by Major Krapal Verma | Nov 6, 2016 | Parchaiyan
कम-जात राजन सोते-सोते बमक पड़ा था. वह एक भयंकर स्वप्न देख कर जागा था. पारुल उस के गले से चिपक चीखें मार रही थी ….उसे …उसे .. “मार देती ….मुझे ….!” राजन कमरे से बाहर था. “अरे , कहाँ हो ….!” उस ने सावित्री को पुकारा...
by Major Krapal Verma | Sep 13, 2016 | Parchaiyan
खिलाड़ी सेठ धन्ना मल का काम और नाम एक बार फिर बुलंदियों पर था. एक लम्बी कड़की के बाद अब आ कर उन्हें साँस लौटी थी. लक्ष्मी-माँ की लगातार पूजा-अर्चना के बाद , अब आ कर वो प्रसन्न हुईं थीं. “उन के अनादर का अपराध मुझ से …बन गया था. ” धन्ना मल ने पलट कर...
by Major Krapal Verma | Aug 15, 2016 | Parchaiyan
भिखारी पहली बार कलकत्ता शहर ने प्रेम-पराग को अपने सजीले-लजीले प्रेमाकाश पर छाते देखा था. राजन और सावित्री का प्रेम-प्रसंग हर किसी की जुबां पर चढ़ा था. हर कोई राजन और सावित्री के बारे में जानने को लालाइत था. चूंकि सावित्री सेठ धन्नामल की बेटी थी …उन का...
by Major Krapal Verma | Jul 17, 2016 | Parchaiyan
मणिधारी सांप घुड-दौड़ के इतिहास में आज जैसा अचम्भा कभी नहीं घटा था, रेस के सारे रिकॉर्ड टूट गए थे. दाव लगानेवालों की जेबें खाली हो गईं थीं. लोग – ठगे से …लुटे से …अचंभित और भ्रमित …राजन और रानी को रह-रह कर याद कर रहे थे. लोगों को अब जीत-हार का...
by Major Krapal Verma | Jul 3, 2016 | Parchaiyan
बांका वीर अवोध शिशु की तरह राजन अपने बैड रूम में सोया पड़ा है . घर ….समूचा घर प्रशांत ख़ामोशी में डूबा है , निःशब्द हुए वातावरण में , ‘प्यार’ शब्द अचानक ही उग आया है. सावित्री को खूब याद है …..जब इसी ‘प्यार’ के शब्द ने उसे बांह पकड़ कर...
by Major Krapal Verma | May 27, 2016 | Parchaiyan
व्यापारी की बेटी गम था राजन को , पारुल के चले जाने का ! खाली-खली दिन ,खाली हुई शराब की बोतल की तरह उसे बुला रहा था. कह रहा था – रुक मत,राजन ! पी पी कर जी !! पीता ही रह …पीता चला जा …! सडकों पर पी कर नांच …नंगा नांच ….! पारुल का नाम ले ले...