संग्राम

बुरा न मानें –

आप ही क्यों , मैं भी तो आप की तरह ही इस दलदल में धंस कर देखना चाहता हूँ कि  …आखिर ये माज़रा क्या है ? जो आदमी पूरी उम्मीद के साथ  …जोशो-खरोश में  और मुठियाँ कस कर  …इस दलदल में उतरता है  …और कहता भी है कि वो दंगल जीतेगा  – वही हार जाता है  …डूब जाता है   …!

आग का दलदल   ..सत्ता का समुन्दर  …या कहें कि माया का चमत्कार  …, ये राजनीति – आज का रोग बन चुकी है। .!! पहले संत-महंत मैनिकाओं के हाथों सब गवां बैठते थे  ….लेकिन आज का ‘आदर्शवादी’ जैसे ही इस ओच्छि राजनीति का झंडा -डंडा छूता  है – वैसे ही गिरगिट की तरह रंग बदल देता है। जो सीधा-सादा , पढ़ा-लिखा , चरित्रवान- ईमानदार और निरा समाजसेवी नज़र आता है – वही नेता बनते ही कुछ उल्टा-सीधा नज़र आने लगता है !

“टैम कहाँ है  ….?” वह  कहने लगता है. “काम कितना है, क्षेत्र में। ….?” उस की शिकायत होती है. “अरे,भाई ! समाज का काम है – सो तो होगा  …लेकिन खर्च-वर्च  …तो होगा  ….लेना-देना भी चलेगा  …! आखिर  …राजनीति   …तो करनी पड़ती है  ….”

लच्छेदार भाषण , उम्दा इस्माईल, सफ़ेद वर्फ़ से कपडे ,चमचमाती कार , कोठी और आस-पास घूमते चमचों की चकाचौंध   ….आप सोचते हैं – ये तो वो नहीं जिसे हमने चुना था  … ! पल-छिन में ये कायाकल्प कैसे हुआ  …?

धन की माया है, जी ! बस आदमी सब सीख लेता है  ….! अब बड़े से बड़ा अफसर भी सलाम ठोकता है। तो कर्मचारी मुठियाँ भरते हैं  …पब्लिक आरती उतारती है  और  …तंत्र उन के तलवे चाटता है। पुलिस तो चौबीसों घंटे पहरे पर तैनात ही रहती है. पल-छिन की खबर रखती है , पुलिस कि  ….कहीं उन का कोई अहित न हो ! उन का ही नहीं  उनके तो कुत्ते तक हिफाज़त के जाल में बुने होते हैं  …!

अब और कितना-कितना रोएं  ….? चुनाव तो फिर पहुँच गए  …!! अभी तो हम और आप पुराने हादसों से नहीं उबरे। ..! इन के लिए क्या-क्या नहीं किया था  …? क्या-क्या नहीं सोचा   …? लेकिन वही – खोदा पहाड़ और निकली चुहिया  …! निराश ही किया सब ने  !!

अब वही – पुराने -नए बन आए हैं ! वही नए झूठ. बेहूदा बहाने, लंबे-लंबे भाषण   …और उबाऊ सभाएं  …? कितना वक्त बर्बाद होता है   ….पैसा भी लगता है  …पूरा तंत्र काम मैं जुत जाता है  ….! क्यों  ….? क्या देश को कोई लाभ होनेवाला है   …?

“उन्हें तो लाभ होगा , जी ! जिसे टिकिट मिली है  …..बस हो गया   ….निहाल ! क्या ज़रुरत है – पढ़ाई-लिखाई की    … या कुछ करने-धरने की  ….या कि …! बस नेता जी बनो  …और मौज करो  …!!

कूद पड़ो  – संग्राम मैं  …! वर्ना गुलामी आप से सिर्फ दो गज दूर पर खड़ी है  …! अच्छे लोगो , कब तक हाथ-पर हाथ धरे बैठे रहोगे   …?

भले लोगो- उठो,चलो  …! देश, समाज,धर्म ,भाषा और अपने भविष्य को बचा लो   …!!

मुझे तो कुछ आता-जाता नहीं  ……

 

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