क्रोधित हुई
प्रकृति बाढ़
है आई
रुला गई
मानव को
ऐसी धूम
मचाई
बाढ़ के
क्रोध से
भयभीत हुआ
मानव चिल्लाया
है! प्रकृति
तुम इतनी
क्रोध में
क्यों थीं
आईं
बोली तिलमिला
कर प्रकृति
वृक्षों को
क्यों
मार
गिराया
सीने से
लगे
थे मेरे
तुमने कैसे
वार कराया
मेरा खोया
लौटाओ
हरापन
नहीं तो
यूँहीं
सहते रहो
क्रोध तुम
मेरा।