सियासत में जल्दीबाजी अच्छी नहीं

सियासत में जल्दीबाजी अच्छी नहीं

सोच लो समझ लो परख लोकौन दुश्मन, कौन दोस्त ये सियासत है कोई भरोसा नहीं परछाई का भी पीठ में छुरा भोंकना आम है भाई-भाई का नहींबाप-बेटे का नहीं चाचा-भतीजे का नहीं यहाँ बस मतलब का है नाता डरोगे तो मरोगेनहीं डरोगे तो भी मरोगे बड़ा ही अजीब खेल है ये ठेकेदारी है बड़े बड़े ठेके...
पत्थर

पत्थर

बचपन के खेल और सोच भी अजीब हुआ करते थे..  लेंस लेकर कागज़ जलाना या फ़िर दो पत्थरों को आपस में घिस चिंगारी निकालना.. वो सफ़ेद से सुन्दर बड़े-बड़े से पत्थर जिन्हें हम आपस में बुरी तरह से रगड़ कर चिंगारी निकाला करते थे.. उन्हें हमनें चकमक पत्थर का नाम दे रखा था। अब...
बंधन नहीं है कोई

बंधन नहीं है कोई

बंधन नहीं है कोई स्वतंत्र हो उड़ान तो भरो अपनी शक्ति पर विश्वास करोकमी है अगर कोई बाहर तोआँखें बंद करो हर समस्या का हल है भीतर ही क्या सोचते हो ध्यान करो सोच का बीज ही परिणाम का वृक्ष है बड़ाबदलना है कुछ अगर बस अपनी सोच को बदल लोबंधन नहीं है कोईस्वतंत्र हो उड़ान तो...
कोफ़्ते

कोफ़्ते

घर में बहुत दिनों से मलाई इकट्ठी हो गयी है.. सोचा.. चलो! घी बना काम ख़त्म किया जाए। घी बनाकर बचे हुए.. खोए में आटा मिलाकर गूंदने लगे थे.. कि अचानक से अंगुलियों में आटे की जगह उबले आलुओं का स्पर्श हो आया था.. ऐसा लगा था.. जैसे माँ की छोटी-छोटी सी हथेलियां खोया और आलू...
पेंटिंग्स

पेंटिंग्स

” तो फ़िर क्या रहा! देख लो! तुम लोग डिसाइड कर के बता दो मुझे.. कि कौन सी सोसाइटी में फ्लैट लेना है!”। दिल्ली शिफ्टिंग के बाद हम किराए के ही घर में थे.. काफ़ी सालों से। ईश्वर ने पिताजी का हाथ पकड़ा.. और अब अपना ख़ुद का फ्लैट किसी अच्छी सोसाइटी में लेने का...
छोले-भटूरे

छोले-भटूरे

हमारा बचपन दिल्ली में ही बीता.. नहीं! नहीं! शुरू से नहीं.. हाँ! होश संभालने के बाद से ही हम दिल्ली में आ गए थे.. छुटपन में तो कई जगह रहे.. पिताजी का transferable जॉब जो था.. पाँचवीं कक्षा से ही दिल्ली में हैं। नए शहर का क्रेज और नया सेटलमेंट था.. सब कुछ अच्छा-अच्छा...