कहानी .

”सलौनी …।” फोन था . कोई बहुत जानी-पहचानी आवाज थी . पर था कौन ? समझ न आया था – उसे । ”भूल गईं …?” उस ने उलाहना दिया था . ”मैं …मैं ,यार । चित्ररथ ….।।” उस ने अब अपना नाम बताया है.

”ओह । चित्ररथ ….?” सलौनी की जैसे सांस रूक गई थी . ”तुम …?” उस ने आश्चर्य से पूछा था . ”आज …? इतने अंतराल के बाद …रादर सदियों के बाद …रे …। थे कहॉ …तुम ?” उस ने प्रश्न पूछा था .

”बस । तुुम्हारी तरह की ही …जिन्दगी की उब-डूब में तैरता-उतराता रहा ….जीता रहा …” उस ने भी उलाहना जैसा ही दिया है .

”बोलो …?” सलौनी ने पूछा है . वह जानती है कि चित्ररथ बिना मतलब के कभी बात नहीं करता।

‘व्वो ….वो …तुम्हारा एक नग्न-चित्र है ।” तनिक हकलाते हुये चित्ररथ बोला है । ”व्वो बाला …ब्लैक एन्ड ..;व्हाईट …जब पहली बार तुमने मुझे ….?”

”हॉ-हॉ । याद आया …जब पहली बार तुमने मुझे …निर्वसन कर वह चित्र खींचा था …और कहा था कि …वाे अकेला चित्र ही मुझे आसमान पर चढ़ा देगा ?”

”हॉ-हॉ । वही चित्र है , सलौनी ।” एक किलक लील कर वह बोला है . ‘बाई गौड । आज भी अगर कोई देखेगा तो ….बेहोश हो जायेगा ।” हॅस रहा है , चित्ररथ .

”बे-होश तो मैं …हुई पड़ी हॅू ।” सलौनी ने दर्द भरी आवाज में कहा है . ”पर तुम चाहते क्या हो ….?”

”इस चित्र को …आक्शन करना …। बेचना …चाहता हॅू – इसे …?” चित्ररथ कह रहा है . ”तुम कहदो …तो …? मेरा दावा है -सलौनी कि…आज जब लोग घरों में छुपे बैठे हैं ….इस सैक्सी फोटोग्राफ को देख-देख कर ही जी जॉयगे …पी जॉयगे इस में चित्रित शबाबों को …और हमें तो फिर …मूं-मांगा मिलेगा ।।” चित्ररथ चुप हो गया है ।

सलौनी भी चुप है . सलौनी को वो दिन याद हो आया है …जब निर्वसन हुई थी और चित्ररथ ने यह नया न्यूड बनाया था और …एक आविष्कार की तरह…हवा में आजाद कर दिया था । उस के बाद तो …अजूबे ही हुये थे । न जानें कितने-कितने बे-हूदे …बदतमीज़ …और क्रिमीनल उस से सांपों की तरह चंदन-बट मान लिपटे ही रहे थे …और जब वह शिखर पर पहुंची थी तो …बे-होश थी ।

लेकिन आज भी तो वह नर्धन ही थी …? दाने-दाने के लिये मुंहताज थी – वह ।।

‘बेचदे …।” तनिक क्रोध मेंं आ कर कहा था – सलौनी ने . ”बेचदे मुझे फिर एक बार …बाजार में , चित्ररथ ।” वह पागलों-सी हॅसी थी . ”बिकने को ही तो बना है – मेरा ये अंग-सौष्ठव …?” जमाने को गाली दी थी , सलौनी ने .

और फिर से एक बार ..निर्वसन…निर्रलज्ज …बे-हया …और बेवकूफ सलौनी …हवा पर तैर रही थी ….पैसों के पीछे भाग रही थी …और नोट थे कि …उड़ते ही जा रहे थे …। दूर …बहुत दूर …..

”कोरोना ने नहीं मारा मुझे , चित्ररथ …पर तू गाेली मारदे …..? हैलो ….हैलो …चित्ररथ……?”

चित्ररथ ने फोन काट दिया था – शायद ………


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