आ गया गाँव!.. बस! रोक दो काका बैलगाड़ी.. यहीँ तक आना था.. मुझे। चलो! अच्छा! हुआ.. जो आप की यह बैलगाड़ी मुझे मिल गई.. नहीं तो इतना लम्बा सफ़र पैदल ही तय करना पड़ता। वो सड़क बनाने की बात चल रही थी.. न क्या हुआ काका उसका..

“ बस! देखो! बिटिया अगले साल तक बन तो जानी चाहिए”।

“ ठीक है!.. काका!.. मैं अब निकल लूँगी, आप चलो!”।

बैलगाड़ी वाला बुज़ुर्ग अपनी गाड़ी मोड़.. वहाँ से निकल जाता है.. बैलों के गले में बँधी घंटियों की टन-टन बहुत दूर तक सुनाई पड़ती रहती है।

“ अरे! यह क्या! उस चबूतरे के नीचे इतनी भीड़ कैसे!.. आगे चलकर देखती हूँ।”

नीम के पेड़ के चबूतरे के समीप पहुँचकर..” हाँ! मौसी! इतनी भीड़ और इतनी लम्बी लाइन यहाँ काहे की लगी हुई है!”।

भीड़ में से मुश्किल से निकलती हुई.. महिला ने जवाब दिया था। महिला को देखकर ऐसा लग रहा था.. मानो काफ़ी घंटों से लाइन में लगीं हुईं थीं.. गला भी प्यास के मारे सूख।गया था.. पहले महिला ने पास लगे हैंड पंप से जी भरकर पानी पीकर अपनी प्यास बुझायी थी.. और अपने हाथ-पाँव और मुहँ धोकर तरो-ताज़ा हो गईं थीं।” आह! थोड़ी जान में जान आई। बड़ी मुश्किल से नम्बर आया था.. पर चलो! इतनी देर लाइन मे लगी तो सही! पर मुझे जानकारी पूरी मिल गई। जिस काम के लिये सवेरे से ही धक्के खा रही हूँ.. पूरा हुआ”। महिला ने लम्बी साँस भरते हुए कहा था।

“ हाँ! तो मौसी!.. बता तो काहे बात की इतनी लम्बी लाइन लगी है”। मैने महिला से उत्सुकतावश पूछ ही डाला था।

“ अरे! बिटिया हम लोग बहुत दिन से सुन रहें थे.. कि कोई एक दूत स्वर्गलोक से आने वाला है.. सो आज आ ही गया.. बस! तो मैं भी लाइन में लग गई, देखने के लिये की क्या बताता है।”।

“ क्या! पूछा!.. मौसी तुमने!.. और क्या बताया तुम्हें इस दूत ने”।

“ बिटिया मैं यहाँ अपने परिवार के उन लोगों के बारे में जानना चाहती थी.. जो आज मेरे साथ न हैं.. पर इस दूत ने कहा कि यह केवल आज एक ही सदस्य के बारे में बताएगा.. और बाकियों का एक-एक करके हर हफ़्ते पूछना पड़ेगा। इसलिये आज मैने केवल अपने पति के बारे में ही पूछा.. जो महीना पहले बीमारी में ही मुझे छोड़कर चला गया था। मैंने तो अपनी तस्सली कर ली। तुम किसलिये यहाँ खड़ी हो!.. क्या तुम भी..”। महिला ने मुझसे पूछा था।

“ हम्म!.. हाँ! मौसी!.. देख लूँगी मैं भी!”।

“ अच्छा! तो बिटिया निकलती हूँ.. सवेरे की निकली हूँ.. घर भी तो देखना है”। कहकर महिला वहाँ से निकल गयी थी।

“ अब यहाँ तक आई गयी हूँ.. तो स्वर्गलोक के इस दूत से पूछ कर देखूँ.. शायद मुझे भी कुछ बता दे। चलो! माजरा क्या है.. पता चल जाएगा”। और मैं भी लाइन में लग गई थी। बड़ी मुश्किल से घंटो बाद मेरा नम्बर आया था.. शुक्र है.. नम्बर आ तो गया”।

“ जल्दी पूछो!.. जो भी पूछना है.. टाइम ख़त्म होने वाला है.. केवल एक ही सदस्य का नाम और उनकी डिटेल बताइए!”।

दूत के पास ख़ड़े व्यक्ति ने ऊँचे स्वर में कहा था।

“ कुसुम वर्मा.. नाम है। एक साल पूर्व हमसे अलविदा ली थी”। मैंने भरे हुए लेकिन ऊँचे स्वर में व्यक्ति को बताया था, ताकि दूत तक आवाज़ पहुँच सके।

“ रिश्ता क्या था!”। व्यक्ति ने सवाल किया था।

“ माँ!.. थीं मेरी”। मेरा काँपता हुआ.. रुआँसा भरा जवाब था।

दूत तक सारी जानकारी पहुँच चुकी थी.. स्वर्गलोक के दूत ने अपना रजिस्टर खोल कर माँ का नाम ज़ोर से पढ़ते हुए बताया था,” कुसुम वर्मा नाम की महिला जिन्होंने यह संसार एक वर्ष पहले ही छोड़ दिया था.. का पुनर्जनम एक विदेशी रईस परिवार में हो चुका है.. बेहद आराम और मौज भरा जीवन होगा उनका। अब तुमसे माँ का रिश्ता नहीं है”।

इतनी जानकारी देकर वह दूत वहाँ से उठकर चला गया था.. क्योंकि टाइम जो समाप्त हो चला था।

मुझे इस दूत की बात सुनकर बहुत अच्छा लगा था.. माँ के बारे में जानकर। मैं अपनी कुर्सी पर बैठकर बेहद खुश हो गई थी। एकदम प्रसन्न हो गई थी.. चलो! माँ लौट आईं और विदेश में जन्म ले लिया है। अब मेरे दूर तक सोचने की शक्ति भी यहीँ ख़त्म हो गई थी। कुर्सी पर बैठकर ही माँ के बारे में खुदी सोचकर और ख़ुद ही नतीजा भी निकालकर आज मैं खुश थी।

बैठे-बैठे आज माँ बहुत याद आ रहीं थीं.. बस! अचानक ही मन एक सपनों के गाँव में जा खड़ा हुआ था.. और मन के बनाये हुए ही स्वर्गलोक के दूत ने जो मन माँ के बारे में सोच रहा था.. वही बता भी डाला था। होता क्या है.. की हमारा मन हमें ठीक वहीं पहुँचा देता है.. जहाँ हम जाना चाहते हैं। आज मन माँ के हाल-चाल पूछना चाह रहा था.. सो! उड़ान भर कर मिलवा दिया था.. स्वर्गलोक के दूत से.. जहाँ माँ हम सब को छोड़ कर चलीं गयीं हैं। पर मन का जवाब सुन कर आज में बेहद प्रसन्न हो गई थी। और अपनी कुर्सी से अपने ख्यालों की दुनिया छोड़ कर उठ खड़ी हुई थी।

चलते-चलते खुशी में मेरे होंठ हिले थे, और मुहँ से निकल ही गया था.. काश! कि तुमने वाकई में विदेशी परिवार में पुनर्जन्म ले लिया हो.. और तुम हमेशा के लिये सुखी और खुश हो गई हो माँ!