महामना
दिल्ली दरबार लगा था.
बहुत भीड़ थी. एक गहमा-गहमी थी. सौहार्द के फब्बारे बह रहे थे. सब एक दूसरे के गले मिल रहे थे. सब एक मंच पर खड़े थे. सब एक जान, एक प्राण और एक जुट थे. सब के लिए एक ही चुनौती थी – कम्युनलिस्म ! सब को इसी बिम्मारी का इलाज़ मिल कर खोजना था. सब को लड़ना था ….जंग करनी थी …जीतना था ….और फिर ….
पूरे देश के चूहे मात्र बिल्ली के संकेत पर खिंचे चले आए थे.
दरबार हॉल खचाखच भरा था. बिल्ली के पास बैठे चूहे अपने आप को धन्य मान रहे थे. जो अलग-थलग थे ….वो कहीं से आंदोलित थे. कारण – बिल्ली का सामीप्य सभी को वांछित था. बिल्ली का अदल था ….बिल्ली का वर्चस्व था ….बिल्ली के हाथ बहुत लम्बे थे ….बिल्ली की आँख में उन के प्राण बसते थे. वो बिल्ली से विमुख कैसे हो सकते थे ?
सब जानते थे – कि वो चूहे थे ….पर आज जो उन को सम्मान प्राप्त था – वह किसी जंगल के दुर्दांत शेर को भी नसीब नहीं था. आज उन की चाँदी थी. आज उन का बोल-बाला था. आज उन की आवाज़ में दम था. आज सत्ता उन के इशारों पर चलती थी. आज वो जो चाहें सो कर गुजरते थे. उन्हें अब किसी का भय नहीं था. उन्होंने अब इतना कमा लिया था कि ….उन की सात पुश्तों से लेकर ….सत्तर पीढ़ियों तक माल पर्याप्त था.
देश की ठोस ज़मीन को पोला कर ….उन्होंने बिल बना लिए थे. उन्होंने खोद डाला था – समाज के उस कठोर धरातल को …जहाँ कभी चींटी भी सतर्क हो कर चलती थी. उन तमाम सामाजिक बंधनों को उन्होंने ताक पर रख दिया था – और अब ज़मीन के नीचे दबा माल उन का था – उन का अपना था ….उन की की कमाई थी.
अब राज उन का था. गांधी तो स्वराज लाया था. लेकिन अब बिल्ली के पंजे के ठीक नीचे – जो उन्होंने रचा -बसा था , वो उन का राज था ! उन की सत्ता थी …..और इस सत्ता में सिर्फ वही श्रेष्ठ थे. चूहों के अलावा …..अब वहां कोई और फटक भी नहीं सकता था. उन की इस बिरादरी का एका सराहनीय था. तनिक सी आहट होते ही सब एक हो जाते थे. …सतर्क हो कर गोल बाँध लेते थे ….फिर मजाल कि …हवा का कतरा तक उन के बीच प्रवेश पा जाए !
हाँ ! बिल्ली की बात ही अलग थी.
“ठाकुर नहीं आया ….?” बिल्ली ने जौमदार आवाज़ में प्रश्न पूछा था.
दरबार में सनाका हुआ था.यही तो डर था ….! सब जानते थे कि …ठाकुर की मौत आई है – अब !
“बीमार हैं , महामना !” एक कातर आवाज़ में किसी ने कहा था.
एक पल सब शांत बना रहा था. सब ने एक दूसरे की आँख को पढ़ा था. एक ही उत्तर था , गया काम से , ठाकुर !!
“हमारी लड़ाई …लोगों से नहीं है ….बल्कि उन लोगों से है …..जो लोगों को सता रहे हैं …! उन का माल-असबाव लूट रहे हैं ……उन के घर-बार बिकवा रहे हैं …जला रहे हैं …!!”
तालियाँ बजीं थीं . एक भयानक कोलाहल उठ खडा हुआ था. बिल्ली की प्रशंशा के पुल बांधे जा रहे थे.
“खूब मोटे -मोटे हो गए हैं …..!” बिल्ली ने बिल्ला के कान में चुपके से कहा था.
“मुफ्त का माल जो खाते हैं ….?” बिल्ला हंसा था. “बहुत-बहुत कमा लिया है ….! सब के सब माला-माल हैं ….!”
“पलने दो ….!” बिल्ली ने विहंस कर बिल्ला से कहा था. “बाँट कर रखना …..फूट डाल कर चलाना …..!” बिल्ली बता रही थी. “इकठ्ठे मत होने देना ….! क्यों कि हमें …तो एक-एक कर खाना है , इन्हें ! पीढ़ियों तक का भोजन हैं , भाई !”
बिल्ला ने बात मान कर स्वीकार में सर हिलाया था – तो चूहे बिल्ली की जय-जयकार करने लगे थे. 