्रकार भी मातृभूमि के ऋण से मुक्त न हो पाता। किसी भी कारण से अगर दुश्मन अपने कलुषित इरादों को कामयाब करने में सफल हो जाता तो ..? उसने अवश्य ही हमारी मॉं बहनों की इज्जत पर हाथ डाला होता। लहलहाते धान-गेहुँओं के खेतों को खूनी टैंकों ने बेरहमी से रौंद डाला होता। घर-बार और स्कूल-अस्पताल सभी का मटियामेट उड़ जाता। कितनी क्षति होती देश की ..! देश के सभी स्वतंत्र नागरिक आज गुलामी के काठ में जड़ दिये गये होते। राम-राज्य के स्थान पर आज एक तानाशाह हमारे सरों पर बैठा होता।
कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है एक सैनिक की ..। उसकी संगीन की चमचमाती नोक के नीचे ही एक सभ्य और संस्कृत समाज सुख की सांस ले सकता है .. देश उन्नत और संपन्न होता चला जाता है .. निर्भय।
“चाओ! तुम मिल गये .. अब कुछ न भी मिले तो परवाह नहीं।” कैप्टिन मानिक ने लैफ्टीनेंट चौधरी को दुलारते हुए कहा था।
लैफ्टीनेंट चौधरी की ऑंखाें में आभार का पानी था। अजब होते हैं सैनिकों के पारस्परिक सम्बन्ध ..। मौत के बहुत करीब से साथ-साथ लौट आने के बाद जो प्रगाढ़ परिचय हो जाता है .. वह अन्यत्र दुर्लभ ही होता है। मशीन के मुकाबले मनुष्य की मान-महत्ता रण-क्षेत्र में ही जाकर सिद्ध होती है।
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य