सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग सैंतीस

गुलिस्तां आज अतिरिक्त तरह से गुले गुलजार था! दिलीप की सफलता के प्राप्त सोपानों की चर्चा फिजा पर फैली हुई थी। किस तरह से दिलीप ने अभिनय को एक नई दिशा दी थी और किस तरह से उसने अमोल ख्याति प्राप्त की थी – सब हवा में था और विदित था! लेकिन .. “यू गॉट टू हैव ए...
सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग छत्तीस

“कौन सी जन्नत में जा बसे हो कासिम?” फोन था। सुबह सुबह का पहला फोन था। उसकी नींद उड़ गई थी। मुंह का जायका तक जाता रहा था। चिंता रेखाओं से भरे ललाट को समेटते हुए रमेश दत्त ने अपने आप को संभाला था। साहबज़ादे सलीम की आवाज कड़क थी। जरूर कोई अजूबा घट गया था। रमेश...
सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग पैंतीस

पीछे की पहाड़ी के शिखर पर गुनगुनी धूप में हम दोनों आ बैठे थे! मनोहारी दृश्य हम दोनों के सामने मुआयने के लिए आ खड़ा हुआ था। वादियां थीं, घाटियां थीं, नदियां थीं और था मेघों से गले मिलता खुला गगन! चिड़िया हम से बतियाने चली आई थी। उन्हें शायद भनक लगी थी – हमारे...
सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग चौंतीस

नेहा निवास को मैंने आंखें भर-भर कर देखा था! साहबज़ादे सलीम की उस सेनफ्रांसिस्को की जागीर से बिलकुल भिन्न था, प्रेम नीड़ था – नेहा निवास जहां मैं अब लम्बी उड़ान भरने के बाद लौटी थी। न जाने क्यों एक थकान मुझे थकाए दे रही थी। अब मैं सुस्ताना चाहती थी। दम लेना चाहती...
सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग तैंतीस

“झूठ बोला है, पाप लगेगा!” मेरा अंतर बोल पड़ा है! चुपचाप हवाई जहाज में बैठी मैं अचानक आंदोलित हो उठी हूँ। न जाने क्यों आज इतने दिनों के बाद – मेरा अंतर मुझपर खुल कर बोला है! मैं तो भूल ही गई थी कि झूठ बोलने से पाप लगता है! और आज के जमाने में झूठ बोलता...
सॉरी बाबू भाग सैंतीस

सॉरी बाबू भाग बत्तीस

“गुलबदन नाम रक्खा है .. इस जागीर का, नेहा!” साहबजादा सलीम बताने लग रहा था। “जानती हो क्यों?” उसने मुस्करा कर मुझसे पूछा था। मैं जानती तो सब थी, बाबू लेकिन मेरा स्वीकार मेरा अंतिम संस्कार बन सकता था – मैं यह भी जानती थी। यह खुड़ैल और सलीम...