Parchhaiyan

गहराते जा रहे थे – सावित्री के गम ! “उस की मांग अटपटी है, संभव .” रौनक बता रहा था . “उसे …सुकुमार …सुंदर …कोमल …और प्रशिक्षित लडके चाहिए ! वह चाहता है कि …. …..” रौनक ने संभव की आँखों में देखा था . संभव...

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मिलन -विछोह की धूम्र-रेखा !! वो एक विरहा की रात थी ! चांदनी रात थी !! पारुल और राजन के बीचों-बीच यों ही आ कर खड़ी हो गई थी . मिलन-विछोह की धूम्र-रेखा सी ये रात कुछ अजब-गज़ब खेल खेल रही थी . राजन विचित्र लोक के आलोक में अकेला खड़ा था . पारुल त्रिभुवन पैलेस के प्रांगण में...

Vichitra Lok

विचित्र लोक ! आज की उड़ान का आरम्भ ही अलग था ! जैसे किसी प्रेम-हंस के जोड़े ने हवाई जहाज़ को हवा में अधर उठा लिया था और अब उसे पारुल के देश ले चला था ! राजन का तन,मन ,प्राण और प्रज्ञा …सब पारुल-मय थे ! वह एक अजीव-से अतिरेक से भरा था . मात्र पारुल से  मिलने की...

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पारुल का सौदा हो रहा था !! अकेला बैठा संभव खुली खिड़की से सूने आसमान को निहार रहा है ! बुर्ज खलीफा के अपने ऑफिस में बैठा वह अपनी सामर्थ को कूत रहा है . दरसल वो अकेला नहीं है . आज तो उस के इशारों पर दुनियां नांच उठती है ! आज उस के मात्र इशारे पर इधर का उधर होने में वक्त...

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दूसरी बोतल भी खाली हो जाती है !! राजन को पल-पल केवल पारुल ही याद आ रही है . वह मिलने को अधीर है , पारुल से ! पंख लगा कर राजन उड़ना चाहता है ….वह आसमान को नहीं, पारुल को छूना चाहता है . वह चाह रहा है कि …पलक झपके और पारुल को पा जाए ! पारुल ही तो विस्वमोहिनी...

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“तुमने उस जॉकी से शादी कर ली !” एकांत है। सावित्री की सुबह का ये एकांत .. उस का अपना है। पूजा -अर्चना का एकांत है ! आत्मा और परमात्मा से बतियाने का एकांत है !! मोक्ष मांगते पल उस के पास आ कर ठहर गए हैं। उस से अब बतियाना चाह रहे हैं  …पूछना चाह रहे...