by Major Krapal Verma | Aug 15, 2016 | Kahani
गौरव- गाथा सुबह-सुबह ही पहुँच गए थे, ये ! मैंने देखा था – आँखें प्रेम-रस में लवालव डूबी थीं. संयम का बाँध टूट कर सब बहा ले जाना चाहता था . लेकिन कुछ था ….चोर की कांख में छुपे खजाने-सा कुछ था – जिसे ये छुपाए खड़े थे. कुनाल सो रहा था ! मैंने इन के...
by Major Krapal Verma | Apr 19, 2016 | Kahani
नई हवा राजधानी के भीतर प्रवेश पाते ही रत्ती और राम लाल को लगा था कि वो किसी दूसरी दुनियां मैं आ पहुंचे है ! वो बंगलौर नहीं शायद किसी विचित्र लोक में जा रहे थे……जहाँ उन का इकलौता बेटा फत्तू अपने बसाए साम्राज्य -कैनाइन इंटरनेशनल में उन का स्वागत करेगा और...