कलकत्ता की बेटी – सावित्री कहाँ थी  …?

कलकत्ता की बेटी – सावित्री कहाँ थी …?

भाग – ४४ गतांक से आगे ….. चकित और चुप -चाप बैठा राजन अचानक कुछ आती आवाजें सुनने लगा था . “घोड़ों की लीद बेच कर …हीरे-पन्ने मिलते हैं , क्या …? ” छीतर था. वह हंसे जा रहा था . “चलो अच्छा हुआ ! तुमने घोड़ों से जांन छुड़ा ली .”...
परछाइयाँ -भाग -४३

परछाइयाँ -भाग -४३

दो -दिन और रात -मिलें तो कैसे ? पारुल पैलेस में एक नया युग आकर बस गया लगा था ! “कौन लोग थे ?” प्रश्न था -जो आस-पास डोलने लगा था . अनुमान में आंकड़े थे और अफवाहें भी …जो लोगों के पास आ-जा रहीं थीं . घोड़ेवाले -राजन जी को तो लोग कुछ जानते -पहचानते थे ....
कलकत्ता शहर रात को नहीं सोता!

कलकत्ता शहर रात को नहीं सोता!

परछाईयां .. उपन्यास अंश ! भाग -४२  “ये सब क्या है , दीदी …?” पारुल ने गहक कर प्रश्न पूछा था . “ये सब तेरा है , पारो !” स्नेह-सिक्त आवाज़ में सावित्री बोली थी . “माँ ने जो मुझे दिया था – वह भी तेरा हुआ ! मुझे कौन बेटी ब्याहनी...

Parchhainyan

पारुल का मन सन्यास लेने से नांट गया था ! भाग – ४० कलकत्ता पहुंची पारुल को सावित्री ने दौड़ कर आगोश में भर लिया था ! दो परछाईयाँ मिली थीं ….भारहीन …संज्ञाविहीन ….असमप्रक्त …और विरक्त हो कर मिलीं थीं ! प्रेम था …सौहार्द था...

Parchhainyan

हाँ , हाँ ! दीदी, मैं रो रही थी ! उपन्यास अंश :- बीमार पड़ी पारुल का मन बेहद अशांत था ! न जाने क्या था कि …उस का पूरे का पूरा वर्तमान ,भूत और भविष्य …उस के सामने भूत बन कर नांच रहा था ! उसे अचानक ही काम-कोटि एक सर्प-नगरी लगने लगी थी . उसे डर था कि जैसे ही...

Parchhaiyan !

कैसा मनोहर सपना था !! उपन्यास अंश :- आज पहली बार संभव इतना प्रसन्न था ! उसने राजन का रूप …असली रूप देख लिया था ! जान लिया था ….तौल लिया था …नाप लिया था …और अब एक बहेलिए की तरह वह …जाल …फन्दा …दाना ..सब डाल कर …उसे अपने...