भिखारी
पहली बार कलकत्ता शहर ने प्रेम-पराग को अपने सजीले-लजीले प्रेमाकाश पर छाते देखा था. राजन और सावित्री का प्रेम-प्रसंग हर किसी की जुबां पर चढ़ा था. हर कोई राजन और सावित्री के बारे में जानने को लालाइत था. चूंकि सावित्री सेठ धन्नामल की बेटी थी …उन का प्रेम-प्रसंग और भी तूल पा गया था.
“क्या ..माल उडाता है, स्याले ने ……?” कलकत्ता शहर का युवा मंडल प्रसन्न हो कर जैसे राजन को बधाईयाँ दे रहा था.
कलकत्ता आज बम्बई से भी ज्यादा प्रासंगिक हो गया था. नकली हीरो-हिरोइन के उस शहर बम्बई को असली राजन और सावित्री के जोड़े ने मात दे दी थी. लगा था – जैसे कलकत्ता के पास कुछ असल था – चर्चा के योग्य था …घमंड करने लायक था !
देश भर के पत्र-पत्रिकाओं में . राजन और सावित्री के चित्र छपे थे.
“मेरा अखबार कहाँ है, भाई ….?” सेठ धन्नामल तुनक कर पूछ रहे थे. “टाइम्स …..कहाँ गया ….?” उन्होंने किसी भूली याद की तरह अपने परम-प्रिय पेपर – ‘टाइम्स’ को याद किया था. वह जानते थे कि ….’टाइम्स’ में ज़रूर-ज़रूर उन का व्योरा लिखा होगा ….लिखा होगा कि ….”यहाँ …किस ने डाला अखबार …?” सेठ धन्नामल ने प्रश्न उछाला था. “मैंने अभी पढ़ा कहाँ था ….जो ….” उन्होंने अज्ञात को धमकाया था.
अपनी गद्दी पर बैठ कर उन्होंने अपने चश्मे के लेंस साफ़ किए थे. फिर बड़े ही मनोयोग से उन्होंने ‘टाइम्स’ को अपनी आँखों के सामने तश्वीर की तरह टांग दिया था. लेकिन …..ये क्या ….? जो उन्होंने अभी-अभी देखा था …..क्या वो ….? नहीं, नहीं …..!” उन्होंने अश्वीकार में सर हिलाया था …और चश्मे को आँखों से उतार ….फिर से साफ़ करने लगे थे. अब की बार उन्होंने खूब वक्त लिया था – ताकि चश्मे पर जमी गर्द …पूरी तरह साफ़ हो जाए …और …..
अब की बार सेठ धन्नामल ने बड़ी हिम्मत बटोरी थी . भगवान के नाम का स्मरण भी किया था . लेकिन …..न जाने कैसे ….वही दृश्य ….वही फोटो ….उन की आँखों के सामने फिर से उजागर हुआ था.
सावित्री को अपने बलिष्ट बांहों में भरे राजन ‘टाइम्स’ के प्रथम पेज पर खड़ा था.
अचानक ही सेठ धन्नामल के ह्रदय की गति रूक गई लगी थी. उन के स्मृति-पटल पर गहन अंधकार छा गया था. शरीर एक सन्नपात की चपेट में आ गया लगा था. उन की अब तक की प्रवहमान उमंगें, आल्हाद और उन्माद – सब लुप्त हो गए लगे थे. उन का मन गोली खाए कबूतर की तरह – मर गया था ….और शारीर निर्जीव था . उन की आँखें अब खुलना ही न चाहती थीं . अँधेरा उन्हें अच्छा लग रहा था…..अज्ञात सुहा रहा था ! वह न चाह रहे थे …..कि जीने के लिए फिर से लौटें . वह नहीं चाहते थे …..कि ..उस ‘टाइम्स’ के प्रथम प्रष्ट पर छपे चित्र को ….फिर एक बार देखें !
लेकिन जीवन की अटूट इच्छा ने उन के कान में कहा था – जीओ, सेठ ….! जीओ ….!! यों दम तोड़ने में बहादुरी नहीं है . घाटे–मुनाफे तो तुम आजीवन से उठाते आए हो ….? हार-जीत का तो मुक्कम्मल अनुभव है , तुम्हें …? अब क्या हुआ ….जो ….?”
“मेरी बेटी , सावित्री ……!” सेठ धन्नामल के अंतर में टीस उठी थी. “मेरी …., बिट्टो …!!” सेठ धन्नामल ढा-ढा कर रोने लगे थे. “नहीं, नहीं ….! नहीं ….!! मैं ….!”
“क्यों रोते हैं ….?” गीता ने उन्हें हाथ से पकड़ा था. “मैं …हूँ, न …?” गीता का स्वर सहज था. “सब संभाल लूंगी ….!” वह सेठ जी को धीरज बंधा रही थी. “मैं ….!”
