छोटा सा प्यारा सा सफ़ेद लड्डू बड़ा तो हो ही रह था हमारे साथ,बड़े होते-होते अपना दिमाग़ भी दौड़ाना सीखती जा रही थी। छोटा सा सफ़ेद ऊन का गोला मेरी क़ानू डॉक्टर के पास से लाने के थोड़े दिन बाद ही छोटी मोटी शैतानियाँ करनी सीख गई थी, साथ ही नन्हा सा दिमाग़ चालाक भी होता जा रहा था। बहुत सुन्दर लगती थी क़ानू जब छोटी सी थी, जिसका जिक्र मैं अपने लेखन में एक बार तो कर ही देती हूँ। क़ानू के पतले-पतले नीचे की तरफ झुके हुए कान हुआ करते थे,और बड़ी प्यारी सी काले अँगूर जैसी काली छोटी सी नाक। छोटी थी क़ानू ,तब क़ानू के नन्हे-नन्हे पैर भी मोटे-मोटे थे। जैसे स्टफ टॉयज के होते हैं। और नन्ही सी पूँछ हुआ करती थी cute सी। हेल्थ में अच्छी थी ऐसा लगता था, जैसे गोल मटोल लड्डू ज़मीन पर घूम रहा है। बहुत ही ज़्यादा स्वीट लिटिल व्हाइट बॉल दिखती थी मेरी क़ानू। यह स्वीट लिटिल व्हाइट बॉल खेल-कूद के साथ-साथ चालाकी भी सीखती जा रही थी। नन्हे से दिमाग़ में बहुत छोटी-छोटी और प्यारी -प्यारी चालाकियाँ आ रहीं थीं। मुझे याद है, जब हम क़ानू को घर लाये थे, तो छोटा सा लड्डू दिमाग़ की तेज़ थी, सफारी गाड़ी में जब में क़ानू को घर ला रही थी,तब टिक कर न बैठा जा रहा था,क़ानू मानू मेरी बाजू में से अपना छोटा सा मुहँ निकालकर न जाने कौन सी शैतानी करने के मूड में आ रही थी। जैसे-जैसे स्वीट लिटिल व्हाइट बॉल बड़ी होने लगी थी,छोटी-छोटी चालाकियों ने भी जन्म ले लिया था। मुझे अच्छी तरह से याद है, जब हम क़ानू को घर लाये थे, तब मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस वक्त हमारे बाथरूम के दरवाज़े के नीचे एक बड़ा सा छेद था,अब तो खैर हमने दरवाज़ा चेंज करवा लिया है, यह छेद चूहे द्वारा धीरे-धीरे किया गया था, छोटी सी क़ानू जब भी कोई स्नान करने बाथरूम में घुसता था, तो बाथरूम के दरवाज़े से बॉल की तरह रोल होते हुए उस बाथरूम के छेद में घुस जाती थी। फिर जब क़ानू पर पानी मारते थे, तो बाहर आती थी,या फिर ऐसा करती थी, कि अपनी अँगूर जैसी छोटी नाक अन्दर दरवाज़े में सेट करके पता नहीं क्या देखती रहती थी। दिन गुज़रते गए क़ानू बिटिया थोड़ी बड़ी और ऊँची हो गयी थी, और बड़ी होने के साथ-साथ एक दो चालाकी और दिमाग़ में आ गयी थी। जब बच्चे स्कूल जाते थे, तो सुबह के टाइम ही बच्चों के लिए हम मीठा दूध बना दिया करते थे, और पतीला टेबल पर रख बच्चों की स्कूल की तैयारी में लग जाया करते थे,पता नहीं यह बात मेरी क़ानू ने कहाँ से नोट कर ली। हालाँकि क़ानू को भी हम उसके बाउल में दूध और रोटी ही दिया करते थे, मसालों के चटखारे तो गुड़िया रानी ने बाद में शुरू किए थे। एक दिन हमने देखा बच्चों को दूध पिलाने के बाद पतीले में रखा हुआ दूध खाली हो गया था,हम हैरान हो गए थे कि “अरे!बच्चे इतने शरीफ़ कब से हो गए कि जो दूध एक्स्ट्रा पतीले में बचा है,वो भी अपने आप ही लेकर खत्म कर लिया।” यही काम लगातार दो तीन दिन तक होता रहा,फिर चौथे दिन चोर पकड़ में आया, असल में आज चौथे दिन यह चोर गीले पैरों से दूध पीने आया था,ये चोर कौन था? ये चोर था…मेरी प्यारी चालक सी सुन्दर सी क़ानू….आज मैंने क़ानू के गीले छोटे-छोटे पैरों के निशान देख लिए थे, पहले कूद कर क़ानू कुर्सी पर चढ़ती थी,और वहाँ से टेबल पर चढ़कर पतीले का सारा दूध साफ कर देती थी। इसी चालाकी भरी हरकत पर हमने हल्के से क़ानू के रूई जैसे गाल सेक डाले थे, हमारी पूरी बात समझ गयी थी हमारी नन्ही गुड़िया। हमने क़ानू से प्यार से कहा था”ऐसे चोरी करके दूदू नहीं पीते हैँ, मम्मा देती तो है आपको”। छोटे से तेज़ दिमाग में क़ानू के यह बात घर कर गयी थी। फिर दोबारा इस तरह की शिकायत का मौका नहीं मिला था हमें क़ानू से।

हाँ!  एक नन्ही सी चालाकी और याद आयी हमें क़ानू की। क़ानू को खाने में प्याज़ का स्वाद पसन्द आ गया था, प्याज़ के टुकड़े को बहुत ही प्यार से कचर-कचर करके खाती थी, एक दिन हम दो चार प्याज़ कुर्सी पर रखकर किसी काम के लिऐ नीचे गये थे, बस! क़ानू ने कुर्सी पर चढ़कर चुपके से प्याज़ गायब कर डाले..हम प्याज़ ढूंढते रह गए, बहुत ढूँढने पर पता चला कि गमले के पीछे क़ानू ने प्याज़ छुपा रखें हैं। इस चालाकी पर भी हमने क़ानू को धीरे से मीठी सी पप्पी देकर समझाया था”देखो, क़ानू-मानू ऐसी गन्दी बातें अगर काना करेगा और सीखेगा तो क़ानू की पिट्टी होगी”। गुड़िया रानी क़ानू के मुहँ को देखकर ऐसा लग रहा था, कि कह रही हो”अब कभी न होगा, सॉरी!” इन्हीं छोटी-मोटी चालाकियों को देखते और सुधारते हमारी ज़िन्दगी की रेलगाड़ी चल रही थी क़ानू के साथ।