by Major Krapal Verma | Jan 9, 2022 | जंगल में दंगल
जरासंध की याद आते ही पृथ्वी राज उछल पड़ा था। अब काग भुषंड की खैर नहीं – उसने सोच लिया था। तेजी की आंखों में लौट आई चमक को भी नकुल ने पढ़ लिया था। अचानक ही एक शक्ति संचार जैसा हुआ था और एक विजय घोष अनचाहे में ही हवा पर तैर आया था। “महाराज की जय!”...
by Major Krapal Verma | Jan 5, 2022 | जंगल में दंगल
“क्यों? खोज की संभावनाएं तो हमेशा खुली होती हैं!” गरुणाचार्य ने लालू को घूरा था। “विकल्प तो हमेशा ढूंढना पड़ता है बंधु!” हंसे थे गरुणाचार्य। “सम्राट बनना चाहते हो तो ..!” गरुणाचार्य ने लालू के भीतर बैठा चोर पकड़ लिया था।...
by Major Krapal Verma | Dec 30, 2021 | जंगल में दंगल
“मैं तो हैरान हूँ ये देख देख कर कि ये संतो करती क्या है?” तेजी पृथ्वी राज और नकुल के साथ बैठकर अपने आश्चर्य बता रही थी। “न जाने कौन कौन से देवी देवताओं की पूजा करती रहती है। आए दिन कोई न कोई व्रत रखती है। हर रोज भूखे नंगों को दान बांटती है। कभी इस...
by Major Krapal Verma | Dec 26, 2021 | जंगल में दंगल
“जैसे शेर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता वैसे ही आदमी भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता!” काग भुषंड अपनी शेखी बघार रहा था। “हम तो अजर अमर हैं!” उसने घोषणा की थी। “तुम्हें शक नहीं होना चाहिये चुन्नी कि हम एक दिन इस पृथ्वी के मालिक जरूर...
by Major Krapal Verma | Dec 22, 2021 | जंगल में दंगल
मणिधर और गरुणाचार्य साथ साथ बैठे किसी साठ गांठ में उलझे थे। उनकी बात बहती जा रही थी। उन दोनों को बुरा लग रहा था। एक सबल इरादे के साथ इकट्ठा हुआ समाज अब उसी इरादे से बहुत दूर जाकर खड़ा हो गया था। उनकी हुई दिमागी शिकस्त सबको बुरी लग रही थी। यों मुंह छुपा कर लौट जाने का...
by Major Krapal Verma | Dec 15, 2021 | जंगल में दंगल
समर सभा के तंबू उखड़ रहे थे। हर आंख में काग भुषंड ही था जो एक किरकिरी की तरह करक रहा था। काग भुषंड ने तो गरुणाचार्य तक का अपमान कर दिया था। वह अपनी चतुराई और चालबाजियों से सब को मूर्ख बना कर चराचर का स्वामी बन जाना चाहता था। कितनी बेबुनियाद बात थी। “शेरों का शोर...