ये भी तो एक खेल था – किस्मत का खेल !

ये भी तो एक खेल था – किस्मत का खेल !

गतांक से आगे :- भाग – ५६ तीन जुआरी थे – जो आज अपना सब कुछ दाव पर लगा कर ‘ब्लाइंड’ खेलने पर उतारू थे …!! आँखें बंद कर दाव पर दाव लगाना और लगाते ही जाना .. परिणाम की बिना परवाह किये आगे बढ़ते ही जाना .. बड़ी जीवट वालों का काम होता है ! अपना...
बे-खबर खड़े थे …वो, प्रेमी -द्वय !

बे-खबर खड़े थे …वो, प्रेमी -द्वय !

गतांक से आगे :- भाग -५५ काम-कोटि जैसे कोई तीर्थ था …!! आगंतुकों के टोल-के-टोल चले आ रहे थे ! आज का आयोजन सर्वथा नया था ! लोग उत्सुक थे – देखने के लिए …..खेलने के लिए …और दर्शन -मेला के लिए ! हवा मैं अजब-सा कोलाहल था …जिज्ञासा थी …और...
चन्दन बोस को जाना तो था ही !

चन्दन बोस को जाना तो था ही !

गतांक से आगे :- भाग – ५४ कलकत्ता मैं अजब-गजब की धूम मची थी !! चन्दन बोस कलकत्ता का जाना माना नाम था .. कलकत्ता का ही था और अब एक बार फिर कलकत्ता वासिओं के सामने आ रहा था ! मुकाबले में थीं – नारी नश्वर, बिहार की समाज सेविका जो आज के जगत में अपना जोड़ न रखती...
पारुल का मन-प्राण फिर से जीवंत हो उठा था !

पारुल का मन-प्राण फिर से जीवंत हो उठा था !

गतांक से आगे :- भाग -५३ ‘नर नहीं ! नारी को पूजो !!’ लेख ने कलकत्ता में ही नहीं …पूरे समाचार जगत मैं …एक भू-डोल भर दिया था ! वक्त की मांग थी. विश्व भर में प्रताड़ित नारी समाज के प्रति संवेदना के स्वर उभर कर आ रहे थे. नारी स्वतंत्रता का समय नजदीक...
ये भी तो एक खेल था – किस्मत का खेल !

जुआरिओं के सिवा तुम किसीऔर को जानते भी हो ?

गतांक से आगे :-…. भाग – ५२ पारुल का मन-मयूरा फिर से अपने प्रेम-देवता को टेर बैठा था ….!! न जाने कैसे संभव को भूल उसने इस बार चन्दन को पुकारा था. चन्दन के शरीर की सुगंध न जाने कैसे उस तक आ पहुंची थी. न जाने क्यों उसका तन-मन अब हर पल .. हर क्षण केवल...
पारुल का मन-प्राण फिर से जीवंत हो उठा था !

पारुल -चन्दन के ख्वाब को ही जी रही थी !

गतांक से आगे :- भाग -५१ कलकत्ता ब्रिज-मंडल बना खड़ा था ! कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव था. प्रकृति कलकत्ता पर अब की बार कुछ ज्यादा ही प्रसन्न थी. काले-काले बादलों के हुजूम आसमान पर टहलते नज़र आते थे. वर्षा की भारी और मीठी-मीठी पड़ती फुहारें मेघ मल्हार जैसी गाती फिर रही थी....