हिम्मत बटोर कर सेठ धनामल ने गीता की आँखों में झाँका था.
गीता पर सेठ धन्नामल को भरोसा था. गीता उन के जीवन की अमर अभिलाषा थी. गीता तो गीता की तरह ही ….सच थी ….सटीक थी ….सम्माननीय थी . गीता उन के जीवन का ईमान …..और कल्याण दोनों ही तो थी !
“ये कैसे हुआ , गीता ….?” सेठ धन्नामल अधीर थे.
“समय का फेर है ….! हमारा समय और था ….., लाला जी ….!”
“हाँ …! मैंने तो कभी लोगों के सामने ….तुम्हारा हाथ तक नहीं छुआ . कभी कोई मजाक तो दूर ….”
“हमारे स्कूल के साथ मंदिर था …., याद है न …?” गीता ने सहजता पूर्वक पूछा था. “लेकिन सावित्री के स्कूल के साथ ….गिरिजाघर है …!!” गीता ने उन्हें याद दिलाया था.
“ओह ….! कर्नल जेम्स ……?”
“नहीं, उन का कोई दोष नहीं है . निष्पाप हैं , वो …! हवा ही तिरछी चल रही है ….!”
“लेकिन ….सावित्री ….से ….?”
“पूछा है ….!” गीता तनिक हंसी थी. “बच्ची है ….नादान है ….! उसे क्या पता कि उम्र कितनी लंबी होती है ….?” गीता ने अपने ही जिए जीवन-दर्शन को सामने धरा था.
“कर्नल …जेम्स …..मिलने आये हैं ….! ड्योढ़ी पर से खबर आई थी.
अचानक ही दृश्य बदल गया था. सेठ धन्नामल तनिक सतर्क हुए लगे थे. गीता ने हंस कर कर्नल जेम्स का स्वागत किया था.
“जीत के डंके बज रहे हैं ……, शहर में कुहराम भरा है ….., सेठ धन्नामल के चढते सितारों को हर कोई प्रणाम कर रहा है ….और ….!” कर्नल जेम्स रुके थे. “राजन की तो बोलियाँ बुल रही हैं ….! कोई भी कीमत ….किसी भी कीमत पर ….अब सैतानों को राजन ही चाहिए …!” वह हँसे थे. “इंग्लैंड ….डर्वी ….मैन मकसद है …, सेठ जी ….!” उन्होंने अर्थ समझाया था.
सेठ धन्नामल ने अपनी अनुभवी आँखों से कर्नल जेम्स को नए सिरे से देखा था.
उन्हें अपनी पहली मुलाक़ात याद थी.- जब कर्नल जेम्स ने कहा था , “में पैसा पैदा करने का पेड़ ….आप के आँगन में लगा दूंगा ….!” और अपने इस कथन पर खूब हँसे थे. “आप …’घाटा’ क्या है – ये भूल ही जांयगे ….हमेश-हमेश के लिए …!” कर्नल जेम्स ने अपने विचार की पुष्टि की थी. “ये घोड़े ….ये रेस ….ये …राइडिंग स्कूल ….और ये …स्टड फार्म ….इस तरह की सोने की खाने हैं ….जहाँ …शुद्ध मुनाफ़ाओं के सिवा कुछ भी और अला-बला नहीं आते ! सरकारें भी सहारा देती हैं ….बढ़ावा देती हैं ….रिलीफ़ देती हैं ….! ये आप का सिल्क का व्यापार …जो एक महा-मोह है ……!”
“पर मुझे तो घोड़े की पूंछ का भी पता नहीं …., कर्नल साहेब …?” सेठ धन्नामल हँसे थे. “छूने से भी डरता हूँ, घोड़ों को …..!” उन्होंने स्वीकार किया था. “फिर घोड़ों का व्यापार ….और …..पैसा …..? मेरे बुद्धि तो काम नहीं करती ….”
“मेरी बुद्धि तो काम करती है …..? में आप का ….मित्र हूँ . मुझ पर भरोसा कीजिये …..! मैं …..आप के तमाम घाटे पूरे कर दूंगा ….!” उन का वायदा था.
और आज कर्नल जेम्स ने ….अपना वचन पूरा कर दिखाया था.
“राजन – अगर बिक जाता है …, तो ….?” सेठ धन्नामल ने बड़ी ही सूझ-बूझ के साथ प्रश्न पूछा था.
