by Verma Ashish | Nov 26, 2019 | Uncategorized
सोच लो समझ लो परख लोकौन दुश्मन, कौन दोस्त ये सियासत है कोई भरोसा नहीं परछाई का भी पीठ में छुरा भोंकना आम है भाई-भाई का नहींबाप-बेटे का नहीं चाचा-भतीजे का नहीं यहाँ बस मतलब का है नाता डरोगे तो मरोगेनहीं डरोगे तो भी मरोगे बड़ा ही अजीब खेल है ये ठेकेदारी है बड़े बड़े ठेके...
by Rachna Siwach | Nov 26, 2019 | Uncategorized
बचपन के खेल और सोच भी अजीब हुआ करते थे.. लेंस लेकर कागज़ जलाना या फ़िर दो पत्थरों को आपस में घिस चिंगारी निकालना.. वो सफ़ेद से सुन्दर बड़े-बड़े से पत्थर जिन्हें हम आपस में बुरी तरह से रगड़ कर चिंगारी निकाला करते थे.. उन्हें हमनें चकमक पत्थर का नाम दे रखा था। अब...
by Verma Ashish | Nov 25, 2019 | Uncategorized
बंधन नहीं है कोई स्वतंत्र हो उड़ान तो भरो अपनी शक्ति पर विश्वास करोकमी है अगर कोई बाहर तोआँखें बंद करो हर समस्या का हल है भीतर ही क्या सोचते हो ध्यान करो सोच का बीज ही परिणाम का वृक्ष है बड़ाबदलना है कुछ अगर बस अपनी सोच को बदल लोबंधन नहीं है कोईस्वतंत्र हो उड़ान तो...
by Rachna Siwach | Nov 25, 2019 | Uncategorized
घर में बहुत दिनों से मलाई इकट्ठी हो गयी है.. सोचा.. चलो! घी बना काम ख़त्म किया जाए। घी बनाकर बचे हुए.. खोए में आटा मिलाकर गूंदने लगे थे.. कि अचानक से अंगुलियों में आटे की जगह उबले आलुओं का स्पर्श हो आया था.. ऐसा लगा था.. जैसे माँ की छोटी-छोटी सी हथेलियां खोया और आलू...
by Rachna Siwach | Nov 24, 2019 | Uncategorized
” तो फ़िर क्या रहा! देख लो! तुम लोग डिसाइड कर के बता दो मुझे.. कि कौन सी सोसाइटी में फ्लैट लेना है!”। दिल्ली शिफ्टिंग के बाद हम किराए के ही घर में थे.. काफ़ी सालों से। ईश्वर ने पिताजी का हाथ पकड़ा.. और अब अपना ख़ुद का फ्लैट किसी अच्छी सोसाइटी में लेने का...
by Rachna Siwach | Nov 23, 2019 | Uncategorized
हमारा बचपन दिल्ली में ही बीता.. नहीं! नहीं! शुरू से नहीं.. हाँ! होश संभालने के बाद से ही हम दिल्ली में आ गए थे.. छुटपन में तो कई जगह रहे.. पिताजी का transferable जॉब जो था.. पाँचवीं कक्षा से ही दिल्ली में हैं। नए शहर का क्रेज और नया सेटलमेंट था.. सब कुछ अच्छा-अच्छा...