by Major Krapal Verma | Dec 31, 2016 | Bura Na Maanen
फिर मंच टूटा क्यों ? हिल रहा था , सिंहासन ! दहलाया हुआ था , ब्रह्माण्ड !! हवा उल्टी दिशा में सन्ना रही थी. आवाज़ें थीं …अनौखी आवाज़ें …जो कभी पहले सुनने में न आईं थीं. लांछन थे …आक्षेप थे …तोमतें थीं …जो लोग लगा रहे थे. नाम धर रहे थे...
by Major Krapal Verma | Oct 9, 2016 | Bura Na Maanen, Uncategorized
घसीटा यों मुझे कुछ आता-जाता नहीं ! फिर भी …कुछ लिखता रहता हूँ . समझ है ….क्या पता कब पार पा जाए !! काम में नहीं , नाम में शक्ति -श्रोत है , श्रीमान ! मानेंगे क्यों नहीं, आप …? नाम देखिए …कितने भारी भरकम हैं …..और उन का असर भी मह्सुसिए...
by Major Krapal Verma | Sep 25, 2016 | Bura Na Maanen
खुदा हैं,आप ! बुरा न मानें :- मुझे तो कुच्छ आता-जाता नहीं ! फिर भी मैं मुह खोलने की जुर्रत कर रहा हूँ. इस लिए नहीं कि मुझे आप से कुछ लेना है. पर इस लिए कि मुझे आप से कुछ कहना है. चाय पर नहीं …..संग्राम पर चर्चा करेंगे, सैनिक हूँ और मुझे संग्राम से आगे कुछ सुहाता...
by Major Krapal Verma | Aug 20, 2016 | Bura Na Maanen
महामना दिल्ली दरबार लगा था. बहुत भीड़ थी. एक गहमा-गहमी थी. सौहार्द के फब्बारे बह रहे थे. सब एक दूसरे के गले मिल रहे थे. सब एक मंच पर खड़े थे. सब एक जान, एक प्राण और एक जुट थे. सब के लिए एक ही चुनौती थी – कम्युनलिस्म ! सब को इसी बिम्मारी का इलाज़ मिल कर खोजना था....
by Major Krapal Verma | Apr 3, 2016 | Bura Na Maanen
“बुरा ..न मानें , बाबा !” बेहद नरम आवाज़ में वह बोली थी. “भीख न मांगूं तो …और क्या करू …?” उस ने मुझे प्रश्न पूछा था. “काम ….!” मैंने आदतानुसार उसे काम का ही नुस्खा पकडाया था. “करती थी …., काम ! सात-सात...
by Major Krapal Verma | Mar 27, 2016 | Bura Na Maanen
“बुरा न माने , कामरेड ! चस्मदीद गवाह मिल गया है . अपना ही अज़ीज़ है. गण-मान्य व्यक्ति है. उस ने कह दिया है कि …कि बम्ब फाड़ते हुए उस ने …’भगत सिंह ‘ को अपनी आँखों से देखा था . अब तो फांसी टूटेगी …टूटेगी ….ज़रूर …”...