राजन – सेठ धन्नामल की आँखों में कांटे-सा खटक रहा था. और यह कर्नल जेम्स भी जानते थे. वह जानते थे कि ….सेठ धन्नामल आसानी से राजन और सावित्री के …सामंजस्य को नहीं पचा पाएंगे . और उन का प्रेम – प्रसंग किसी समझौते की डिबिया में बंद करने की वस्तु नहीं था. अब तक पूरा कलकत्ता शहर ही नहीं ……देश-विदेश भी जानता था ….कि ……
“राजन – पैसे का भूखा नहीं है ….!” कर्नल जेम्स ने सोच-समझ कर प्रश्न का उत्तर दिया था. “राजन – लालची भी नहीं है ….!” वो बता रहे थे. सेठ धन्नामल ने कर्नल जेम्स की आँखों में देखा था . “राजन …..कायर ….और डरपोक भी नहीं है.” कर्नल जेम्स ने राजन का पूर्ण-परिचय दिया था.
“लेकिन ….., कर्नल …साहेब ……!”
“जानते हैं , कितना पैसा मिला है ….?” कर्नल जेम्स ने सेठ धन्नामल की बात काटी थी. “मैंने जो कहा था – पूरा हुआ ….!” वो जोरों से ‘हा-हा’ कर हँसे थे. “आप के आँगन में अब ….नोटों का पेड़ उग आया है , सेठ जी !” उन्होंने हाथ फैला कर कहा था. “अकेले …कजरी और राजन ने आप को ….माला-माल कर दिया है. और अभी तो खेल शुरू हुआ है …..! कजरी के तो बच्चों तक की कीमत मिलेगी , आप को ! ”
न जाने क्यों ….आज चाह कर भी सेठ धनामल का दिमाग – धन, पैसे …..माल-असबाव की बातों को पकड़ नहीं रहा था. जो मुनाफा हुआ था …उस में से वो बार-बार ‘सावित्री’ को घटा रहे थे ….और नेट घाटे का अनुमान लगा रहे थे. अगर राजन ‘सावित्री’ को ले जाता है तो ….उन के पास शेष क्या बचा ….?
“सावित्री …..” सेठ धन्नामल की जुबां पर बेटी का नाम बरबस आ चढ़ा था. वह चाहते थे कि …कर्नल जेम्स के साथ मिलकर …दूध-का-दूध और पानी-का-पानी कर लें !
“सावित्री – इज ….ए …ब्राइट …स्टार …!” कर्नल जेम्स ने पुलक कर कहा था. “मैं कहना भी चाहता था …आप से कि …, आप सावित्री को सारा कारो-बार सम्भालदें ! चूंकि …..आप की तो ……?” मुस्कराए थे, कर्नल जेम्स. उन्हें याद था की ….लाला जी को तो ….घोड़े की पूंछ तक पकड़ना नहीं आता !
सेठ धन्नामल की अचानक त्योरियां तन गई थीं.
वह समझ पाए थे कि ….जेम्स एक ऊँचे दर्जे का खिलाड़ी था. वह अंग्रेजों को जानते थे. उन की दूरदर्शिता और …दानिसबंदी के कायल थे. हार को जीत में बदलना ….अंग्रेजों को ही आता था. वह समझ रहे थे कि …अब कर्नल जेम्स ….राजन और कजरी के हुनर को ….हथियार की तरह ही स्तेमाल करेगा ….और ……और …..शायद सावित्री …हरगिज भी उन की बात नहीं मानेगी …? पूरन मल और सूरज मल भी ….कर्नल जेम्स का मुकाबला नहीं कर सकते थे.
कर्नल जेम्स ने जैसे …सेठ धन्नामल के अभी -अभी कपडे उतार कर ….उन्हें नंगा खडा कर दिया था. सावित्री के जाने के बाद तो वह ….भिखारी ही थे ….निरे कंगाल थे !
“सावित्री ….अगर आगे आती है …, तो ….हम इंग्लैंड की डर्वी …मैं …हाथ मार लेंगे …!” कर्नल जेम्स ने अपना आखिरी तीर छोड़ा था.
“वो कैसे …..?” सेठ धन्नामल ने चौकन्ना हो कर कर्नल जेम्स की नई चाल को परखा था.
‘सावित्री …और राजन मिल कर ….”
“सावित्री को क्या आता है ….?” सेठ धन्नामल भवक आए थे. “कल की …..नादान लड़की …है …! उसे तो ……उसे तो …..”
“अंडे उबालने तक नहीं आते …., कर्नल साहेब !” गीता ने विंहस कर कहा था. “हमारे आचार-विचार अलग हैं ….! आप तो जानते हैं …कि …!” गीता ने कर्नल जेम्स को घूरा था. वह उन्हें इस्पष्ट बता देना चाहती थी ….कि ‘राजन-सावित्री’ एक नहीं दो थे !
बात बनते-बनते …..कर्नल जेम्स के हाथों से ….मछली की तरह ….फिसल कर कहीं दूर गहरे समुद्र में डूब गई थी !!
अगर राजन बिगड़ गया तो ……? उसे तो सावित्री के सिवा ….और कुछ भी नहीं चाहिए था ….!!