सॉरी बाबू भाग पचपन

सॉरी बाबू भाग पचपन

समाधिस्थ हुए रमेश दत्त नेहा के चित्र को टकटकी लगा कर देख रहे हैं! आज तो उनका मन विरह गाने को कर रहा है। मुद्दतें गुजरीं नेहा का दीदार हुए। कितना कितना मन होता है कभी कि सब छोड़ छाड़ कर नेहा के पास जा पहुंचें। पहुंच भी गये थे तो नेहा ने .. लेकिन मन का क्या करें? मन है...
सॉरी बाबू भाग पचपन

सॉरी बाबू भाग चौवन

“स्वर्ग से आई अप्सरा लग रही हो!” सामने आ खड़ी हुई शिरोमणि को देख श्री कांत बोला है। युगांत का कोई परिदृश्य भाग कर जैसे श्री कांत के सामने आ खड़ा हुआ हो – ऐसा प्रतीत हुआ है उसे। साधारण सी शिफोन की साड़ी पहने और उन सोलापुरी चप्पलों में शिरोमणि का रूप...
सॉरी बाबू भाग पचपन

सारी बाबू भाग तिरेपन

“ऐसा भी क्या आदमी यार – जो निरा ही गंवार हो!” बड़बड़ा रही है – शिरोमणि। वह बहुत नाराज है। सब से ज्यादा क्रोध तो उसे अपने ऊपर ही आ रहा है। न जाने क्या मान कर उसने उस मिलन की तैयारी की थी। कितना पैसा खर्च कर डाला कपड़ों पर। क्या जरूरत थी डिजाइनर...
सॉरी बाबू भाग पचपन

सॉरी बाबू भाग बावन

होटल स्काई लिव में अपार भीड़ जमा है। जीने की राह – फिल्म की शूटिंग है। नेहा और विक्रांत दोनों आ चुके हैं। हर कोई चाह रहा है कि कम से कम एक फोटो, एक झलक या फिर कोई संवाद ही सुनने को मिल जाए! विक्रांत – माने कि जीने की राह का श्री कांत सोफे पर लंबा चौड़ा हो...
सॉरी बाबू भाग पचपन

सॉरी बाबू भाग इक्यावन

गुप्त रास्तों से रात के अंधेरे उजालों में सांस साधे गाड़ी चलाने के बाद आखिर पोंटू ने गुलिस्तां को खोज ही लिया था। अंधेरी रात की नीरवता को बर्दाश्त करता पोंटू बेहद घबराया हुआ था। उसने अपनी भूली याददाश्त की तरह गुलिस्तां को पा तो लिया था लेकिन अब घंटी बजाने में उसके हाथ...
सॉरी बाबू भाग पचपन

सॉरी बाबू भाग पचास

वे ऑफ लाइफ – जीने की राह ने अब रफ्तार पकड़ ली थी! जिन्दगी को क्यों और कैसे जिया जाये – इस आम प्रश्न का उत्तर खोजती फिल्म ‘जीने की राह’ कहीं लोगों को अमूल्य सलाह दे रही थी कि जीना मात्र भरण पोषण नहीं कुछ और है! जीवात्मा संसार में कुछ करने के...