by Major Krapal Verma | Oct 6, 2017 | Bura Na Maanen
गुनाहों का गढ़ ! मुझे तो कुछ आता -जाता नहीं ! न जाने क्यों मैं एक ही चौखट पर आँख गढ़ाए कुत्ते की तरह ….गिरारे में बैठा रहा -आजन्म ! मालिक ने लात मार कर भगाया है तो अब एहसास हुआ है …कि मुझे कुत्ते की वफादारी से अलग – मनुष्य की वफादारी पर मनन करना चाहिए...
by Major Krapal Verma | Jun 25, 2017 | Bura Na Maanen
मुझे मत चुनो !! मैं जीतने के लिए ही तो हारा था ! यों तो सब कुछ लुट चुका था। सब कुछ बदल चुका था। न वो नाम था ….न वो गांव ! न वो हवा थी …न आसमान। यहाँ तक कि रास्ते भी नए थे। एक भ्रम था …विभ्रम था …अनजान-सा एक संसार था -जिस के बीचोँ -बीच...
by Major Krapal Verma | May 27, 2017 | Bura Na Maanen
मैं बिल्ली हूँ ! “मैं बिल्ली हूँ ! मैं चाहूँ तो आज दिल्ली को बया के घोंसले की तरह फाड़ कर फ़ेंक दूँ !!” वह रुकी थी. “और हाँ, अगर मैं न चाहूँ तो ….एक पत्ता तक न हिलने दूँ. विरोधियों की क्या मज़ाल जो …” “वो कह रहे हैं …कि...
by Major Krapal Verma | May 21, 2017 | Bura Na Maanen
मुझे कुछ आता-जाता नहीं ! भाई, मुझे तो कुछ आता-जाता नहीं ! और न ही अपनी अकल काम करती है ! समाज की व्यवस्था की इतनी बुरी दशा शायद …चमड़े के सिक्के चलानेवाले शहंशाह के ज़माने में भी न रही हो। कौन जाने – क्या हो गया है ! देखो, अपने इन नौरंगी लाल को !...
by Major Krapal Verma | Jan 22, 2017 | Bura Na Maanen
आंसू बुरा न मानें :- आज मेरी आँखों में आंसू हैं ! रोना इस समाजबाद का है. इस के लिए ही रोना है. क्योंकि आज यही आँख की कोर में आकर बैठ गया है. यही तो है – जिस ने सारे राजनैतिक समीकरण फ़ैल करदिए हैं. सारा गेम खराब करदिया है ….और हमारा बनाबनाया बानक खराब...
by Major Krapal Verma | Jan 15, 2017 | Bura Na Maanen
संग्राम बुरा न मानें – आप ही क्यों , मैं भी तो आप की तरह ही इस दलदल में धंस कर देखना चाहता हूँ कि …आखिर ये माज़रा क्या है ? जो आदमी पूरी उम्मीद के साथ …जोशो-खरोश में और मुठियाँ कस कर …इस दलदल में उतरता है …और कहता भी है कि वो दंगल...