ख़ुशनुमा प्यारी

सुन्दर थी

वो बेल

हरी-भरी

सुन्दर फूलों

के गुच्छों

से लदी हुई

थी वो

बेल

सफ़ेद गुलाबी

रंग के फूलों

के गुच्छे

महकते थे

यूँहीं हमारे

आँगन में

बोतल से

लटकते वो

बेल पर

कितने सुन्दर

लगते थे

घर के

प्रांगण में

गुलाबी सुन्दर

रंगों के

फूलों में

कहीं खिला

सा था

वो बचपन

मेरा

सफ़ेद गुलाबी

फूलों का

वो मेल

हर रोज़

लाता था

एक नया

सवेरा

हँसते हुए

वो फूल

रोज़ एक

नई कहानी

कहा करते

थे

सच! हँसते

मुस्कुराते

वो कितने

प्यारे लगते

थे

हर कली

एक दूसरे

से टकराते

हुए

कुछ हमारे

बारे में

फुसफुसाया

करती थी

सच ! 

यूँ चुगली

करती हुई

वो बहुत

प्यारी

लगती थीं

उन्हीं फूलों

को देख-देख

बडी हो

गयी थी

मैं

उन्हीं फूलों

की महक

में कहीं

आज खो

गई

थी मैं

उस महक

ने फ़िर

बीता बचपन

याद दिलाया

मुझे

सच! उन

सुन्दर रंगों

से खिला

महका प्यारा सा

बचपन फ़िर

याद आया

मुझे।

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